सरकारी Yojana : कहो तो कह दूं: फूफा, साला, मामा क्या ये लाड़ले नहीं हैं ?


लेखक
चैतन्य भट्ट
अपने मध्य प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लाडली बहना योजना ( Yojana ) शुरू कर हर महिला को एक हजार रुपए देने का जो दांव चला था उसने भारतीय जनता पार्टी के फिर से सत्ता में ला दिया, अब महाराष्ट्र चुनाव होने वाले हैं, शिंदे सरकार ने सोचा कि अपन कौन सी स्कीम बनाए ताकि एक बार फिर से मुख्यमंत्री की गद्दी हासिल हो जाए तो उन्होंने लाडली बहना की तर्ज पर लाडला भैया योजना शुरू कर दी जिसमें युवकों को हर महीने एक निश्चित धनराशि दी जाएगी, उधर छत्तीसगढ़ में महतारी’ योजना चालू है उसमें भी महिलाओं को सरकारी खजाने से पैसा दिया जा रहा है।

सरकारी Yojana में सिर्फ भैया-बहन ही लाड़ले क्यों

अब दूसरे नाते रिश्तेदार आवाज उठा रहे हैं की क्या सिर्फ भैया और बहन ही लाडले होते हैं ? क्या फूफा, साला साली, बहनोई, देवरानी जेठानी, साडू भाई मौसा मौसी, मामा भांजा, चाचा भतीजा, ननद भाभी, पोता पोती, नाती नातिन, ये लाडले नहीं होते। फूफा का तो अपने समाज में बड़ा जबरदस्त जलवा रहता है हर शादी ब्याह में फूफा कब मुंह फुला कर बैठ जाए कोई कह नहीं सकता, इसलिए किसी की व्यवस्था हो ना हो लेकिन फूफा की व्यवस्था जरूरी हो जाती है। दुल्हन का भाई साला भी बहुत महत्वपूर्ण होता है, साडू भाई की अपनी स्थिति है क्योंकि वो दूल्हे के समकक्ष होता है मामा भांजे का रिश्ता अपने आप में बड़ा पवित्र है। मामा उल्टा भांजे के पैर पड़ता है छोटा क्यों ना और फिर भांजा मानदान भी होता है, दामाद का तो पूछना ही क्या हर मां-बाप अपने दामाद को अपनी ताकत से ज्यादा देने का प्रयास करते हैं। इधर ननद भाभी का रिश्ता भी बड़ा ही नाजुक होता है जैसे ही भाभी पहली बार घर में आती है सबसे पहले उसके आसपास ननद ही मंडराती दिखाई देती है। यानी कुल मिलाकर ये तमाम रिश्ते बड़े ही महत्वपूर्ण हैं लेकिन कोई भी सरकार इन्हें लाडला मानने तैयार नहीं है और जब तक इन्हें लाडला नहीं मानेगी तब तक इनको पंजी नहीं मिलने वाली । अब ये सब कह रहे हैं कि जब जनता का पैसा लुटाना ही है तो हम लोगों ने ऐसा कौन सा पाप किया है ? अरे भाई कोई हजार रुपए महीना दे रहा तो कोई पांच हजार महीना तो कोई छह हजार महीना, हम लोगों को ज्यादा नहीं पांच पांच सौ रुपया महीना शुरू कर दो, साल में छह हजार की व्यवस्था तो हो जाएगी और ये भी महसूस होगा कि हां सरकार हमें अपना लाडला मानती है लेकिन अभी तो सरकार का ऐसा कोई मूड दिखाई नहीं देता कि इन लाड़लों के लिए भी कोई योजना लागू की जाए, लेकिन अगर लाडला भैया से भी जीत हासिल नहीं हुई तो हो सकता है कि अगले चुनाव में इन सबको लाडला मानकर सरकार इनको भी हर महीने कुछ पैसे देना शुरू कर दे क्योंकि आजकल तो वोट पैसे से खरीदे जाते हैं।

