Bhopal News : मध्य प्रदेश में संपत्ति की रजिस्ट्री की प्रक्रिया अब पूरी तरह बदलने वाली है। राज्य सरकार भोपाल के अरेरा हिल्स स्थित पंजीयन भवन में एक केंद्रीय ‘साइबर पंजीयन कार्यालय’ स्थापित कर रही है। इस नई व्यवस्था के तहत प्रदेश के किसी भी जिले में स्थित संपत्ति की रजिस्ट्री वर्चुअल माध्यम से भोपाल में ही हो सकेगी। इससे खरीदारों को संबंधित जिले के पंजीयन कार्यालय जाने की जरूरत नहीं होगी।
पंजीयन विभाग ने अक्टूबर में इस कार्यालय को खोलने का नोटिफिकेशन जारी किया था। फिलहाल, कार्यालय को शुरू करने की तैयारी अंतिम चरण में है और जल्द ही यहां ‘साइबर सब-रजिस्ट्रारों’ की नियुक्ति की जाएगी। विभाग ने इस प्रणाली का सफल ट्रायल भी कर लिया है, जिसमें विदेश में बैठे खरीदारों ने रजिस्ट्री कराई थी। इस कदम का उद्देश्य रजिस्ट्री प्रक्रिया को आधुनिक और सुगम बनाना है।
नई व्यवस्था पर उठे सवाल, निगरानी कैसे होगी?
हालाकि, सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना को लेकर विशेषज्ञों और वकीलों ने गंभीर चिंताएं जताई हैं। उनका सबसे बड़ा सवाल निगरानी तंत्र को लेकर है। उनका मानना है कि इस प्रक्रिया से संपत्तियों की निगरानी व्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हो सकती है। वर्तमान में जिला स्तर पर ही विवादित, आपत्ति वाली या न्यायालय में लंबित मामलों वाली संपत्तियों की निगरानी होती है।
पंजीयन कार्यालय अभिभाषक व्यवस्थापक समिति के अध्यक्ष प्रमोद द्विवेदी का कहना है कि “आपत्ति वाली, न्यायालयीन विवाद और स्टे वाली संपत्ति की रजिस्ट्री को रोक नहीं पाएंगे, क्योंकि विभाग के पास अभी निगरानी का सिस्टम नहीं है। इनकी निगरानी जिला स्तर पर ही होती है।”
विशेषज्ञों का कहना है कि भोपाल में बैठे अधिकारी के लिए पूरे प्रदेश की ऐसी संपत्तियों पर नजर रखना एक बड़ी चुनौती होगी। इससे स्टे वाली संपत्तियों की रजिस्ट्री भी आसानी से हो सकती है, जिससे धोखाधड़ी के मामले बढ़ने की आशंका है।
प्रशासनिक पकड़ कमजोर होने का डर
इस प्रणाली का एक और बड़ा असर जिला प्रशासन की पकड़ पर पड़ सकता है। पंजीयन कार्यालय अभिभाषक व्यवस्थापक समिति के अध्यक्ष प्रमोद द्विवेदी के अनुसार, अभी जिला प्रशासन स्थानीय स्तर पर अवैध कॉलोनियों और विवादित जमीनों की रजिस्ट्री पर रोक लगा देता है, जिससे आम लोगों को धोखे से बचाया जा सकता है।
जब सभी रजिस्ट्रियां भोपाल से होने लगेंगी, तो यह स्थानीय निगरानी खत्म हो जाएगी। इससे भू-माफियाओं को फायदा मिल सकता है और विवादित संपत्तियों की खरीद-बिक्री आसान हो सकती है। इसके अलावा, जिलों के राजस्व लक्ष्य भी इस व्यवस्था से प्रभावित होंगे, जिसकी भरपाई कैसे की जाएगी, यह भी एक अहम सवाल है।