जानिए कैसे हुई थी उज्जैन के चिंतामन गणेश मंदिर की स्थापना

उज्जैन के सबसे प्रसिद्ध गणेश मंदिरों में से एक चिंतामन गणेश मंदिर, जो ना केवल उज्जैनवासियों बल्कि पूरे देशभर के भक्तों के लिए एक आस्था का केंद्र है। आज गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर दूर-दूर से भक्त चिंतामन गणेश जी के दर्शन करने आ रहे है।

इस अति प्राचीन मंदिर की विशेषता यह है कि यहां भगवान गणेश तीन रूपों में विराजमान है। पौराणिक मानयता है कि चिंतामन गणेश मंदिर के गर्भ गृह में विराजमान तीन रूप चिंतामन, इच्छामन और सिद्धी विनायक गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना भगवान राम, लक्ष्मण और  माता सीता ने की थी। मान्यता है कि चिंतामन गणेश अपने भक्तो की चिंता हरते है, इच्छामन गणेश भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते है और सिद्धी विनायक गणेश भक्तों को सिद्धी प्रदान करते है।

भगवान गणेश के इन तीनो रूपों का श्रृंगार सिंदूर से किया जाता है। ये मंदिर उज्जैन से करीब 6 किलोमीटर दूर ज्वास्या में है। पौराणिक मान्यता है कि सतयुग में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मणजी जब वनवास पर थे तब वे यहां घूमते-घूमते आए थे। भगवान राम ने राजा दशरथ के पिंडदान के दौरान यहां आकर पूजा अर्चना की थी और वनवास के दौरान घूमते-घूमते माता सीता को बहुत प्यास लगी थी, तब लक्ष्मण जी ने इस स्थान पर तीर मारा था, जिससे पृथ्वी में से पानी निकला और यहां एक बावड़ी बन गई। माता सीता ने इसी जल से अपना उपवास खोला था।

मंदिर के सामने ही आज भी वह प्राचीन बावड़ी है, जिसे लक्ष्मण वावड़ी कहा जाता है। चिंतामन गणेश मंदिर का वर्तमान स्वरूप लगभग 250 साल पहले महारानी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था। वहीं इससे पहले भी परमार काल में भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार हो चुका है। ये मंदिर जिन खंभो पर टिका हुआ है वह परमार कालीन है।

उज्जैन के चिंतामन गणेश मंदिर में भक्त दर्शन करके मंदिर के पीछे उल्टा स्वास्तिक बनाकर मनोकामना करते है और जब उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है, तो वह वापस दर्शन करने आते है और मंदिर में सीधा स्वास्तिक बनाते है।