स्वतंत्र समय, इंदौर
भोपाल और इंदौर में मेट्रो ( metro ) रेल का कमर्शियल रन शुरू नहीं हुआ है, लेकिन उसने कमाने का जरिया खोजना शुरू कर दिया है। बताया गया है मेट्रो स्टेशनों के नाम खरीदे जा सकेंगे। निजी व्यक्ति या कंपनी इसके लिए तय कीमत चुका कर स्टेशन पर अपना नाम दर्ज करा सकेगी। इसके साथ स्टेशनों और डिपो की खाली जगह का व्यवसायिक उपयोग किया जाएगा। वहां दुकानें बनाकर लीज या किराए पर दी जाएंगी। मप्र मेट्रो रेल कॉपोर्रेशन किराए के अलावा अन्य साधनों से कमाई के लिए यह तैयारी कर रहा है। इसे नॉन फेयर बॉस रेवेन्यू कहा जाता है।
metro कम्पनी ने कमाई का जरिया निकाला
बताया गया है कि अभी कमाई के दूसरे विकल्प तलाशने के पीछे कारण यह है कि मेट्रो ( metro ) के फेयर से इतनी आय नहीं होती है कि संचालन का खर्च निकाला जा सके। ऐसे में जिन स्टेशनों पर जगह उपलब्ध है, उसका इस्तेमाल व्यवसायिक तौर पर किया जा सकेगा। जानकारी के मुताबिक भोपाल में इस तरह की 2.65 हेटेयर और इंदौर में एक हेक्टेयर जमीन को डेवलप किया जाएगा। इसकी विस्तृत डिजाइन तैयार कराई जा रही है। इसका जिम्मा दिल्ली की ग्रोएवर इंफ्रा प्राइवेट लिमिटेड को सौंपा गया है।
दोनों ओर मिलेगी चार गुना अधिक निर्माण की अनुमति
भोपाल और इंदौर में मेट्रो रूट के दोनों ओर बड़ी इमारतें बनेंगी। अधिकांश निर्माण कॉमर्शियल होगा। इसका मकसद यह है कि मेट्रो स्टेशन के पास ऑफिस व यात्रियों की जरूरत की सुविधाएं हों। इनसे मेट्रो के संचालन पर होने वाला खर्च भी निकाला जा सके। इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिए ज्यादा निर्माण की अनुमति की आवश्यकता होगी। ऐसे में रूट के आसपास चार से पांच गुना तक अधिक फ्लोर एरिया रेशो (एफएआर) देने का प्रस्ताव राज्य शासन को भेजा जा चुका है। ऐसा होने पर मौजूदा के मुकाबले पांच गुना तक बड़ी बिल्डिंग बनाई जा सकेंगी।
पांच सौ मीटर तक रहेगा ट्रांजिट ओरियंटेड डेवलपमेंट
मप्र मेट्रो रेल कॉपोर्रेशन दोनों ही शहरों में रूट के आसपास की लोकल एरिया प्लानिंग कर रहा है। मेट्रो रूट के दोनों ओर का 500 मीटर का क्षेत्र ट्रांजिट कॉरीडोर रहेगा। मास ट्रांजिट कॉरीडोर में यह सेंट्रल लाइन से 300 मीटर तक रहेगा। इसमें ही मिश्रित के साथ आवासीय व कार्यालयीन उपयोग पर जोर दिया जाएगा। रूट से एक हजार मीटर चौड़ाई के बेल्ट के भीतर का ट्रांजिशन क्षेत्र रहेगा।