सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर MP में बड़ा फैसला, न्यायिक अधिकारियों की रिटायरमेंट उम्र 60 से बढ़कर 62 साल हुई

सुप्रीम कोर्ट के एक अहम निर्देश का पालन करते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य के न्यायिक अधिकारियों की सेवानिवृत्ति आयु में बढ़ोतरी कर दी है। अब प्रदेश में न्यायिक सेवा के अधिकारी 60 साल की बजाय 62 साल की उम्र में रिटायर होंगे। इस बदलाव को लेकर राज्य के विधि और विधायी कार्य विभाग ने आधिकारिक अधिसूचना भी जारी कर दी है।

यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद आया है, जिसमें देश भर में निचली अदालतों के न्यायाधीशों की सेवा शर्तों में एकरूपता लाने का प्रयास किया गया है। इस कदम से राज्य के सैकड़ों न्यायिक अधिकारियों को लाभ मिलने की उम्मीद है।

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश और पृष्ठभूमि

यह मामला अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ (All India Judges Association) द्वारा दायर एक याचिका से जुड़ा है। इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को न्यायिक अधिकारियों की सेवानिवृत्ति आयु को चरणबद्ध तरीके से बढ़ाकर 65 वर्ष करने की दिशा में काम करने का सुझाव दिया था। पहले कदम के तौर पर इसे 62 वर्ष करने का निर्देश दिया गया था।

सर्वोच्च न्यायालय का मानना है कि अनुभवी न्यायिक अधिकारियों की सेवा का अधिक समय तक लाभ उठाने से न्यायपालिका को मजबूती मिलेगी। इससे न केवल मुकदमों के बढ़ते बोझ को कम करने में मदद मिलेगी, बल्कि न्याय की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।

मध्य प्रदेश में नियमों में संशोधन

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में, मध्य प्रदेश सरकार ने ‘मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा (भर्ती तथा सेवा की शर्तें) नियम, 1994’ में आवश्यक संशोधन किया है। विधि विभाग द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार, इन नियमों में संशोधन करते हुए सेवानिवृत्ति की आयु सीमा को 60 से 62 वर्ष कर दिया गया है।

यह संशोधन तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है। इसका सीधा असर उन सभी न्यायिक अधिकारियों पर पड़ेगा जो आने वाले समय में 60 वर्ष की आयु पूरी करने वाले थे। अब वे दो और वर्षों तक अपनी सेवाएं दे सकेंगे।

फैसले का क्या होगा असर?

इस फैसले का सबसे बड़ा असर न्यायिक प्रणाली पर पड़ेगा। अनुभवी जजों के सेवा में बने रहने से लंबित मामलों के निपटारे में तेजी आने की संभावना है। इसके अलावा, नए न्यायिक अधिकारियों की भर्ती और प्रशिक्षण के लिए भी अतिरिक्त समय मिलेगा।

सरकार के इस कदम को न्यायिक सुधारों की दिशा में एक सकारात्मक पहल के रूप में देखा जा रहा है। यह निर्णय न केवल अधिकारियों का मनोबल बढ़ाएगा, बल्कि आम जनता को त्वरित और प्रभावी न्याय दिलाने में भी सहायक सिद्ध हो सकता है।