पिछले डेढ़ महीने में मध्य प्रदेश में सड़क हादसों में 1656 लोगों की जान जा चुकी है। 2022 के आंकड़ों के मुताबिक सड़क दुर्घटनाओं में मध्य प्रदेश देश में दूसरे स्थान पर है. मध्यप्रदेश विधानसभा में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में बताया गया है कि प्रदेश में डेढ़ महीने में 1656 मौत हुई हैं। यानी प्रतिदिन 47 परिवारों में भयंकर मातम ने अपने पैर पसारे हैं। सड़क दुर्घटना में होने वाली मौत के ये भीषण आंकड़े इतने डरावने हैं, इतने हृदय विदारक हैं कि किसी भी इंसान का दिल एक दिन में सड़क पर इतनी बड़ी संख्या में हुई असमय मौत को देखकर दहल उठेगा।
पूरे उत्तर को ध्यान से पढ़ने पर आप पायेंगे कि इन मौतों का प्रमुख कारण है अप्रशिक्षित वाहन चालकों द्वारा वाहन को दौड़ाना। यातायात नियम उल्लंघन दूसरे प्रमुख कारण के रूप में उभर कर आया है। दोनों कारण एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। 1026 मौत तीव्र गति से वाहन दौड़ाते हुए हुई हैं। 152 लोग हेलमेट ना पहनने के कारण मारे गए। 40 लोग सीट बेल्ट ना लगाने के कारण काल कवलित हुए है तो 40 लोगों ने ट्रेफिक नियम उल्लंघन (जैसे रेड लाइट जंप, रोंग साइड वाहन चलाना) करते हुए मृत्यु का आलिंगन किया है। इसके अलावा 944 लोगों के घायल होने की भी जानकारी दी गई है।
सड़क सुरक्षा नियमों का पालन करना जरूरी है
मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने कहा कि सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए यातायात नियमों का पालन करना अनिवार्य है. इसके लिए जागरूकता अभियान भी चलाया जा रहा है. हेलमेट व सीट बेल्ट का प्रयोग, गति सीमा का पालन तथा यातायात नियमों का समुचित पालन करके दुर्घटनाओं को रोका जा सकता है।
यह देखने में आया है कि हमारे परिवारों में बच्चों को ना तो यातायात नियम पालन संस्कार दिए जाते हैं और ना ही उन्हें वाहन चालन का प्रशिक्षण लेने के लिए ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल भेजा जाता है। यातायात नियमों के प्रति हमारा उदासीन रवैया और सुरक्षित ड्राइविंग की ट्रेनिंग को गैर जरूरी समझना एक ऐसा अपराध है जिसकी परिणीती परिवार के सदस्य की मौत के रूप में सामने आ रही है।
अगर अब भी हम आंखे मूंदे बैठे रहेंगे तो वह दिन दूर नहीं जब सड़के रक्त रंजित नजर आएगी और घरों में सड़क दुर्घटना जनित मातम पसरा पाया आयेगा।
हमें यह समझना होगा कि एक अप्रशिक्षित ड्राइवर के हाथों में वाहन आवागमन के साधन की बजाय मौत के दूत का स्थान ले लेता है। हमें अपने बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उन्हें सुरक्षित ड्राइविंग की पूर्ण ट्रेनिंग आवश्यक और अनिवार्य रूप से दिलवाने के बाद ही उनके हाथों में गाड़ी की चाबी थमाने के बारे में सोचना चाहिए। अन्यथा पछतावा ही हाथ आयेगा। अपने बच्चों की जान के दुश्मन ना बनें उन्हें यातायात नियम पालन संस्कार दें और सुरक्षित ड्राइविंग की ट्रेनिंग भी दिलवाएं। अपनी संतानों से प्यार कीजिए और उनके जीवन की चिंता कीजिए। उनको बगैर विधिवत प्रशिक्षण गाड़ी मत चलाने दीजिए।
लेकिन यह प्रशिक्षण कहां और कैसे मिलेगा, प्रदेश के बड़े शहरों को छोड़ दें तो मंझौले और छोटे कस्बों में लोग जानते ही नहीं कि ऐसा भी कोई स्कूल होता है। बड़े शहरों में भी किसीसे ड्राइविंग ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के बारे में पूछा जाय तो वो अपना सर खुजाने लगेंगे। चार पहिया वाहन चलाने का प्रशिक्षण देने वाले ट्रेनिंग संस्थान तो फिर भी इक्का दुक्का मिल जायेंगे लेकिन दोपहिया चलाने का प्रशिक्षण ना तो कोई लेता है और ना ही कोई देने वाला स्कूल मिलेगा। पूरे प्रदेश में जहां हजारों की संख्या में रोजाना नए लायसेंस बनाए जाते हैं वहां ट्रेनिंग स्कूलो की संख्या तुलनात्मक रूप से नगण्य है। प्रशिक्षुओं की अल्प संख्या के चलते कोई भी इस घाटे के व्यवसाय में नहीं आना चाहता। जो स्कूल किसी तरह चल रहे हैं वो संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। दूसरी तरफ ड्रायविंग प्रशिक्षक बनने के लिए कोई मान्यता प्राप्त कोर्स आसानी से उपलब्ध नहीं है और कोर्स पूरा करने के बाद रोजगार मिलने की कोई संभावना दिखाई नहीं पड़ती। ड्राइविंग ट्रेनिंग संस्थानों की यह भयावह स्थिति बताती है कि हम वाहन चालन प्रशिक्षण के प्रति अत्यंत उदासीन भाव रखते हैं।
सरकार को भी चाहिए कि वो बड़ी संख्या में ड्राइविंग ट्रेनिंग स्कूल खोलने पर ध्यान दे और यह सुनिश्चित किया जाय कि बगैर समुचित प्रशिक्षण के ड्राइविंग लायसेंस ना बनें। प्रशिक्षक बनने के लिए विशेष कोर्स शुरू किए जाते और युवाओं को रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाये जाएं। सड़कों पर लोगों को सुरक्षित रखने के लिए सुरक्षित ड्राइविंग ट्रेनिंग के इस महत्वपूर्ण पहलू के बारे में चिंता करना और इसकी अनिवार्यता को लेकर कड़ा रुख अपनाना जरूरी है।
– राजकुमार जैन, यातायात प्रबंधन मित्र