बेचारे मंत्री और विधायक

अपने को तो अभी तक ये मालूम था सरकार में मंत्री और विधायक बड़े ही पावरफुल होते हैं एक झटके में जो चाहे वो कर सकते हैं विधायक तो फिर भी ठीक है लेकिन मंत्री तो मंत्री होता है पूरा डिपार्टमेंट उसके अंडर में रहता है दूसरा डिपार्टमेंट भी उनके जैसे ही मंत्री संभालते हैं यानी एक मंत्री का जलवा पूरी सरकार पर बना रहता है लेकिन अब ये पता लगा कि अफसरों के सामने इन मंत्रियों और विधायकों की कोई हैसियत बची नहीं है। मंत्रियों विधायकों से ज्यादा पावरफुल अफसर हो गए हैं और वे भी कोई बहुत बड़े अफसर नहीं साधारण से टी आई, आरटीओ और छोटे-मोटे अफसर । बड़े अफसर की तो बात ही छोड़ दो जब ये छोटे अफसर इन मंत्रियों और विधायकों की नहीं सुन रहे तो फिर आम जनता की क्या औकात है । अब देखो ना मंत्री महेंद्र सिंह कंसाना ने प्रेस कांफ्रेंस करके बताया कि उनके इलाके का एक टीआई है वो झूठी झूठी एफआईआर दर्ज करता है लोगों को फंसाता है और उनकी भी नहीं सुनता। उधर दूसरी तरफ फायर ब्रांड हिंदू नेता विधायक रामेश्वर शर्मा अपने इलाके के आरटीओ से हलाकान हैं उनका कहना है कि आरटीओ अपनी मर्जी का मालिक है कोई उस पर नकेल नहीं डाल पा रहा है, विधायक प्रीतम लोधी ने तो साफ-साफ कह दिया कि जब उनकी कोई सुनवाई नहीं है और उनको टारगेट किया जा रहा है तो बेहतर है कि वे विधायकी ही छोड़ दें ।अब आप ही सोच लो कि अफसरशाही कितनी पावरफुल होती है। लोग बेवजह राजनीति में आने के लिए करोड़ों रुपया खर्च करते हैं उससे बेहतर है कोई भी डिपार्टमेंट में किसी तरह से जुगाड़ लगाकर घुस जाओ नेता आपके हाथ पैर जोड़ते हुए दिखाई देंगे क्योंकि अधिकार तो उनके ही पास हैं फाइल तो उनको ही चलाना है स्कीम तो उनको ही बनाना है ,मंत्री विधायक का क्या है जैसा समझा दोगे समझ जाएंगे लेकिन अब मुख्यमंत्री जी को सोचना होगा कि जब उनके मंत्री और विधायकों की ये दुर्दशा है तो उनकी रियाया का क्या हाल होगा ।

साल भर का प्रोग्राम

स्कूल शिक्षा विभाग ने एक आदेश जारी कर दिया जिसमें सरकारी स्कूलों के मासाब और मास्टरनियों के लिए आदेश आया है कि वे पूरे सत्र का प्लान बनाकर जमा करें कि वे पूरे साल भर में क्या-क्या करेंगे। मासाब और मास्टरनियां बेचारे क्या बताएंगे कि वे साल भर क्या करेंगे लेकिन अपन बतलाए देते हैं कि इनको साल भर में क्या-क्या करना है ।

नंबर एक- घर-घर जाकर सर्वे करना है कि कौन सा बच्चा बच्ची स्कूल नहीं आ रहे हैं उनको पकड़ पकड़ कर स्कूल लाना यानी मोहल्ले मोहल्ले घर-घर सर्वे का काम उनके जिम्मे है।
नंबर दो-अब जनगणना का समय साथ आ गया है 2011 के बाद जनगणना हुई नहीं तो किसी भी दिन जनगणना के आदेश आ सकते हैं तो मास्टर मास्टरनियां इसके लिए तैयार रहे जनगणना करना होगी कितने स्त्री हैं कितने पुरुष है यह सब डाटा इकट्ठा करना पड़ेगा ।
नंबर तीन-कभी भी कोई भी चुनाव हो सकता है और चुनावी ड्यूटी के लिए सबसे आसान शिकार होता है मास्टर मास्टरनियां जिधर चाहे ड्यूटी लगा दो और नहीं गए तो सस्पेंशन पक्का।
नंबर चार-आप कितने ही साल पढ़ा चुके हो रिटायरमेंट को कहो एक-दो महीना बचे हों लेकिन सरकार आपको प्रशिक्षण जरूर देगी तो कभी भी ट्रेनिंग और शिक्षक प्रशिक्षण शुरू हो जाएगा । नंबर पांच । स्कूल के कार्यकलापों की, बाहर से आने वाले पत्रों की डाक बनाना है उन्हें डी ई ओ ऑफिस भेजना है । अब इन तमाम कामों से जब कभी दो-चार-पांच दिन की फुर्सत मासाबों और मास्टरनियों को मिलेगी तो वे पढ़ा देंगे और अगर नहीं मिली तो फिर ऊपर वाला जाने । वैसे भी जब इतने सारे काम इनके सर पर हैं तो उन बिचारों को पढ़ाने का समय मिले तो मिले कैसे ? अपना तो कहना है कि तमाम टीचर्स इन कामों की लिस्ट बनाकर उनकी फोटो कॉपी करवा कर सरकार को भेज दें ताकि उन्हें भी पता लगे कि जिनके जिम्मे बच्चों को पढ़ाने का काम है उनके सर पर कौन-कौन से कामों का बोझ सरकार ने डाल कर रखा हुआ है ।
(लेखक के ये स्वतंत्र विचार हैं)