सूर्य सिद्धांत और धर्मशास्त्र की मान्यताओं के अनुसार, 15 दिसंबर से सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने के साथ ही मलमास (खरमास) आरंभ हो जाएगा। यह अवधि 15 जनवरी (मकर संक्रांति) तक चलेगी।
मलमास की विशेषताएं और नियम
1. शुभ कार्य वर्जित
• विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण जैसे शुभ मांगलिक कार्य मलमास के दौरान वर्जित माने जाते हैं।
• इस अवधि को धार्मिक दृष्टि से अधिक पुण्य प्राप्ति और साधना के लिए उपयुक्त माना गया है।
2. धार्मिक गतिविधियों का महत्व
• इस माह में भागवत पारायण, भगवान विष्णु की पूजा, तीर्थ यात्रा, और गंगा स्नान का विशेष महत्व है।
• दान-पुण्य और गरीबों की सहायता को अत्यधिक फलदायी माना गया है।
3. धनु संक्रांति का महत्व
• सूर्य के धनु राशि में प्रवेश से यह समय खरमास कहलाता है।
• खरमास के दौरान सूर्य धनु राशि में एक माह तक स्थित रहता है, जिससे यह समय धार्मिक अनुष्ठानों और तपस्या के लिए विशेष माना गया है।
15 जनवरी मकर संक्रांति से क्या होगा परिवर्तन?
मकर संक्रांति के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा, और शुभ कार्यों की शुरुआत हो सकेगी। इसे उत्तरायण का आरंभ माना जाता है, जो शुभ और मांगलिक कार्यों के लिए उपयुक्त समय की शुरुआत का प्रतीक है। मलमास धार्मिक दृष्टि से आत्मिक उन्नति और तप का समय माना जाता है, इसलिए इसे साधना और भक्ति के लिए उपयोगी मानें। वैदिक ज्योतिष और पौराणिक धर्मशास्त्रों में उल्लिखित महत्वपूर्ण सिद्धांतों का सार प्रस्तुत करती है। सूर्य का धनु और मीन राशि में प्रवेश (मलमास) और इसके प्रभाव का विस्तार से उल्लेख किया गया है। आइए इसे विभिन्न दृष्टिकोणों से समझते हैं:
1. मलमास और ग्रह सिद्धांत
• धनु और मीन राशि
• धनु और मीन राशि दोनों बृहस्पति के स्वामित्व वाली राशियां हैं।
• जब सूर्य इन राशियों में प्रवेश करता है, तो इसे मलमास (खरमास) कहा जाता है। यह अवधि वैदिक ज्योतिष में शुभ कार्यों के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती।
• इसका कारण सूर्य और बृहस्पति का विशिष्ट संयोग है, जो आध्यात्मिक ऊर्जा को तीव्र करता है लेकिन सांसारिक कार्यों के लिए इसे अवरोधक माना गया है।
• धनु मास की संक्रांति
• यह संक्रांति धर्म की वृद्धि और आध्यात्मिक साधना के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
• अग्नि पुराण के अनुसार, इस दौरान तीर्थ यात्रा, स्नान, और दान के कार्यों का विशेष महत्व बताया गया है।
2. ग्रहों का परिभ्रमण और पर्व/त्योहार
• कुंभ, अर्धकुंभ, और लघुकुंभ
• ग्रहों के परिभ्रमण (गोचर) से विभिन्न पर्व और कुंभ जैसे आयोजनों की गणना की जाती है।
• जब गुरु (बृहस्पति) और सूर्य विशिष्ट राशियों (मेष, कुम्भ, सिंह, तुला आदि) में प्रवेश करते हैं, तो कुंभ, अर्धकुंभ और अन्य प्रमुख धार्मिक पर्वों का आयोजन होता है।
• उदाहरण
• कुंभ मेला गुरु के कुंभ राशि में और सूर्य के मकर राशि में होने पर पड़ता है।
• अर्धकुंभ सूर्य और गुरु के विशेष संयोग पर आधारित होता है।
• धनु और मीन में सूर्य का गोचर
• धनु संक्रांति धर्म, साधना और तपस्या की वृद्धि करती है।
• मीन संक्रांति तीर्थाटन और विशेष दान के लिए उत्तम समय है।
धनु संक्रांति के आरंभ के साथ ही हिंदू धर्म में मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। विवाह, यज्ञोपवीत, गृह प्रवेश, प्राण प्रतिष्ठा आदि कार्य इस समय शुभ नहीं माने जाते। यह अवधि सूर्य के धनु राशि में प्रवेश करने से शुरू होकर सूर्य के मकर राशि में प्रवेश (मकर संक्रांति) तक रहती है, जिसे मलमास या खरमास भी कहते हैं। इस समय तीर्थ यात्रा, पूजा-अर्चना, और धर्म-कर्म का विशेष महत्व होता है। तीर्थ पर जाकर स्नान, पूजन और व्रत-ध्यान करना फलदायी माना जाता है।
कल्पवास का महत्व
सामान्य गृहस्थ 7 से 42 दिनों तक का कल्पवास कर सकते हैं। कल्पवास का अर्थ है एक निश्चित समय के लिए सांसारिक गतिविधियों से अलग होकर भगवान की भक्ति और सत्संग में लीन होना। इस दौरान:
1. सत्संग और कथा श्रवण: ज्ञान प्राप्ति के लिए सत्संग सुनना और धार्मिक कथाओं का श्रवण करना चाहिए।
2. भगवत भजन: भगवान का ध्यान और नामस्मरण करने से मन शुद्ध होता है।
3. दान: जरूरतमंदों को अन्न, वस्त्र, धन, या अन्य सामग्रियों का दान करना पुण्यकारी माना जाता है।
यह समय आत्मचिंतन और साधना के लिए अत्यधिक शुभ माना जाता है।