मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का परिवार अपनी सादगी और धार्मिक आस्था के लिए चर्चा में है। सीएम के बेटे अभिमन्यु यादव अपनी पत्नी डॉ. इशिता यादव के साथ नर्मदा परिक्रमा पर निकले हैं। यह यात्रा पूरी तरह से निजी है और इसे बेहद साधारण तरीके से पूरा किया जा रहा है।
जानकारी के मुताबिक, अभिमन्यु और इशिता ने अपनी यात्रा की शुरुआत ओंकारेश्वर से की थी। वे बिना किसी वीआईपी तामझाम और सुरक्षा प्रोटोकॉल के यह परिक्रमा कर रहे हैं। रास्ते में वे आम श्रद्धालुओं की तरह ही मंदिरों में दर्शन कर रहे हैं और स्थानीय लोगों से मिल रहे हैं।
सादगी से कर रहे यात्रा
मुख्यमंत्री के पुत्र होने के बावजूद, अभिमन्यु यादव ने अपनी यात्रा को प्रचार-प्रसार से दूर रखा है। वे साधारण वाहनों का उपयोग कर रहे हैं और कहीं भी अपनी पहचान उजागर करने से बच रहे हैं। उनकी इस सादगी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर सामने आई हैं, जिसमें वे नर्मदा तट पर पूजा-अर्चना करते नजर आ रहे हैं।
परिक्रमा के दौरान वे कई प्रमुख घाटों और तीर्थ स्थलों पर रुके। स्थानीय लोगों को जब उनकी पहचान के बारे में पता चला, तो वे उनकी सादगी देखकर प्रभावित हुए। यह यात्रा धार्मिक महत्व के साथ-साथ व्यक्तिगत आध्यात्मिक अनुभव के लिए की जा रही है।
पहले भी चर्चा में रही है सादगी
यह पहली बार नहीं है जब सीएम मोहन यादव का परिवार अपनी सादगी के लिए सुर्खियों में आया हो। इससे पहले भी उनके परिवार के सदस्य सामान्य जीवनशैली अपनाते हुए देखे गए हैं। अभिमन्यु यादव का विवाह भी बहुत सादगीपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ था, जिसमें सीमित मेहमानों को आमंत्रित किया गया था।
नर्मदा परिक्रमा मध्य प्रदेश की संस्कृति और आस्था का एक अभिन्न अंग है। इसे ‘नमामि देवी नर्मदे’ के भाव के साथ किया जाता है। सीएम के बेटे द्वारा इस कठिन परिक्रमा को सामान्य श्रद्धालु की तरह करना, राज्य में एक सकारात्मक संदेश दे रहा है।
ओंकारेश्वर से हुई शुरुआत
नर्मदा परिक्रमा की परंपरा के अनुसार, यात्रा की शुरुआत और समापन अक्सर ओंकारेश्वर या अमरकंटक से होता है। अभिमन्यु और इशिता ने ओंकारेश्वर में ज्योतिर्लिंग के दर्शन के बाद संकल्प लेकर अपनी यात्रा शुरू की। वे नर्मदा के दोनों तटों की परिक्रमा पूरी करेंगे। इस दौरान वे आश्रमों और धर्मशालाओं में रुक रहे हैं।
राजनीतिक गलियारों में भी इस यात्रा की चर्चा है, क्योंकि अक्सर नेताओं के परिवार वीआईपी सुविधाओं के साथ देखे जाते हैं। लेकिन मोहन यादव के परिवार ने इस रवायत को तोड़ते हुए आस्था को प्राथमिकता दी है।