MP में स्वास्थ्य क्रांति, MBBS की सीटें 1250 से बढ़कर 5550 हुईं, 2028 तक 52 मेडिकल कॉलेज खोलने का लक्ष्य

मध्य प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं का परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। कभी बुनियादी चिकित्सा शिक्षा तक सीमित रहने वाला यह राज्य अब ‘एडवांस्ड हेल्थ केयर’ की दिशा में लंबी छलांग लगा चुका है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के नेतृत्व में चिकित्सा शिक्षा और आयुष क्षेत्र में हुए सुधारों ने इसे एक जन-आंदोलन का रूप दे दिया है।

आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या और एमबीबीएस सीटों में ऐतिहासिक वृद्धि हुई है। सरकार का लक्ष्य अब केवल इलाज मुहैया कराना नहीं, बल्कि सुदूर जिलों तक मेडिकल शिक्षा और विशेषज्ञ स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाना है।

ठहराव से रफ्तार तक: एक नजर

वर्ष 2003 से पहले प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा की स्थिति लगभग स्थिर थी। 1946 से 2003 के बीच ग्वालियर, इंदौर, भोपाल, जबलपुर और रीवा जैसे बड़े शहरों तक ही मेडिकल कॉलेज सीमित थे। उस समय प्रदेश में शासकीय मेडिकल कॉलेजों की संख्या मात्र 5 थी और कुल कॉलेज केवल 6 थे।

इसके बाद बदलाव का दौर शुरू हुआ। सागर में 2009 में नया शासकीय कॉलेज खुला और निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ी। 2018-19 के बाद विदिशा, दतिया, शहडोल, खंडवा, शिवपुरी और छिंदवाड़ा जैसे जिलों में मेडिकल कॉलेज शुरू होने से चिकित्सा शिक्षा संभाग स्तर से निकलकर जिला स्तर तक पहुंची।

दो साल में रिकॉर्ड विस्तार

वर्तमान सरकार ने मेडिकल शिक्षा के विस्तार को नई गति दी है। पिछले दो वर्षों में मेडिकल कॉलेजों की संख्या में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई है। सिवनी, नीमच, मंदसौर, श्योपुर और सिंगरौली जैसे आदिवासी और दूरस्थ जिलों में नए मेडिकल कॉलेज शुरू किए गए हैं।

ताजा स्थिति (2025) के अनुसार, प्रदेश में शासकीय मेडिकल कॉलेजों की संख्या 14 से बढ़कर 19 और निजी कॉलेजों की संख्या 12 से बढ़कर 14 हो चुकी है। इस प्रकार, वर्तमान में कुल 33 मेडिकल कॉलेज संचालित हैं। अब प्रदेश का लगभग हर लोकसभा क्षेत्र मेडिकल कॉलेज की सुविधा से जुड़ने की कगार पर है।

MBBS और PG सीटों में भारी इजाफा

डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए मेडिकल सीटों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि की गई है। 2003 में जहां एमबीबीएस की मात्र 1,250 सीटें थीं, वहीं 2023-24 में यह बढ़कर 4,875 हो गईं। सत्र 2025-26 के लिए यह संख्या बढ़कर 5,550 (शासकीय: 2850, निजी: 2700) हो गई है।

सिर्फ एमबीबीएस ही नहीं, बल्कि पीजी और सुपर स्पेशलिटी सीटों पर भी फोकस किया गया है। कुल पीजी (MD/MS) सीटें बढ़कर 2,862 हो गई हैं। वहीं, शासकीय क्षेत्र में सुपर स्पेशलिटी सीटें 47 से बढ़कर 64 हो गई हैं और कुल सीटें 93 हैं, जो गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए महत्वपूर्ण हैं।

भविष्य का रोडमैप: 2028 तक 52 कॉलेज

सरकार पीपीपी (PPP) मॉडल के जरिए स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार कर रही है। कटनी, धार, पन्ना और बैतूल में मेडिकल कॉलेजों के लिए एमओयू (MoU) साइन हो चुके हैं। इसके अलावा अशोकनगर, मुरैना, सीधी, गुना, बालाघाट, भिंड, टीकमगढ़, खरगोन और शाजापुर में पीपीपी मोड पर कॉलेज खोलने की प्रक्रिया चल रही है।

वर्ष 2026-28 के विजन के तहत दमोह, बुधनी, छतरपुर, राजगढ़, मंडला और उज्जैन में 6 नए कॉलेज प्रस्तावित हैं। योजना के मुताबिक, 2028 तक प्रदेश में मेडिकल कॉलेजों की कुल संख्या 52 हो जाएगी और एमबीबीएस सीटें 7,450 तक पहुंचने का अनुमान है।

सामाजिक मानकों पर भी इसका असर दिख रहा है। प्रति 10 लाख जनसंख्या पर एमबीबीएस सीटों की उपलब्धता 2003 में 20.8 थी, जो 2025 में 63 तक पहुंच चुकी है।

आयुष विभाग: परंपरा और आधुनिकता का संगम

एलोपैथी के साथ-साथ आयुष विभाग भी ‘निरोगी काया’ के संकल्प को पूरा करने में जुटा है। नर्मदापुरम, मुरैना, शहडोल, बालाघाट, सागर, झाबुआ, शुजालपुर और डिंडोरी में 8 नए आयुर्वेद महाविद्यालयों को स्वीकृति मिली है।

विभाग ने मानव संसाधन को मजबूत करने के लिए 5 नए आयुर्वेद महाविद्यालयों के लिए 1570 पद और विभिन्न चिकित्सालयों के लिए 1000 से अधिक नए पद सृजित किए हैं। सीनियर फैकल्टी की कमी को दूर करने के लिए बड़े पैमाने पर नियुक्तियां और पदोन्नति की गई हैं।

वेलनेस टूरिज्म और डिजिटल पहल

प्रदेश में स्वास्थ्य पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए 12 ‘वेलनेस टूरिज्म केंद्र’ स्थापित किए गए हैं। इसके अलावा 238 औषधालयों को अपग्रेड कर ‘आयुष्मान आरोग्य मंदिर’ बनाया गया है। आगामी तीन वर्षों में सभी जिला एलोपैथी अस्पतालों में ‘आयुष विंग’ और ‘पंचकर्म यूनिट’ स्थापित करने की योजना है।

डिजिटल व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए ‘E-औषधि’ और ‘E-Hospital’ प्रणाली लागू की जा रही है, जिससे दवाओं की ऑनलाइन आपूर्ति और रियल-टाइम मॉनिटरिंग सुनिश्चित होगी।