MP Excise : देखो रूठा ना करो, बात मेरी भी तो सुनो…


लेखक
चैतन्य भट्ट

साठ के दशक में एक फिल्म आई थी तेरे घर के सामने जिसमें मुख्य भूमिका देव आनंद और नूतन ने निभाई थीं । वैसे तो उसके सभी गाने बेहद मशहूर हुए थे लेकिन एक गीत कुछ ज्यादा ही लोगों की जबान पर चढ़ गया था जिसके बोल थे देखो रूठा ना करो बात नजरों की सुनो । ये गाना मध्य प्रदेश के कुछ शहरों में शराब के ठेकों पर बिल्कुल सटीक बैठ रहा है, पता लगा है कि कुछ बड़े शहरों में शराब के ठेकेदार ठेका लेने में बोली ही नहीं लगा रहे हैं बेचारे आबकारी ( Excise ) विभाग वाले उनको मना मना कर हलाकान हो गए कि बोली तो लगा दो यार, लेकिन ठेकेदार है वे बोली लगाने तैयार नहीं हैं अब जब ठेका नहीं होगा तो सरकार को पैसा कैसे मिलेगा सरकार भी भारी परेशानी में है कि इन बड़े शहरों में अगर ठेकेदारों ने शराब के ठेके नहीं लिए तो उसका तो भट्टा ही बैठ जाएगा, दरअसल कुछ धार्मिक शहरों में शराबबंदी की घोषणा मुख्यमंत्री जी ने कर दी थी ।

Excise विभाग ठेकेदारों को नहीं मना पा रहा

इस शराब बंदी से कई सौ करोड़ का नुकसान सरकार को होगा तो सरकार ने सोचा कि इस घाटे की भरपाई कैसे हो तो आरक्षित मूल्य को बीस फीसदी बढ़ा दिया अब बीस फीसदी जब आरक्षित मूल्य बढ़ गया तो ठेकेदारों को ये बात हजम नहीं हुई तो उन लोगों ने तय कर लिया कि वे अब बोली नहीं लगाएंगे, इधर जबलपुर में इसी चक्कर में एक आबकारी अधिकारी रवींद्र मानिकपुरी सस्पेंड भी हो गए कि सरकार की नीतियों का पालन क्यों नहीं करवा पाए अब बेचारे को मानिकपुरी करें तो करें क्या ठेकेदार बोली लगने तैयार नहीं सरकार कह रही बोली लगवाओ उन दोनों के बीच में ऐसे फंसे मानिकपुरी जी जैसे पैर और जूते के बीच में मोजे जिसको दोनों तरफ से दबाया जाता है लेकिन अपने को एक बार समझ में नहीं आई कि यदि सरकार ने पैसा बढ़ा दिया है तो बढ़ा देने दो आप दारू के दाम बढ़ा देना जिसे पीना है वो तो पिएगा ही चाहे शराब कितनी ही महंगी क्यों ना हो जाए जब तक उनके गले के नीचे पैग नहीं उतरेगा उनको चैन कैसे आएगा वैसे भी सरकारें तो इन दारूखोरों के पैसे से ही चल रही है यही कारण है कि सरकार ने भी बड़ा सोच समझकर यह कदम उठाया कि सिर्फ धार्मिक शहरों में शराब बंदी होगी। कुल मिलाकर आबकारी विभाग ठेकेदारों के सामने तो हाथ जोडक़र ये गाना गा रहा है देखो रूठा ना करो बात हमारी भी तो सुनो और ठेकेदार इसके उत्तर में कह रहे हैं हम ना ठेका लेंगे तुम सताया ना करो लेकिन इस चक्कर में 1 अप्रैल से उन शहरों के शराब प्रेमियों का क्या होगा जिनकी जिंदगी शराब के बल पर ही चल रही है जब ठेके नहीं होंगे तो शराब कैसे मिलेगी और जब शराब नहीं मिलेगी तो उनका तो जीना ही व्यर्थ हो जाएगा। वैसे भी वैसे भी जिन धार्मिक शहरों में शराब बंदी की घोषणा की गई है वहां के शराब प्रेमी इस बात से हीखुश हैं कि भले ही उनके जिले में शराबबंदी हो गई हो लेकिन आसपास के जिलों में तो दारू मिल ही जाएगी चार पैसे ज्यादा लगेंगे लेकिन गला तो तर होता ही रहेगा।
राजा साहब की जमीन बिक गई
एक खबर आई कि अपने प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जिनको राजा साहब भी कहा जाता है कि उनकी पैतृक जमीन 35 साल पहले ही किसी ने बेच दी और वो भी खुद को दिग्विजय सिंह बनाकर अब आप सोचो कि जब प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री की जमीनों के यह हाल है तो आम आदमी की जमीन का क्या होगा। वैसे राजा साहब कह रहे हैं कि मुझे ये खबर मीडिया से ही लगी है मैं इसकी जांच पड़ताल करवाता हूं लेकिन अब इतने सालों बाद ये जांच पड़ताल कैसे होगी यह भी बड़ा जांच का विषय है । कौन आदमी है जो खुद को दिग्विजय बतला कर जमीन बेच गया जिन लोगों ने भी जमीन की रजिस्ट्री की होगी वे क्या राजा साहब को जानते पहचानते नहीं होंगे ? उस वक्त कौन अधिकारी था जिसने जमीन को बेचने की स्वीकृति दे दी और वो कौन सा अधिकारी था जिसने बाकायदा दिग्विजय सिंह की जमीन की रजिस्ट्री भी किसी दूसरे के नाम पर कर दी क्या पता वे अफसर जिंदा भी है या भगवान को प्यारे हो गए। वैसे राजा साहब तो राजा हैं भले ही अब राजाओं का जमाना नहीं रहा लेकिन अभी भी उन्हें राजा साहब तो कहा ही जाता है और राजाओं के पास कौन सी जमीन की कमी है थोड़ी बहुत जमीन बिक भी गई होगी तो उनको कौन सा फर्क पड़ता है, पुराने लोगों के पास तो कितनी जमीन है उनको खुद भी नहीं पता रहता था ऐसा ही कुछ लगता है राजा साहब के साथ भी हुआ है उन्हें पता ही नहीं होगा कि उनकी जमीन कहां-कहां है और इसी का फायदा उठाकर उस व्यक्ति ने अपने आप को दिग्विजय सिंह बता कर वह जमीन बेच मारी अब देखना ये है कि जांच पड़ताल का परिणाम क्या निकलता है? क्या राजा साहब की जमीन उन्हें वापस मिल पाएगी या फिर जिसने खरीदी है उसने उस जमीन का क्या किया अपने पास रखी या फिर उसे और पलटा दिया ये जांच के बाद ही पता लग पाएगा ।

