खेतों में यूरिया के अत्यधिक इस्तेमाल से मिट्टी की सेहत बिगड़ रही है। जमीन में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश और जिंक की कमी होने लगी है। इसके साथ ही मानव स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ रहा है। इस का खुलासा मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला की वर्ष 2024-25 की रिपोर्ट में हुआ है।
मिट्टी की क्षमता से खिलवाड़
कृषि वैज्ञानिकों ने चिंता जाहिर करते हुए किसानों को संयमित उपयोग करने की सलाह दी है। किसानों को मक्का, सोयाबीन सहित अन्य फसलों में एक एकड़ में दो बोरी यूरिया की जरूरत है। वे ज्यादा उत्पादन के लालच में बेहिसाब 5-6 बोरी तक इस्तेमाल कर रहे हैं। इससे पौधे की ग्रोथ समय से ज्यादा होने पर फसल लेट रही है। फसल की लागत भी दोगुनी हो रही है। यूरिया के इस्तेमाल से केवल नाइट्रोजन और डीएपी से नाइट्रोजन, फासफोरस की पूर्ति होती है। पोटाश, जिंक की कमी बनी रहती है। वैज्ञानिकों के अनुसार यदि किसान एनपीके और जिंक का संतुलित इस्तेमाल कर लें तो मिट्टी की सेहत सुधर सकती है।
प्राकृतिक उर्वकता हो रही है खत्म
यूरिया का ज्यादा उपयोग मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता को कम कर सकता है, जिससे फसल उत्पादन लंबे समय तक प्रभावित हो सकता है। पौधों की पत्तियों को कमजोर कर सकता है। इससे फसल का विकास रुक सकता है। जड़े भी खराब हो सकती हैं। अत्यधिक यूरिया पौधों को अधिक मुलायम और नरम बना देता है। इससे कीट लगने की संभावना बढ़ जाती है।
यूरिया से जल-वायू प्रदुषण बढ़ा
यूरिया नाईट्स आक्साईड गैस का उत्पादन करता है, जो वायु प्रदूषण का कारण बन सकता है। यह पानी में नाइट्रेट की मात्रा को भी बढ़ाता है और जलीय जीवों को नुकसान पहुंचा सकता है। उच्च बीपी विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का संकेत हो सकता है। जैसे किडनी, यकृत या हृदय विफलता। बच्चों में सांस लेने में तकलीफ, त्वचा रोग आदि।
दवाई से हो गई 500 बीघा की फसल बर्बाद
किसानों के द्वारा यूरिया और दवाई का इस्तेमाल करने से फसलें खराब हो गई है। बताया जा रहा है यहां के किसानों ने खेतों में खरपतवार नष्ट करने के लिए दवाई डाली। दवाई से 30 किसानों की करीबन 500 बीघा फसल पूरी तरह नष्ट हो गई।