Jabalpur Tourism : मध्य प्रदेश के जबलपुर में प्रकृति का एक ऐसा अजूबा मौजूद है, जो सदियों से विज्ञान और गुरुत्वाकर्षण के सामान्य नियमों को चुनौती देता प्रतीत होता है। हम बात कर रहे हैं मदन महल की पहाड़ियों पर स्थित प्रसिद्ध ‘बैलेंसिंग रॉक’ की।
यह चट्टान न केवल पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है, बल्कि भू-वैज्ञानिकों के लिए भी एक शोध का विषय बनी हुई है। एशिया के तीन प्रमुख बैलेंसिंग रॉक्स में शुमार यह संरचना प्रकृति की अद्भुत कारीगरी का बेजोड़ नमूना है।
जबलपुर में ऐतिहासिक रानी दुर्गावती के किले के समीप स्थित यह चट्टान देखने में किसी सामान्य पत्थर जैसी ही लगती है, लेकिन इसकी बनावट इसे खास बनाती है। एक विशालकाय भारी-भरकम चट्टान, नीचे स्थित दूसरी चट्टान के महज कुछ इंच के आधार (बेस) पर टिकी हुई है। इसे पहली बार देखने पर किसी को भी यह भ्रम हो सकता है कि हवा का एक तेज झोंका इसे गिरा देगा, लेकिन यह हजारों सालों से इसी तरह अडिग खड़ी है।
1997 के भूकंप की अग्निपरीक्षा
इस बैलेंसिंग रॉक की मजबूती का सबसे बड़ा प्रमाण दो दशक पहले मिली एक प्राकृतिक चुनौती के दौरान देखने को मिला। 22 मई 1997 को जबलपुर में रिक्टर पैमाने पर 6.2 तीव्रता का विनाशकारी भूकंप आया था। इस प्राकृतिक आपदा ने पूरे शहर में भारी तबाही मचाई थी और कई पक्की इमारतें ताश के पत्तों की तरह ढह गई थी।
हैरानी की बात यह रही कि इतनी तेज तीव्रता वाले भूकंप के झटके भी इस बैलेंसिंग रॉक का संतुलन नहीं बिगाड़ सके। जहां शहर की आधुनिक इंजीनियरिंग से बनी इमारतें मिट्टी में मिल गईं, वहीं महज कुछ इंच के आधार पर टिका यह पत्थर अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ। इस घटना ने स्थानीय लोगों और विशेषज्ञों को भी आश्चर्य में डाल दिया था।
गुरुत्वाकर्षण का अद्भुत खेल
विशेषज्ञों ने कई बार इस रहस्य को सुलझाने की कोशिश की है कि आखिर यह भारी चट्टान इतने छोटे आधार पर कैसे टिकी है। भू-वैज्ञानिकों का मानना है कि यह गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force) का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
चट्टान का द्रव्यमान केंद्र (Center of Mass) इस तरह से संतुलित है कि वह इसे गिरने नहीं देता। यह चट्टान अब जबलपुर की पहचान बन चुकी है और यह साबित करती है कि प्रकृति की इंजीनियरिंग मनुष्य की समझ से कहीं आगे है।