मध्यप्रदेश श्रम विभाग के अंतर्गत आने वाले मप्र भवन एवं अन्य संनिर्माण कर्मकार कल्याण मंडल की कौशल प्रशिक्षण योजना में हाल ही में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का मामला सामने आया है। यह योजना मूल रूप से श्रमिकों और उनके आश्रितों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान कर रोजगार योग्य बनाने के उद्देश्य से शुरू की गई थी। लेकिन जांच में यह खुलासा हुआ है कि योजना का वास्तविक लाभ श्रमिकों तक नहीं पहुंचा और प्रशिक्षण के नाम पर जारी बजट का इस्तेमाल अधिकारियों और कुछ निजी एजेंसियों द्वारा मनमाने ढंग से किया गया।
श्रमिकों को नहीं मिला वास्तविक लाभ
भवन एवं अन्य संनिर्माण और असंगठित श्रमिक संघ (INTUC) के महामंत्री अशोक गोस्वामी ने इस मामले पर चिंता जताई। उनके अनुसार, पंजीकृत श्रमिक और उनके परिवारजन इस योजना से किसी भी प्रकार का लाभ प्राप्त नहीं कर पाए। योजना का वास्तविक लाभ केवल विभागीय अधिकारियों और प्रशिक्षण प्रदान करने वाली संस्थाओं को ही मिला। विशेषकर ग्वालियर-चंबल, उज्जैन-मंदसौर और सागर संभाग के श्रम कार्यालयों में तत्कालीन अधिकारियों ने बजट का दुरुपयोग किया। गोस्वामी ने मंडल के सचिव की भूमिका पर भी गंभीर सवाल उठाए और इसे श्रमिकों के अधिकारों की अनदेखी कर भ्रष्टाचार का मामला बताया।
आरटीआई के माध्यम से हुए खुलासे
सूचना के अधिकार (RTI) के तहत प्राप्त दस्तावेजों के अनुसार, कौशल प्रशिक्षण योजना के नाम पर लगभग 48 करोड़ रुपए का भुगतान निजी एजेंसियों को किया गया। यह राशि उन युवाओं और श्रमिकों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए जारी की गई थी, जिन्हें रोजगार से जोड़ने का दावा किया गया था। लेकिन जांच में सामने आया कि न तो इन एजेंसियों के पास किसी प्रशिक्षण के प्रमाण मौजूद थे और न ही लाभार्थियों के पास कोई सर्टिफिकेट। कई ऐसे लाभार्थी थे जिन्हें यह भी याद नहीं कि उन्होंने कभी कोई प्रशिक्षण लिया हो।
आंतरिक जांच रिपोर्ट का निष्कर्ष
श्रम विभाग की आंतरिक जांच में यह स्पष्ट हुआ कि 2015 से 2022 के बीच योजना के तहत करोड़ों रुपए का भुगतान हुआ। रिपोर्ट में कई ट्रेडों का जिक्र था जिनमें प्रशिक्षण दिया गया, लेकिन जिन लोगों के नाम सूचीबद्ध थे, वे उन ट्रेडों से जुड़े ही नहीं थे। जांच में यह भी सामने आया कि मंडल ने भुगतान बिना पुख्ता दस्तावेज और प्रमाण के जारी किया। इस खुलासे से स्पष्ट हुआ कि योजना का वास्तविक लाभ श्रमिकों और युवाओं तक नहीं पहुंचा और धन का उपयोग केवल भ्रष्टाचार की परतों में उलझा रहा।
निष्कर्ष और आगामी कदम
इस मामले से यह संकेत मिलता है कि योजना में पारदर्शिता और निगरानी का अभाव था। कई ऐसे युवा और श्रमिक जो इस प्रशिक्षण योजना के लिए पात्र थे, वे वंचित रह गए, जबकि करोड़ों रुपये का दुरुपयोग हुआ। अब यह मामला मुख्य सचिव और विभागीय सचिव तक पहुँच चुका है, और उम्मीद है कि आगे की कार्रवाई से दोषियों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा और भविष्य में ऐसी योजनाओं में पारदर्शिता सुनिश्चित की जाएगी।