भोपाल: मध्य प्रदेश में मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएशन (PG) की सीटें भरने के लिए की गईं तमाम कोशिशें नाकाम साबित हुई हैं। राज्य के निजी मेडिकल कॉलेजों में NEET PG की 1026 सीटें खाली रह गई हैं। यह स्थिति तब है जब राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने दाखिले के लिए कट-ऑफ को घटाकर जीरो पर्सेंटाइल कर दिया था।
प्रदेश में कुल 1198 प्राइवेट पीजी सीटों में से सिर्फ 172 पर ही दाखिले हो सके। वहीं, सरकारी कॉलेजों की सभी 1046 सीटें पहले ही भर चुकी हैं। चिकित्सा शिक्षा निदेशालय (DME) ने स्पेशल स्ट्रे वेकेंसी राउंड भी आयोजित किया, जिसकी अंतिम तारीख 20 अक्टूबर थी, लेकिन इसके बाद भी सीटें नहीं भर पाईं।
करोड़ों की फीस बनी सबसे बड़ी बाधा
इन सीटों के खाली रहने की सबसे बड़ी वजह निजी कॉलेजों की महंगी फीस है। जानकारी के अनुसार, निजी कॉलेजों में पीजी कोर्स की सालाना फीस 15 लाख से 25 लाख रुपये तक है। कुछ मामलों में तो तीन साल के कोर्स के लिए छात्रों को 1.25 करोड़ रुपये तक चुकाने पड़ते हैं। इतनी भारी फीस देने के बजाय छात्र एक और साल तैयारी करके सरकारी कॉलेज में दाखिला लेना बेहतर समझते हैं।
नॉन-क्लिनिकल ब्रांच से छात्रों का मोहभंग
खाली रहने वाली सीटों में ज्यादातर नॉन-क्लिनिकल ब्रांच की हैं। इनमें एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, और बायोकैमिस्ट्री जैसे विषय शामिल हैं। वहीं, क्लिनिकल ब्रांच की लगभग सभी सीटें भर चुकी हैं। छात्रों की रुचि मुख्य रूप से उन ब्रांच में होती है, जिनमें वे सीधे मरीजों का इलाज कर सकते हैं।
भविष्य में शिक्षकों की कमी का खतरा
यह स्थिति पिछले कई सालों से बनी हुई है। नॉन-क्लिनिकल ब्रांच में विशेषज्ञों की कमी का सीधा असर भविष्य में मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाने वाले शिक्षकों की उपलब्धता पर पड़ेगा। ये ब्रांच अकादमिक और रिसर्च के लिए बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। अगर इन सीटों पर विशेषज्ञ तैयार नहीं होंगे, तो आने वाले समय में मेडिकल छात्रों को पढ़ाने के लिए प्रोफेसरों की कमी हो सकती है।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने इसी समस्या से निपटने के लिए कट-ऑफ जीरो करने जैसा बड़ा कदम उठाया था, ताकि कम अंक वाले छात्र भी दाखिला ले सकें। हालांकि, जब तक निजी कॉलेजों की फीस को नियंत्रित नहीं किया जाता, तब तक इस समस्या का समाधान मुश्किल नजर आता है।