नई दिल्ली: देश के 126 साल पुराने भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 में एक ऐतिहासिक बदलाव होने जा रहा है। 1 जुलाई, 2024 से प्रतिभूतियों (सिक्योरिटीज) जैसे कि शेयर, डिबेंचर और बॉन्ड के लेनदेन पर स्टांप शुल्क वसूलने की एक नई केंद्रीकृत व्यवस्था लागू हो जाएगी। इस संशोधन के बाद, राज्यों को अब सीधे स्टांप शुल्क वसूलने का अधिकार नहीं होगा और यह काम केंद्र सरकार द्वारा किया जाएगा।
यह बदलाव वित्त अधिनियम, 2019 के माध्यम से किया गया है, जिसने भारतीय स्टांप अधिनियम में संशोधन किया था। इसका मुख्य उद्देश्य पूरे देश में प्रतिभूतियों पर स्टांप शुल्क की दरों और संग्रह प्रक्रिया में एकरूपता लाना है, ताकि कर चोरी को रोका जा सके और प्रक्रिया को सरल बनाया जा सके।
क्या है नई स्टांप शुल्क प्रणाली?
नई व्यवस्था के तहत, शेयर बाजार में होने वाले सभी सौदों पर लगने वाला स्टांप शुल्क अब स्टॉक एक्सचेंजों या अधिकृत क्लियरिंग कॉर्पोरेशनों द्वारा सीधे वसूला जाएगा। यह शुल्क प्रतिभूति के खरीदार से लिया जाएगा और लेनदेन के समय ही काट लिया जाएगा।
स्टॉक एक्सचेंज इस एकत्रित राशि को केंद्र सरकार के खाते में जमा करेंगे। यह प्रणाली ‘एक राष्ट्र, एक स्टांप शुल्क’ की अवधारणा को साकार करने की दिशा में एक बड़ा कदम है, जिससे वित्तीय बाजार में अधिक पारदर्शिता और दक्षता आने की उम्मीद है।
राज्यों को कैसे मिलेगा राजस्व का हिस्सा?
हालांकि राज्य अब सीधे शुल्क नहीं वसूल पाएंगे, लेकिन उनके राजस्व का नुकसान नहीं होगा। केंद्र सरकार द्वारा एकत्र किए गए कुल शुल्क को राज्यों के बीच वितरित किया जाएगा। यह वितरण इस आधार पर होगा कि प्रतिभूति का खरीदार किस राज्य का निवासी है।
खरीदार के पते की जानकारी स्टॉक ब्रोकर के पास मौजूद केवाईसी (Know Your Customer) दस्तावेजों से ली जाएगी। इस प्रणाली से यह सुनिश्चित होगा कि जिस राज्य के निवेशक ने लेनदेन किया है, उसी राज्य को राजस्व का हिस्सा प्राप्त हो। इससे राज्यों के राजस्व में स्थिरता आएगी।
इस बदलाव की आवश्यकता क्यों पड़ी?
पुरानी व्यवस्था में, हर राज्य में प्रतिभूतियों पर स्टांप शुल्क की दरें और नियम अलग-अलग थे। इससे निवेशकों में भ्रम की स्थिति पैदा होती थी और कई बार लोग कम स्टांप शुल्क वाले राज्यों के माध्यम से लेनदेन करके कर बचाने की कोशिश करते थे, जिसे ‘रेट शॉपिंग’ भी कहा जाता है।
इस असमानता के कारण कर चोरी की गुंजाइश भी बनी रहती थी और संग्रह प्रक्रिया काफी जटिल थी। नई प्रणाली इन सभी खामियों को दूर करेगी और पूरी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाएगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे सरकार के राजस्व में भी वृद्धि होगी।
निवेशकों और बाजार पर क्या होगा असर?
निवेशकों के लिए यह प्रक्रिया पहले से अधिक सरल हो जाएगी। उन्हें अलग-अलग राज्यों के स्टांप शुल्क नियमों को समझने की जरूरत नहीं होगी। शुल्क स्वचालित रूप से उनके लेनदेन से कट जाएगा, जिससे अनुपालन का बोझ कम होगा। यह बदलाव बाजार में निष्पक्षता और एकरूपता को भी बढ़ावा देगा, क्योंकि अब पूरे देश में प्रतिभूतियों के लेनदेन पर एक समान शुल्क लगेगा।