मध्य प्रदेश के सागर जिले में स्थित गढ़पहरा किला सिर्फ एक ऐतिहासिक इमारत नहीं, बल्कि एक अधूरी प्रेम कहानी की निशानी भी है। 17वीं शताब्दी की शुरुआत में इस किले पर राजा पृथ्वीपत का शासन था। कहते हैं कि राजा एक सुंदर और कुशल नर्तकी के प्रेम में पड़ गए थे। यह प्रेम कहानी धीरे-धीरे पूरे बुंदेलखंड में चर्चा का विषय बन गई। राजा और नर्तकी के बीच का रिश्ता गहराता गया, लेकिन यह रिश्ता समाज और दरबार के नियमों के खिलाफ था।
रानी का दर्द और टकराव
राजा का यह प्रेम प्रसंग जब रानी को पता चला, तो वह बहुत आहत हुईं। उन्होंने इस प्रेम कहानी को खत्म करने के लिए कई कोशिशें कीं। कहा जाता है कि इस टकराव का अंत बहुत दुखद रहा। प्रेम में डूबी वह नर्तकी महल से गायब हो गई, और राजा जीवनभर उसकी याद में तड़पते रहे। यही वजह है कि गढ़पहरा किला, खासकर इसका शीशमहल, आज भी एक अधूरी मोहब्बत का प्रतीक माना जाता है।
शीशमहल में गूंजती यादें
गढ़पहरा के बीचों-बीच बना शीशमहल आज भी वैसे ही खड़ा है जैसे सदियों पहले था। राजा यहीं पर जनता दरबार लगाया करते थे और इसी जगह नर्तकी के साथ उनकी मुलाकातें हुआ करती थीं। आज जब कोई इस शीशमहल में पहुंचता है, तो मानो वो उस दौर को महसूस कर सकता है। पर्यटक कहते हैं कि महल की दीवारें जैसे कुछ कहती हैं – उस अधूरी मोहब्बत की चुप कहानी।
इतिहास में बसी मोहब्बत
हालांकि गढ़पहरा किले के कई हिस्से अब टूट चुके हैं और जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं, लेकिन यह किला आज भी प्रेम, त्याग और भावनाओं की मिसाल बना हुआ है। दूर-दूर से लोग यहां आते हैं, न सिर्फ इसके इतिहास को जानने, बल्कि उस कहानी को महसूस करने, जो वक्त के साथ मिट तो गई, पर यादों में जिंदा है। गढ़पहरा किला आज भी बुंदेलखंड की उन अनसुनी कहानियों में शामिल है, जो दिल को छू जाती हैं।