खरगे साहब ऑपरेशन सिंदूर को बदनाम मत करो…सैनिकों की आत्मा को लहूलुहान मत करो…

प्रखर – वाणी

खरगे साहब ऑपरेशन सिंदूर को बदनाम मत करो…सैनिकों की आत्मा को बयानबाजी से लहूलुहान मत करो…सिंदूर प्रकल्प कोई छिटपुट युद्ध नहीं था…यूं ही पाक उसके बाद जबरदस्त क्रुद्ध नहीं था…सेना ने दुश्मन के घर में तबाही मचाई है…सेटेलाइट से तस्वीरें भी दिखाई है…उनकी हौसलाफजाई नहीं कर सकते तो कम से कम हतोत्साहित तो मत करो…देश के स्वाभिमान की खातिर पाक के विरुद्ध सत्ता के साथ देने की जुगत करो…बंगाल के कसाई जनरल टिक्का खान के समय जब इंदिराजी ने पाक को धूल चटाई थी…

तब अटलजी ने संसद में इंदिराजी को दुर्गा स्वरूपा की उपाधि देकर विपक्ष की भूमिका बताई थी…अतीत के इन वाकयों से प्रेरणा लो खरगे जी ये देश के स्वाभिमान का सवाल है…आप कुछ भी बोल दोगे ये तो सहन योग्य नहीं है आपका बयान भूचाल है…विपक्ष में रहकर कब किस विषय पर सत्ता से बैर व कब प्रशंसा करनी चाहिए…ये सबकुछ आप खुद भी सीखिए और अपनी पार्टी के नेताओं को सिखाइये…शौर्य और पराक्रम के प्रदर्शन से फौजी पाक को ज़मीदोज़ कर रहे थे…दुश्मन के घर में घुसकर शक्ति की उड़ान भर रहे थे…

खुद पाक ने स्वीकार किया कि हमको भारी नुकसान हुआ है…लेकिन आपकी दृष्टि को न जाने किसका दुष्ट ज्ञान हुआ है…हमारे बहादुर सैनिक अपनी जान की परवाह किये बगैर दुश्मन के दांत खट्टे कर रहे थे…उनकी तारीफ करने के बजाय आपके शब्द उनके काम के बट्टे कर रहे थे…दलगत राजनीति में मानाकि विरोध का चलन है…मगर परम्पराए देखो विपक्षी भूमिका का क्या प्रचलन है…मोदी आपका व्यक्ति विरोधी हो सकता है प्रधानमंत्री पद नहीं…

सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना इतना बड़ा किसी का कद नहीं…आपकी जुबान पर लगाम रखकर तौल बयान में रखो…नाजुक समय में यदि तलवार है तो उसको म्यान में रखो…सीमा पर संगीने चलती है तो सीना छलनी जवान का होता है…उस वक्त आदेश और परिस्थिति पर हक कमान का होता है…तौल मोलकर बोल निकालो कोई मौन रहकर भी आहत है…कमल को पंजे से झपटना क्या यही तुम्हारी चाहत है..