महाकाल की पहली सवारी आज, ढोल नगाड़ों की गूंज के बीच मनमहेश रूप में होंगे दर्शन, नगर भ्रमण की परंपरा फिर जीवंत

उज्जैन की पवित्र नगरी में आज से एक बार फिर महाकालेश्वर की राजसी सवारी का शुभारंभ हो रहा है। सावन के पहले सोमवार को बाबा महाकाल पालकी में विराजित होकर नगर भ्रमण के लिए निकलेंगे। इस शुभ अवसर पर लाखों श्रद्धालु बाबा के दर्शन करने उज्जैन में जुटते हैं। हर साल की तरह इस बार भी यह आयोजन भक्तों के लिए खास भावनात्मक जुड़ाव लेकर आया है।

हर सोमवार को निकलेगी भव्य सवारी, भाद्रपद तक चलेगा आयोजन

यह परंपरा सिर्फ सावन तक सीमित नहीं है, बल्कि भाद्रपद मास तक जारी रहती है। इस बार महाकाल की सवारी 14 जुलाई से शुरू होकर 18 अगस्त तक हर सोमवार को निकाली जाएगी। इसके अलावा दो विशेष तिथियों—11 अगस्त और 18 अगस्त—को भी विशेष राजसी स्वरूप में सवारी निकाली जाएगी, जिसे “वार्षिक उत्सव यात्रा” के रूप में जाना जाता है।

राजा भोज से शुरू हुई परंपरा, आज भी कायम है गरिमा

कहा जाता है कि इस सवारी को बड़े स्वरूप में राजा भोज ने प्रारंभ किया था। उनके काल में महाकाल की सवारी में रथ, हाथी, ढोल-नगाड़े और घुड़सवार शामिल किए गए थे। यही परंपरा आज तक कायम है। जब बाबा नगर भ्रमण पर निकलते हैं, तो उन्हें रथ में विराजमान कर पूरे शहर में भक्तों को दर्शन कराए जाते हैं।

हर सवारी में दिखता है भगवान शिव का अलग स्वरूप

महाकाल की हर सवारी में भगवान शिव एक विशेष रूप में भक्तों को दर्शन देते हैं। आज की पहली सवारी में भगवान महाकाल श्री मनमहेश स्वरूप में पालकी पर विराजित होंगे। इसके बाद आने वाली प्रत्येक सवारी में उनका रूप भी बदलता रहेगा, जो इस परंपरा को और अधिक पवित्र और दर्शनीय बनाता है।

सवारी तिथियाँ और स्वरूपों का विवरण

1. पहली सवारी (14 जुलाई) – श्री मनमहेश रूप में पालकी में विराजित होंगे।
2. दूसरी सवारी (21 जुलाई) – श्री चंद्रमोलेश्वर स्वरूप में पालकी यात्रा।
3. तीसरी सवारी (28 जुलाई) – गरुड़ रथ पर भगवान का शिव तांडव रूप में दर्शन।
4. चौथी सवारी (4 अगस्त) – नंदी रथ पर श्री उमा-महेश रूप में होंगे विराजमान।
5. पांचवी सवारी (11 अगस्त) – होलकर स्टेट रथ पर भगवान भक्त रूप में दर्शन देंगे।
6. अंतिम राजसी सवारी (18 अगस्त) – श्री सप्तधान मुखारविंद स्वरूप में रथ पर विराजित होंगे। इस रूप में धान से बाबा का विशेष श्रृंगार किया जाता है।

राजसी सवारी में रथ, ढोल-नगाड़े और घुड़सवारों का संगम

सवारी के दौरान ढोल-नगाड़ों की गूंज, मंत्रोच्चारण, और भक्ति गीतों के बीच भगवान महाकाल रथ पर नगर भ्रमण करते हैं। सवारी में घुड़सवार, पारंपरिक वेशभूषा में सजे-धजे रथ, और भक्तों की टोलियाँ शामिल होती हैं, जिससे समूचा उज्जैन एक आध्यात्मिक ऊर्जा से भर उठता है।