हाल ही में हुए एक अध्ययन से यह चेतावनी दी गई है कि च्युइंग गम चबाने वालों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि यह आदत शरीर में माइक्रोप्लास्टिक्स को बढ़ावा देती है। वैज्ञानिकों ने पाया है कि गम चबाने से सैकड़ों सूक्ष्म प्लास्टिक तत्व शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, जो समय के साथ स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकते हैं। इन माइक्रोप्लास्टिकों के कारण कैंसर और अन्य क्रॉनिक बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
माइक्रोप्लास्टिक का बढ़ता खतरा
सभी जानते हैं कि आधुनिक जीवनशैली और खानपान के कारण हम स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। लेकिन अब वैज्ञानिकों का मानना है कि माइक्रोप्लास्टिक की बढ़ती मात्रा भी एक बड़ी वजह बन सकती है। अमर उजाला में हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यह बताया गया था कि कैसे रोज़मर्रा की चीज़ों में माइक्रोप्लास्टिक का खतरा बढ़ता जा रहा है। अब च्युइंग गम चबाने की आदत से भी यह समस्या गंभीर रूप ले रही है।
गम चबाने से 600 माइक्रोप्लास्टिक!
अमेरिकन केमिकल सोसाइटी की एक बैठक में यह अध्ययन प्रस्तुत किया गया, जिसमें पाया गया कि केवल एक ग्राम च्युइंग गम से औसतन 100 माइक्रोप्लास्टिक रिलीज होते हैं, और कुछ मामलों में यह संख्या 600 तक जा सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति साल में 180 च्युइंग गम चबाता है, तो वह करीब 30,000 माइक्रोप्लास्टिक निगल सकता है।
क्या कह रहे हैं शोधकर्ता?
इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता संजय मोहंती ने कहा, “हम लोगों को डराना नहीं चाहते, लेकिन यह सचमुच एक चिंता का विषय है।” उन्होंने बताया कि सबसे आम च्युइंग गम में पेट्रोलियम आधारित पॉलिमर होते हैं, जो चबाने में आसानी लाते हैं, लेकिन इनमें प्लास्टिक की मौजूदगी भी हो सकती है। इसके बारे में पैकेजिंग पर कोई जानकारी नहीं दी जाती है।
माइक्रोप्लास्टिक और मस्तिष्क पर असर
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि इंसानों के शरीर में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी अब मस्तिष्क, रक्त, प्लेसेंटा, ब्रेस्ट मिल्क, लिवर, और किडनी में भी बढ़ रही है। इससे मस्तिष्क की संरचना में बदलाव हो रहा है, जिससे डिमेंशिया, स्ट्रोक और हार्ट अटैक का खतरा 4.5 गुना बढ़ सकता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों की चेतावनी
प्लास्टिक के बढ़ते इस्तेमाल को लेकर विशेषज्ञों ने लगातार चेतावनी दी है। वे बताते हैं कि प्लास्टिक के डिब्बे में खाना रखने और प्लास्टिक की बोतलों से पानी पीने से बचना चाहिए, क्योंकि यह शरीर में माइक्रोप्लास्टिक का स्तर बढ़ाते हैं। हाल ही में किए गए अन्य अध्ययन में यह पाया गया था कि भारतीय नमक और चीनी में भी माइक्रोप्लास्टिक्स हो सकते हैं।
क्या माइक्रोप्लास्टिक कैंसर का कारण बन सकता है?
माइक्रोप्लास्टिक्स को कैंसर के प्रमुख कारणों में से एक माना जाता है। यही नहीं, ये रसायन शरीर में बिस्फेनॉल ए (BPA) जैसे तत्वों को भी बढ़ा सकते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत खतरनाक साबित हो सकते हैं। इस अध्ययन से यह साफ हो गया है कि च्युइंग गम जैसी सामान्य आदतें भी हमारे शरीर पर गंभीर असर डाल सकती हैं।
यह अध्ययन हमें यह समझने के लिए एक बड़ा संकेत है कि हर रोज़ के छोटे-छोटे तत्व भी हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकते हैं।