हनुमान जन्मोत्सव स्पेशल : इंदौर से लगभग 45 किलोमीटर दूर ओखला गांव में हनुमानजी का एक अतिप्राचीन मंदिर जिसे ओखलेश्वर धाम और अखिलेश्वर मठ भी कहते है। इस मंदिर में बजरंगबली वीर हनुमान की एक दुलर्भ और अनूठी प्रतिमा है जो सभी मंदिर में देखने को नहीं मिलती है। क्योकि ज्यादातर हनुमानजी की प्रतिमा के हाथ में द्रोणागिरि पर्वत होता है, लेकिन यहां भगवान हनुमानजी की मूर्ति के एक हाथ में शिवलिंग है।
यहां कुछ समय के लिए रूके थे हनुमानजी
अखिलेश्वर मठ के बारे में पौराणिक मान्यता है कि राम-रावण युद्ध से पहले हनुमानजी रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना के लिए लौट रहे थे। हनुमानजी नर्मदा की सहस्त्रधारा धावड़ी घाट से शिवलिंग लेकर लौट रहे थे। लेकिन यहां महर्षि वाल्मीकि का आश्रम होने के कारण वे कुछ समय के लिए यहां रुके थे। हालाकि जब तक हनुमानजी शिवलिंग लेकर रामेश्वरम पहुंचे तब तक वहां महादेव की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी थी। ऐसा माना जाता है कि वह शिवलिंग आज भी तमिलनाडु के धनुषकोटि में स्थापित है।
रोहिणी नक्षत्र में ही चोला चढ़ाया जाता है
ओखलेश्वर धाम में हनुमानजी महाराज को सिर्फ रोहिणी नक्षत्र में ही चोला चढ़ाया जाता है। जबकि अन्य मंदिरो में मंगलवार और गुरूवार को चोला चढ़ाया जाता है। सिर्फ इतना ही नही इस मंदिर परिसर में एक शिव मंदिर भी है, जिसे द्वापर काल का माना जाता है। ओखलेश्वर धाम इंदौर, खरगोन और देवास तीन जिलो की सीमा पर स्थित है। कहते है इस क्षेत्र को सुर्खियों मे लाने का श्रेय ब्रह्मलीन संत ओंकारदासजी महाराज को जाता है। उनके बारे मे कहा जाता है कि उन्होने पुष्कर के पास वामदेव की गुफा में कठोर तपस्या की थी। जिसके बाद शिवजी के आदेश से वे अखिलेश्वर मठ आए थे।
यहां अखंड रामायण का पाठ होता है
जिस समय वे यहां आए थे उस समय यहां घना जंगल हुआ करता था और जंगली जानवर भी काफी हुआ करते थे। ब्रह्मलीन संत ओंकारदासजी महाराज ने ही वर्षो से जीर्णशीर्ण इस मंदिर को पुन : जागृत किया था। साथ ही उन्होने सन् 1976 में मंदिर में अखंड रामायण का पाठ शुरू करवाया था जो अब तक जारी है। अखिलेश्वर मठ बाई ग्राम के नवग्रह शनि मंदिर से लगभग 18 किलोमीटर आगे है।