न राम भगवान पीते थे, न उनके आगमन पर शराब परोसी थी, तो diwali पार्टी में ड्रिंक क्यों!


बात रस
राजेश राठौर

दिवाली ( diwali )…जैसा पवित्र धार्मिक त्योहार भी अब पथभ्रष्टों ने बिगाड़ दिया। जिसको देखो वो कहता है कि दिवाली पार्टी में आना है, कॉकटेल भी रखी है। यह सुनकर ही पहले तो यह लगता है कि दिवाली की पार्टी है या दारू पार्टी। समाज के हर हिस्से में घुलने वाली शराब लोगों का जीवन बर्बाद कर रही है और घर के बड़े बुजुर्ग आंख बंद करके यह सब देख रहे हैं। उनका कहना है कि बच्चे आजकल के नहीं सुनते, ज्यादा कुछ कहो तो लड़ने-झगड़ने लगते हैं।

diwali की पार्टी में दारू पिलाना आम बात

जिस तरह से समाज के कुछ लोग हर बार दारू पार्टी करने लगे हैं उसी तरह से अब दिवाली ( diwali  ) की पार्टी में दारू पिलाना आम बात होती जा रही है। अब तो इस बात का इंतजार है कि दारू के साथ नॉनवेज भोजन भी दिवाली पार्टी में कब परोसा जाएगा। जिस तेजी से गलत लोगों के चंगुल में आकर हिंदू समाज का युवा दिन-पर-दिन बिगड़ता जा रहा है, वो बड़ी चिंता का विषय है लेकिन किसी भी सामाजिक संगठन या राजनीतिक दल को इस बात की चिंता नहीं है। ‘मीठा बोलो, अपना स्वार्थ पूरा करो और आगे बढ़ो’ के विचार ने सबकुछ बिगाडक़र रख दिया। पानी की तरह दारू सप्लाई होने लगी लेकिन सवाल इस बात का उठता है कि दिवाली का त्योहार क्यों मनाया जाता है। जैसा बताया जाता है कि दिवाली राम जी के 14 साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटने पर मनी थी, उसी धार्मिक कारण से हिंदू समाज इस पर्व को मनाता है। दुर्भाग्य इस बात का है कि कोई भी इन दारू पार्टियों का न तो बहिष्कार करता है और न ही विरोध करता है। हिंदू समाज के पतन का सबसे बड़ा कारण यही बनेगा कि जो सच बोलते हैं, गलत करने से रोकते हैं, उनका विरोध किया जाता है।
सिर्फ भगवान के नाम के नारे लगाने या मंदिर में पूजा करने से ही हिंदू समाज नहीं सुधर पाएगा। हिंदुओं में, खासतौर से बड़े समाज में ‘समाज की विकृति’ का जो कारण बनता जा रहा है वो लोग समझने को तैयार नहीं हैं। कारण साफ है कि हमें किसी का विरोध नहीं करना चाहिए। वैसे आजकल कोई भी, किसी का विरोध नहीं करता है क्योंकि उसको पता है कि विरोध करने वाले का हश्र बुरा होता है। हिंदू समाज में नशाखोरी तेजी से लोगों के घरों में प्रवेश करती जा रही है। जिस तरीके से अब सामूहिक परिवार से एकल परिवार की परंपरा समान्य घटना हो गई है, उसी तरीके से सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर युवा किसी की बात मानने को तैयार नहीं हैं। दिवाली पर भी युवाओं की ‘दिवाली पार्टी’ पव में नशे के साथ मन रही है। न तो अब रिश्तेदारों के यहां जाकर पैर पडऩे की परंपरा बची है और न ही त्योहार के प्रति आस्था बची है।
युवा जिस तरीके से मनमाने फैसले ले रहे हैं और माता-पिता खुश हो जाते हैं कि बच्चों की जो इच्छा है वो करने दो, यही हिंदू समाज के पतन का एक और बड़ा कारण है। बच्चे पढ़-लिख कर युवा हो जाते हैं, दो-चार पैसे नौकरी करके कमाने लग जाते हैं या फिर रईस बाप की बिगड़ी औलाद की तरह मनमाने फैसले लेते हैं। यही युवा न केवल हिंदू धर्म बल्कि समाज और परिवार के पतन का कारण भी बनता है। युवाओं में धर्म के प्रति दिखावा तो इतना अच्छा है कि उसको देखकर लगता है कि इनसे बड़ा ‘धार्मिक’ कोई नहीं। अपनी निजी जिंदगी को मनमाने तरीके से जीने से लेकर शादी-ब्याह के फैसले, युवा जिस तरीके से लेते हैं वो मा-बाप के लिए आज नहीं तो कल दुख का कारण बनेंगे। अकेले दिवाली की कॉकटेल पार्टी का सवाल नहीं है, युवाओं की बिगड़ती आदतें कई परिवार तोड़ रही है।
कहने और लिखने में भी शर्म आ रही है कि ये युवा अब अपनी जवान पत्नी को दारू इस तरह से पिलाते हैं जैसे कोई उन्होंने बहुत बड़ा तीर मार दिया हो। युवाओं में समाज, धर्म और संस्कृति दिलो-दिमाग में नहीं बची, सोशल मीडिया पर जरूर दिखती है। भगवान राम भी सोचते होंगे कि मेरे वनवास समाप्ति पर अयोध्या में जो दिवाली मनी उसका अब युवा कितना और कैसा पतन कर रहे हैं। खैर, युवाओं को न तो बुजुर्गोंं की बात सुनना है न ही उनमें कोई शर्म-हया बची है। उनको तो अपने कैरियर और जिंदगी के फैसले खुद लेना हैं। आज नहीं तो कल जब हिंदू समाज का पतन होगा और ये युवा खुद जब बुजुर्ग होंगे तब अपने किए पर पछतावा जरूर करेंगे। जय-जय सिया राम…