कमल छाप कांग्रेसी

कांग्रेस के सबसे बड़े नेता राहुल गांधी को समझ में नहीं आता कि वे करें तो क्या करें, उनकी पार्टी में कितने गुट हैं कितने गुटबाज हैं ये भी वे जानते तो है वे ये भी जानते हैं कि ऐसे बहुत से कांग्रेसी नेता है जो भीतर ही भीतर भाजपा से मिले हुए हैं इसलिए उन्हें यह कहना पड़ा कि जो भी कांग्रेसी नेता कमल छाप कांग्रेसी बने हुए हैं उन सबको बाहर करना पड़ेगा चाहे उनकी संख्या पचास हो सौ हो या दो सौ ।अपना तो राहुल भैया से कहना है कि आपकी पार्टी के आधे से ज्यादा नेता तो वैसे भी भाजपा में शामिल हो चुके हैं और बड़े-बड़े मंत्री पद का सुख पा रहे हैं अब जो थोड़े बहुत और बचे हैं उनमें से भी अगर कुछ को निकाल दोगे तो फिर पार्टी में बचेगा कौन? वैसे भी अब कांग्रेस में वो दम रही नहीं जो कभी एक जमाने में थी जिस पार्टी ने कई वर्षों तक देश में राज किया वो अब क्षेत्रीय दलों के रहमो करम पर अपना वजूद बनाए रखे हैं इससे ज्यादा बुरे दिन और क्या हो सकते हैं लेकिन चलो राहुल गांधी ने ये तो स्वीकार किया कि उनकी पार्टी में बहुत सारे जयचंद हैं जो पार्टी के नहीं बल्कि विरोधी पार्टी के खासमखास बने हुए हैं आप ने तो कह दिया है राहुल भैया कि ऐसे कमल छाप कांग्रेसियों को पार्टी से निकालना पड़ेगा लेकिन अब उन्हें निकालेगा कौन और उनकी पहचान कैसे होगी ये आपके लिए बड़ा कठिन सवाल हो चुका है इधर दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी और उनके नेता हर बात के लिए पंडित नेहरू को दोषी मानते हैं वहीं बीजेपी की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने नेहरू जी की तारीफ कर दी कि नेहरू जी की नीतियां बहुत अच्छी थी अब भाजपा के नेता भी तो ये कह सकते हैं कि हमारे यहां भी पंजा छाप भाजपाई हैं वैसे उमा भारती जब भी बयान देती हैं कुछ ऐसा कह देती है जिससे पूरे भाजपा के सर्कल में हडक़ंप मत जाता वे अभी भी पूरे प्रदेश में शराबबंदी की मांग पर अड़ी हुई है और डॉक्टर मोहन यादव ने स्पष्ट किया है कि धीरे-धीरे ये भी हो जाएगा लेकिन यह कब होगा यह कोई नहीं जानता।