मुख्यमंत्री मोहन यादव ने एक बड़ा बयान देकर राज्य के लाखों सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को राहत की खबर दी है। सीएम ने कहा है कि जल्द ही प्रमोशन प्रक्रिया शुरू की जाएगी, जिससे लंबे समय से पदोन्नति का इंतजार कर रहे कर्मचारियों को लाभ मिलेगा। मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद सरकारी दफ्तरों में खुशी की लहर है। कर्मचारी संगठनों की ओर से भी मुख्यमंत्री के इस फैसले का स्वागत किया जा रहा है। बताया जा रहा है कि सरकार द्वारा लंबित प्रमोशन मामलों की समीक्षा की जा रही है और जल्द ही विभिन्न विभागों में पदोन्नति आदेश जारी किए जा सकते हैं। इससे न केवल कर्मचारियों का मनोबल बढ़ेगा, बल्कि प्रशासनिक व्यवस्था में भी सुधार देखने को मिलेगा। यह फैसला आगामी महीनों में लागू किया जा सकता है।
प्रमोशन पर सीएम मोहन यादव का बड़ा बयान
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की पदोन्नति को लेकर सकारात्मक संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा—
“जब हम सबकी चिंता कर रहे हैं तो अपने परिवार की चिंता क्यों नहीं करेंगे? ये अधिकारी-कर्मचारी तो हमारे ही हैं। इनके बारे में हमने अपने निर्णय लिए हैं। अभी तो ये सिर्फ शुरुआत है। अधिकारी-कर्मचारियों की पदोन्नति के मसले भी अटके पड़े हैं। हमारा प्रयास रहेगा कि बहुत जल्दी सबको पदोन्नति मिले। इस दिशा में भी हमारी सरकार काम कर रही है।”
मुख्यमंत्री के इस बयान से साफ है कि सरकार प्रमोशन को लेकर गंभीरता से काम कर रही है और जल्द ही इस पर कोई ठोस फैसला लिया जा सकता है। इससे लंबे समय से पदोन्नति का इंतजार कर रहे हजारों कर्मचारियों को राहत मिलने की उम्मीद है।
मध्यप्रदेश में प्रमोशन पर रोक की कहानी: जल्द खत्म हो सकती है 9 साल की प्रतीक्षा
14 मार्च को विधानसभा में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने संकेत दिए कि प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को जल्द प्रमोशन मिल सकता है। उनका यह बयान उन लाखों कर्मचारियों के लिए राहत भरी खबर है जो पिछले 9 साल से प्रमोशन का इंतजार कर रहे हैं।
क्यों लगी थी प्रमोशन पर रोक?
• 2002 में प्रदेश सरकार ने मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम लागू किए, जिनमें प्रमोशन में आरक्षण का प्रावधान शामिल था।
• इसके बाद आरक्षित वर्ग के कर्मचारियों को नियमित रूप से प्रमोशन मिलता रहा, लेकिन अनारक्षित वर्ग के कर्मचारी पीछे रह गए।
• मामला विवादित हुआ तो कई कर्मचारी कोर्ट पहुंच गए। उन्होंने प्रमोशन में आरक्षण खत्म करने की मांग करते हुए तर्क दिया कि एक व्यक्ति को प्रमोशन का लाभ सिर्फ एक बार मिलना चाहिए।
• इन दलीलों के आधार पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 2002 के नियमों को खारिज कर दिया।
• सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
• सुप्रीम कोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 से राज्य में यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया — यानी तब से प्रमोशन पर पूरी तरह से रोक लग गई।
इसका असर:
• अब तक 1 लाख से ज्यादा अधिकारी-कर्मी बिना प्रमोशन के रिटायर हो चुके हैं।
• जो कर्मचारी अभी सेवा में हैं, वे लंबे समय से पदोन्नति की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री के ताजा बयान से उम्मीद जगी है कि राज्य सरकार इस मसले को सुलझाकर प्रमोशन प्रक्रिया को फिर से शुरू कर सकती है, जिससे बड़ी संख्या में कर्मचारी लाभांवित होंगे।