आधे प्रदेश के President बनने के बाद बनेगा प्रदेशाध्यक्ष


राजनीति की बात
राजेश के साथ

प्रदेश भाजपा संगठन के चुनाव में अभी तक तो सबकुछ शांति से निपट गया, लेकिन अब नगर और जिलाध्यक्ष ( President ) के फैसले करने को लेकर विधायक, सांसद और मंत्रियों के बीच कुश्ती शुरू हो गई है। 15 जनवरी तक प्रदेश के आधे जिलों के अध्यक्ष नियुक्त हो जाएंगे, उसके बाद ही प्रदेश अध्यक्ष का फैसला होगा। चुनावी सिस्टम के अनुसार ऐसा संभव है कि यदि मध्यप्रदेश के 50 फीसदी जिलाध्यक्ष बन जाते हैं तो फिर प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव हो सकता है। प्रदेश अध्यक्ष के लिए तमाम दावेदारों ने दिल्ली की तरफ दौड़ लगाना शुरू कर दी है। जितने भी दावेदार हैं वो सब अपने स्तर पर जुटे हुए हैं। फग्गन सिंह कुलस्ते, नरोत्तम मिश्रा, भूपेंद्र सिंह, गोपाल भार्गव, हेमंत खंडेलवाल, भगवानदास सबनानी जैसे नाम चल रहे हैं। वैसे, मुख्यमंत्री मोहन यादव की पसंद का यदि कोई अध्यक्ष बना तो फिर वर्तमान कोषाध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल की ताजपोशी हो सकती है। खंडेलवाल को संघ के सुरेश सोनी का भी समर्थन है।

संगठन चुनाव के बाद निगम-मंडल President की होगी घोषणा

वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा चाहते हैं कि उनके रहते हुए ज्यादा से ज्यादा जिला अध्यक्षों ( President ) का फैसला हो जाए ताकि उनके पद से हटने के बाद भी उनका जलवा कायम रहे। इसके साथ ही संगठन चुनाव के बाद निगम-मंडल अध्यक्षों की घोषणा होना है। वैसे, प्रदेश प्रभारी शिवप्रकाश और अजय जामवाल कह चुके हैं कि अब चुनाव प्रकिया शुरू हो चुकी है इसलिए अध्यक्ष सहित कोई पदाधिकारी नहीं हैं। फिर भी वर्तमान पदाधिकारी इस कोशिश में लगे हैं कि उनकी पसंद के अध्यक्ष बन जाएं। जितने भी मध्यप्रदेश सरकार के मंत्री हैं, उनकी अपने इलाके के साथ-साथ और कुछ विधायकों की पटरी नहीं बैठ रही है, इस कारण 25 से ज्यादा जिलों में विवाद की स्थिति है।
इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, सागर, जबलपुर जैसे जिलों के अध्यक्ष तो भाजपा हाईकमान के हस्तक्षेप के बाद ही बन पाएंगे। भाजपा की सरकार होने के कारण जिलाध्यक्ष का महत्व बढ़ जाता है। जब से भाजपा में संभागीय संगठन मंत्री का पद समाप्त किया गया है तब से जिलाध्यक्षों को और ज्यादा ताकत मिल गई है। पहले ये जिलाध्यक्ष, संगठन मंत्री से पूछे बिना कोई फैसला नहीं ले पाते थे। सांसद, विधायक तक संगठन मंत्री की बात मानते थे, लेकिन अब हर मामले में जिलाध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है।
मुख्यमंत्री की कार में बैठने से लेकर अफसरों पर रौब झाडऩे के मामले में जिलाध्यक्ष सबसे आगे रहते हैं। प्रदेश के जो पदाधिकारी जिलों के प्रभारी रहते हैं उनका कोई खास वजूद नहीं होता है। इस कारण जिलाध्यक्ष ही सब कुछ होते हैं।
अब प्रदेश प्रभारी शिवप्रकाश और अजय जामवाल की जवाबदारी बढ़ गई है। जिन जिलों के अध्यक्ष की नियुक्ति में विवाद हो रहे हैं उनका समाधान करना जरूरी भी है। यदि हालात नहीं सुधरे, तो फिर दो-तीन जगह तो संगठन चुनाव की नौबत आ सकती है।
जिस तरीके से विधायकों ने अपनी पसंद के जिला अध्यक्ष बनाने को लेकर सक्रियता बढ़ाई है, उसको लेकर सबसे ज्यादा दिक्कतें हैं। मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति में भी विधायकों ने जिस तरीके से रुचि ली थी तभी इस बात का अहसाह हो गया था कि जिला अध्यक्ष की नियुक्तियों में आसानी से मामला नहीं निपटेगा।