केपी ओली अब नहीं जा सकेंगे विदेश, नेपाल की अंतरिम सरकार ने लगाई सख्त पाबंदी

नेपाल की अस्थायी सरकार ने देश की राजनीतिक स्थिरता को ध्यान में रखते हुए पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और कई उच्च पदाधिकारियों के विदेश जाने पर रोक लगा दी है। इस पाबंदी का निर्णय 8 और 9 सितंबर को हुए हिंसक प्रदर्शनों की जांच कर रही तीन सदस्यीय कमेटी ने लिया है। यात्रा प्रतिबंध के दायरे में पूर्व गृह मंत्री रमेश लेखक, पूर्व गृह सचिव गोकर्णमणि दुवादी, राष्ट्रीय जांच विभाग के पूर्व प्रमुख हुतराज थापा और काठमांडू के पूर्व मुख्य जिला अधिकारी छबी रिजाल भी शामिल हैं।

जांच समिति और उसकी जिम्मेदारियाँ

जाँच समिति के प्रमुख हैं पूर्व सुप्रीम कोर्ट के जज गौरी बहादुर कार्की, जबकि अन्य सदस्य पूर्व पुलिस अधिकारी बिग्याण रान शर्मा और कानूनी विशेषज्ञ विश्वेश्वर प्रसाद भंडारी हैं। समिति को आदेश दिया गया है कि वह तीन महीनों के भीतर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपे। विशेषज्ञों का मानना है कि यह जांच न केवल हाल के प्रदर्शनों के कारणों को स्पष्ट करेगी, बल्कि भविष्य में ऐसी हिंसा रोकने के लिए ठोस कदम उठाने में भी मददगार साबित होगी।

हिंसक प्रदर्शन और मौतों की भयावहता

8 और 9 सितंबर को हुए प्रदर्शनों में 72 लोग मारे गए, जिनमें 3 पुलिसकर्मी भी शामिल थे। विरोध प्रदर्शनकारियों ने अपनी नाराजगी के रूप में भक्तपुर के बालकोट स्थित केपी ओली के आवास को आग के हवाले कर दिया। इस हिंसा के बाद ओली ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया, जिससे देश में राजनीतिक अस्थिरता और बढ़ गई।

ओली की सुरक्षा और वर्तमान स्थिति

जब हिंसा चरम पर थी, तब ओली प्रधानमंत्री आवास में थे, लेकिन स्थिति बिगड़ने पर उन्हें सेना के हेलीकॉप्टर के माध्यम से सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया। 11 सितंबर को उन्होंने स्पष्ट किया कि वे न तो दुबई गए हैं और न ही चीन, बल्कि शिवपुरी में नेपाली सेना के सुरक्षा घेरे में सुरक्षित हैं। फेसबुक पर साझा किए गए खुला पत्र में ओली ने लिखा कि वे सेना के जवानों के बीच सुरक्षित हैं और इस सन्नाटे के बीच भी देश के बच्चों और युवाओं की याद कर रहे हैं।

युवा विरोध और गिरफ्तारी की मांग

विशेष रूप से Gen-Z युवा समूह ने पूर्व प्रधानमंत्री ओली और पूर्व गृह मंत्री लेखक की गिरफ्तारी की मांग की है। उनका आरोप है कि इस हिंसा में पुलिस की भूमिका संदेहास्पद रही और गोलियों की बरसात के लिए पुलिस को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।

इस घटनाक्रम ने नेपाल में राजनीतिक संकट को और गहरा दिया है। अब सभी की निगाहें जाँच समिति की रिपोर्ट पर टिकी हैं, जो यह तय करेगी कि भविष्य में ऐसी हिंसा को कैसे रोका जा सकता है और राजनीतिक स्थिरता बहाल की जा सकती है।