MP News: जिन स्कूलों में रसूखदारों के परिजन पदस्थ, वहां 2 से 5 ही छात्र, फिर भी जारी संचालन

मध्यप्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है। प्रदेश में करीब साढ़े चार हजार सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जहां बच्चों की संख्या नाम मात्र ही रह गई है। कई स्कूलों में तो केवल दो से पांच छात्र ही पढ़ रहे हैं, जबकि कुछ स्कूलों में तो छात्र संख्या शून्य के करीब पहुंच चुकी है। इसके बावजूद, इन स्कूलों को बंद करने की प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं हो पाई है।

नेता और अफसरों का दबाव

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इन स्कूलों को बंद न करने के पीछे राजनीतिक और प्रशासनिक दबाव काम कर रहा है। जिन स्कूलों में नेताओं या अफसरों के परिजन, रिश्तेदार या करीबी लोग पदस्थ हैं, वे अब भी चालू रखे गए हैं। उदाहरण के तौर पर, कुछ स्कूलों में ओबीसी आयोग अध्यक्ष के निजी सहायक के रिश्तेदार, किसी जिले के डीपीसी की बहन या अध्यापक संघ के पदाधिकारी पदस्थ हैं। इन जगहों पर छात्रों की संख्या बेहद कम होने के बावजूद भी स्कूल चलाए जा रहे हैं। इससे साफ है कि रसूख के चलते स्कूलों को कृत्रिम रूप से जिंदा रखा गया है, ताकि वहां काम करने वाले शिक्षकों की पोस्टिंग बनी रहे और उन्हें अन्य स्कूलों में भेजा न जा सके।

एक साल पहले होना था फैसला लागू

दरअसल, प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग ने पहले ही यह निर्णय लिया था कि जिन स्कूलों में छात्रों की संख्या 20 से कम है, उन्हें बंद कर दिया जाएगा। इस फैसले के अनुसार, वहां पढ़ने वाले बच्चों को नजदीकी स्कूलों में भेजा जाना था और वहां कार्यरत शिक्षकों को उन स्कूलों में तैनात करना था, जहां शिक्षकों की भारी कमी है। इस व्यवस्था से शिक्षा व्यवस्था को संतुलित करने की योजना थी। लेकिन, यह योजना अभी तक लागू नहीं हो पाई है।

4608 स्कूल बंद करने की बनी थी सूची

शिक्षा विभाग के सर्वे के मुताबिक, प्रदेश के 17 जिलों में कुल 4608 ऐसे स्कूल हैं, जिन्हें पिछले साल ही बंद कर दिया जाना चाहिए था। इनमें से अधिकांश स्कूलों में छात्र संख्या बेहद कम है, लेकिन राजनीतिक दखल और अफसरों के दबाव के कारण ये स्कूल अब भी अस्तित्व में बने हुए हैं। इससे प्रदेश के शिक्षा बजट पर अतिरिक्त बोझ पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर जिन स्कूलों में छात्र संख्या अधिक है, वहां शिक्षकों की कमी बनी हुई है।

शिक्षा व्यवस्था पर सवाल

इस पूरे मामले ने प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। एक तरफ लाखों बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित हैं और कई स्कूलों में शिक्षक नहीं मिलते, वहीं दूसरी तरफ ऐसे स्कूल चल रहे हैं, जिनमें पढ़ने वाले छात्र गिनती के हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि इस तरह की राजनीति और रसूख हस्तक्षेप जारी रहा, तो प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था पर इसका नकारात्मक असर पड़ेगा।