Sawan 2025 : सावन का महीना शिव भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र और विशेष होता है। श्रावण मास की शुरुआत कल से होने जा रही है और इस पूरे महीने में भक्त शिव की आराधना, उपवास और विशेष अनुष्ठानों में लीन रहते हैं। सनातन परंपरा में यह माह भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सर्वोत्तम माना गया है।
खासकर जलाभिषेक, शिव साधना का अहम हिस्सा होता है। लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि इस पूजा से पूर्ण फल पाने के लिए कुछ आवश्यक नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है।
विषपान के बाद शिव पर जल अर्पण की परंपरा
पुराणों के अनुसार, जब समुद्र मंथन के दौरान हलाहल विष निकला, तब भगवान शिव ने समस्त संसार की रक्षा के लिए वह विष स्वयं पी लिया था। विषपान से उनका शरीर अत्यंत गर्म हो गया था। उस ज्वाला को शांत करने के लिए देवताओं ने उनके ऊपर निरंतर जलधारा अर्पित की थी। तभी से श्रावण माह में शिव पर जल चढ़ाने की परंपरा प्रचलित हो गई, जो आज भी श्रद्धा से निभाई जाती है।
शिव को जल अर्पण करते समय न करें ये आम गलतियां
आजकल बहुत से लोग एक सामान्य परंतु महत्वपूर्ण गलती कर बैठते हैं – वे मंदिर में रखे जल का उपयोग करके शिव को जल अर्पित करते हैं, जबकि सनातन परंपरा में यह माना गया है कि जल को अपने घर से ले जाकर चढ़ाना अधिक फलदायी होता है। इसका आध्यात्मिक और ऊर्जात्मक महत्व है।
घर का जल क्यों है विशेष? जानिए इसके पीछे का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कारण
जल में सब कुछ आत्मसात करने की क्षमता होती है। जब आप अपने घर का जल लेकर शिवालय जाते हैं, तो वह जल आपके घर की ऊर्जाओं को अपने अंदर समाहित कर लेता है। यदि आपके घर में कोई नकारात्मकता या अशुभता है, तो शिव पर जल चढ़ाने से वह ऊर्जा भी शुद्ध होकर आपके घर में शांति, सौभाग्य और समृद्धि का संचार करती है। यही कारण है कि पुराने समय में लोग विशेष रूप से अपने घर से लोटे में जल भरकर मंदिर जाते थे और वही जल भगवान शिव को अर्पित करते थे।
भले ही आज के शहरी जीवन में यह परंपरा कहीं न कहीं कम होती जा रही है, लेकिन इसका महत्व आज भी उतना ही गहरा है। इसलिए इस सावन में कोशिश करें कि आप अपने घर से ही जल लेकर शिव को अर्पण करें।
शिव पर जल चढ़ाते समय करें इन नियमों का पालन
- जलधारा की निरंतरता रखें – जब आप शिवलिंग पर जल चढ़ाएं, तो वह जल एक सतत धार में अर्पित करें। धार को बीच में टूटने न दें, क्योंकि यह पूजा की शुद्धता को प्रभावित करता है।
- जलधारी को न लांघें – शिवलिंग की जलधारी, जिससे जल बहकर बाहर निकलता है, उसे कभी पार नहीं करना चाहिए। यह धार्मिक रूप से वर्जित माना गया है।
- मुख की दिशा उत्तर रखें – शिव पर जल अर्पण करते समय आपका मुख उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। यह दिशा शिव के लिए शुभ मानी जाती है और इससे आपकी पूजा अधिक प्रभावशाली मानी जाती है।