political parties में दल बदलू नेताओं की हो रही किरकिरी

लेखक
रमेश सर्राफ धमोरा

इन दिनो बीजेपी में कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों ( political parties ) से आने वाले या कहें दलबदलू नेताओं को शामिल करने का सिलसिला लगातार जारी है। दूसरे दलों के दागी नेताओं को भी भाजपा में दनादन शामिल कर उन्हे दाग मुक्त किया जा रहा है। लेकिन हाल ही में भाजपा के जयपुर मुख्यालय पर एक अजीब ही नजारा देखने को मिला जिसे देखकर भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं की किरकिरी हो रही है।

भाजपा से निष्कासित नेताओं की घर वापसी मजाक का पात्र बन रही है। गत दिनो इसी तरह का नजारा भाजपा कार्यालय में देखने को मिला। जहां सीकर, झुंझुनू से आए नेता और कार्यकर्ताओं को चार घंटे इंतजार के बाद भी भाजपा में ज्वाइनिंग नहीं हो पाई। उन्हे बैरंग ही अपने घर लौटना पड़ा। सीकर जिले के फतेहपुर से पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा टिकट नहीं मिलने पर निर्दलिय चुनाव लडऩे वाने पूर्व विधायक नन्दकिशोर महरिया अपने समथकों को लेकर भाजपा कार्यालय में घर वापसी करने आये थे। उन्ही की तरह फतेहपुर नगर पालिका के पूर्व चैयरमैन मधूसुदन भिंडा, झुंझुनू से निर्दलिय चुनाव लडऩे वाले राजेन्द्र भाम्भू, पिलानी से निर्दलिय चुनाव लडऩे वाले कैलाश मेघवाल अपने काफी समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल होने आये थे। भाजपा कार्यालय में चार घंटे तक इंतजार करवाने के बाद भी उनको कियी ने पार्टी की सदस्यता नहीं दिलवायी तो मजबूरन उन्हे भाजपा में शामिल हुये बिना ही बैरंग अपने घर लौटना पड़ा। इस घटना पर कई नेताओं ने अपने अपमान पर भाजपा नेताओं को खरी-खरी भी सुनाई।चर्चा है कि इस घटनाक्रम से पहले सभी नेताओ ने चार घंटे तक नरेन्द्र मोदी के जयकारे भी लगवाये गये। मगर फिर भी इन्हे भाजपा में शामिल नहीं किया गया। मीडिया से बात करते हुए नंदकिशोर महरिया ने कहा कि छात्र जीवन से ही वह एबीवीपी से जुड़े रहें हैं। उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि भी भाजपा की रही है। उनके बड़े भाई सुभाष महरिया भी तीन बार भारतीय जनता पार्टी से सांसद व बाजपेयी सरकार में मंत्री रहे हैं। वो खुद भी 2013 में फतेहपुर से निर्दलीय विधायक बने और उसके बाद भी विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी की नीति के साथ रहे। उन्होंने बताया कि 2018 व 2023 में पार्टी से टिकट मांगा था लेकिन किसी कारण से नहीं मिला। भावनाओं में आकर निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन अब भी पार्टी से जुड़ाव है। ऐसे में भाजपा का दमन थामने आए हैं।2023 विधानसभा चुनाव में फतेहपुर सीट से नन्द किशोर महरिया ने जेजेपी पार्टी से ताल ठोकी थी। उनके प्रचार अभियान में जेजेपी और हरियाणा के चौटाला परिवार के दिग्गज नेता भी शामिल हुए थे। लेकिन चुनाव नतीजों में वे तीसरे नंबर पर रहे थे। इससे पहले नन्द किशोर महरिया 2003 और 2008 में फतेहपुर से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। 2013 में टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय चुनाव लडक़र विधायक बने थे।झुंझुनू के राजेंद्र भांभू ने कहा कि विचारधारा से हम शुरू से ही संघ पृष्ठभूमि के लोग हैं। राष्ट्रवाद हमारे अंदर कूट-कूट कर भरा हुआ है.।विधानसभा चुनाव में कुछ बातों को लेकर पार्टी से बगावत की थी। एक व्यक्ति विशेष को हमने स्वीकार नहीं किया। इसलिए निर्दलीय चुनाव लडऩे का कदम उठाना पड़ा। हालांकि वैचारिक रूप से भारतीय जनता पार्टी से रंगे बसे हैं इसलिए घर वापसी के लिए आए हैं। भाम्भू 2018 में भाजपा टिकट पर झुंझुनू से विधानसभा चुनाव लड़ कर हार चुके थे।
वहीं पिलानी के कैलाश मेघवाल ने कहा कि वो पार्टी के समर्पित कार्यकर्ता रहे हैं। काफी सालों से पार्टी से जुड़े हुए हैं। लेकिन किसी परिस्थतियों के चलते 2023 में विधानसभा से टिकट कट गया। इसके चलते निर्दलीय चुनाव लडऩा पड़ा लेकिन इस गलती को मैंने भी एहसास किया। अब फिर से पार्टी के साथ जुडऩे का फैसला किया। इस बात की खुशी है कि पार्टी ने 6 साल की बजाय 3 महीने में ही घर वापसी का मौका दिया है। कैलाश मेघवाल भाजपा से प्रधान रह चुके हैं तथा 2018 में भाजपा टिकट पर पिलानी सीट से चुनाव लड़ कर हार चुके हैं। इनके पिता सुन्दरलाल सूरजगढ़ व पिलानी से आठ बार विधायक व मंत्री रह चुके हैं। फतेहपुर से मधूसुदन भिंडा के पिता फूलचंद भिंडा भाजपा से विधायक रह चुके हैं।दरअसल, राजेंद्र भांभू, कैलाश मेघवाल, मधूसुदन भिंडा और नंदकिशोर महरिया को 2023 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में भाजपा से टिकट नहीं मिला था। इस पर चारों ने बगावती तेवर अपनाते हुए निर्दलीय चुनाव लड़ा। नंदकिशोर महरिया व मधूसुदन भिंडा ने फतेहपुर से राजेंद्र भांभू ने झुंझुनू और कैलाश मेघवाल ने पिलानी सीट से भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ा। पार्टी के खिलाफ जाकर चुनाव लडऩे वाले राजेंद्र भांभू और कैलाश मेघवाल को पार्टी ने 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया था।भाजपा में शामिल होने वाले नेताओं को पार्टी में शामिल नहीं किये जाने के अलग-अलग कारण बताये जा रहें हैं। लोगों का कहना है कि जिन्होने पार्टी टिकट पर चुनाव लड़ा था उनके विरोध के चलते इनकी घर वापसी नहीं हो पायी। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि भाजपा हर किसी को शामिल कर रही है। ऐसे में इनको इंतजार करवा कर खाली हाथ घर भेजने के पीछे पार्टी से जुड़े किसी बड़े नेता का हाथ बताया जा रहा है। बहरहाल इनके साथ चैबे जी छब्बे जी बनने के चक्कर में दुबे जी बन गये वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। इस घटना के बाद भाजपा में शामिल होने वाले विशेष सतर्कता बरतने लगे हैं कि कहीं उनके साथ भी ऐसा खेला ना हो जाये।
(ये लेखक के स्वतंत्र विचार हैं।)
( लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।)