कूनो नेशनल पार्क से भागे चीते रिहायशी इलाकों के करीब, मुरैना हाईवे पर दिखी चीतों की फौज, खतरा बढ़ा!

मुरैना, मध्यप्रदेश: जौरा इलाके के लोगों को उस समय बड़ा झटका लगा जब उन्होंने अपनी आंखों के सामने जंगल के सबसे तेज शिकारी – चीते – को नेशनल हाईवे पार करते देखा। ये कोई एक या दो नहीं, बल्कि पूरे पांच चीते थे, जो कूनो नेशनल पार्क की सीमा से बाहर निकलकर खुले जंगलों की ओर बढ़ते नजर आए।

सोशल मीडिया पर इस घटना का वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें साफ दिख रहा है कि कैसे ये चीते सड़क पार कर पगारा डैम की ओर बढ़ रहे हैं। यह दृश्य जितना रोमांचित करने वाला है, उतना ही खतरनाक और चिंताजनक भी, क्योंकि यह सवाल खड़ा करता है कि क्या इंसानों और जंगली जानवरों के बीच की सीमाएं अब खत्म हो रही हैं?

पार्क से बाहर निकलने लगे चीते

कुछ समय पहले कूनो पार्क के कई चीतों को बाड़े से निकालकर खुले जंगल में छोड़ा गया था ताकि वे खुद से अपना इलाका बना सकें। लेकिन हाल के दिनों में ये चीते लगातार पार्क की सीमा पार कर रिहायशी इलाकों की ओर जाने लगे हैं। यह पहला मौका है जब एक साथ पांच चीते पार्क से बाहर देखे गए हैं। इससे पहले कभी-कभी एक या दो चीते ही बाहर निकलते थे।

गांवों में डर का माहौल

इस घटना के बाद जौरा और आस-पास के गांवों में दहशत फैल गई है। खेतों में काम करने वाले लोग अब सतर्क होकर काम पर जा रहे हैं और बच्चों को बाहर न निकलने की सलाह दी जा रही है। लोगों को डर सता रहा है कि अगर चीते इंसानी बस्तियों तक पहुंच गए, तो कोई बड़ा हादसा हो सकता है।

वन विभाग ने बढ़ाई निगरानी

वन विभाग की टीम पूरी तरह सतर्क हो गई है। चीतों की GPS ट्रैकिंग, ड्रोन कैमरों की निगरानी और फॉरेस्ट गार्ड्स की तैनाती के ज़रिए हर गतिविधि पर नजर रखी जा रही है। विभाग की कोशिश है कि इन चीतों को सुरक्षित तरीके से वापस पार्क में लाया जाए।

प्रोजेक्ट चीता: बड़ी उम्मीद, बड़ी चुनौती

भारत में चीते 1952 में विलुप्त घोषित कर दिए गए थे। लेकिन सितंबर 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नामीबिया से लाए गए 8 चीतों को कूनो में छोड़कर ‘प्रोजेक्ट चीता’ की शुरुआत की थी। कूनो को इसलिए चुना गया था क्योंकि वहां की जलवायु और भूगोल, अफ्रीका के पर्यावरण से मेल खाती है। इसके बाद और भी चीते लाए गए और उन्हें खुले जंगलों में छोड़ा गया। लेकिन इस प्रोजेक्ट को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा—कुछ चीते बीमारी, अनुकूलन की कमी या आपसी लड़ाई में मारे गए। वहीं, कई चीते रिहायशी इलाकों की ओर भागने लगे, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष का खतरा बढ़ गया।