इंदौर में बढ़ता हुआ ट्रैफिक जाम न केवल समय की बर्बादी का कारण बन रहा है, बल्कि यह अब जान के लिए भी खतरा बन चुका है। तन्मय के साथ हुई घटना इस बात का जीता-जागता उदाहरण है, जिसमें लाइफ सेविंग का “गोल्डन ओवर” ट्रैफिक में फंस जाता है। “गोल्डन ओवर”
वह समय होता है जो दुर्घटना के बाद का पहला घंटा, जिसमें घायल व्यक्ति को तुरंत उचित चिकित्सा सहायता मिलने से उनकी जान बचने की संभावना सबसे अधिक होती है. ऐसा ही हार्ट अटैक के मामले में भी होता है यदि किसा हार्ट अट्रेक के लक्षण दिखाई दे रहे है तो उसे तुरंत अस्पताल ले जाया जाता है इस दौरान यदि यह समय खत्म हो जाता है तो खतरा बढ़ जाता है। यह समय बीतने के बाद उसे बचाना लगभग नाकाम हो जाता है। ऐसा ही दर्दनाक हादसा तन्मय भट्ट के साथ हुआ जो कि पूर्व आईएए अरूण भट्ट के इकलौते बेटे थे।
इमरजेंसी में 20 मिनट ट्रैफिक में फंसी रही कार
घऱ पर तन्मय भट्ट को अचानक घबराहट होने पर परिजन तन्मय भट्टो को लेकर बांबे हास्पिटल जाने के लिए निकले लेकिन कार को रोबोट चौराहे पर 20 मिनट तक ट्रैफिक में फंसा रहना पड़ा। यह “गोल्डन ऑवर” का समय था, जब हर मिनट कीमती होता है, और ट्रैफिक की वजह से उस कीमती समय की बर्बादी हो गई। इसके बाद जब तन्मय भट्ट को बांबे अस्पताल ले जाया गया तब तक लाइफ सेविंग समय खत्म हो चुका था। जिसके चलते तन्मय भट्ट की इलाज के दौरान मौत हो गई।
जानलेवा हो गया है इंदौर का ट्रैफिक
यह गंभीर समस्या इंदौर की स्वच्छ और विकसित छवि को एक बड़ा धब्बा लगा रही है। इस अव्यवस्थित ट्रैफिक की वजह से न जाने कितनी घटनाएँ हो रही हैं, जो न केवल शहरवासियों के लिए एक चेतावनी हैं, बल्कि प्रशासन, पुलिस, निगम, और प्राधिकरण की जिम्मेदारी को भी उजागर करती हैं। अब वक्त आ चुका है जब इंदौर के हर नागरिक को, प्रशासन को, और संबंधित सभी विभागों को मिलकर इस समस्या का हल ढूँढना होगा। हमें सभी प्रयासों को एक साथ जोड़कर शहर में व्यवस्था और सुरक्षा को बेहतर बनाना होगा। अगर हम सभी साथ आकर इसे गंभीरता से नहीं लेंगे, तो इन घटनाओं का सिलसिला लगातार जारी रहेगा, और इंदौर की छवि और भी खराब होती जाएगी।