मध्य प्रदेश में वन्यजीव संरक्षण की दिशा में वन विभाग ने एक अहम योजना तैयार की है। सीहोर जिले में मिले तेंदुए के तीन नन्हे शावकों को अब जंगल में वापस भेजने की तैयारी शुरू हो गई है। वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, इन शावकों को जुलाई 2026 में दमोह जिले में स्थित वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व में स्वतंत्र विचरण के लिए छोड़ा जाएगा।
फिलहाल, इन तीनों शावकों की देखभाल भोपाल के वन विहार नेशनल पार्क में की जा रही है। जब ये शावक सीहोर के बुदनी क्षेत्र में मिले थे, तब इनकी उम्र काफी कम थी और वे अपनी मां से बिछड़ गए थे। वन अमले ने उन्हें रेस्क्यू कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया था। अब वन विहार में उनकी सेहत और स्वाभाविक विकास पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
वन विहार में हो रही विशेष देखभाल
वन विहार के अधिकारियों ने बताया कि शावकों को जंगल के माहौल में ढालने के लिए विशेष प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा है। उन्हें इंसानी संपर्क से दूर रखा जा रहा है ताकि वे अपनी प्राकृतिक प्रवृत्ति न खोएं। वर्तमान में उनकी डाइट और स्वास्थ्य की नियमित जांच की जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि जुलाई 2026 तक ये शावक पूरी तरह वयस्क हो जाएंगे और जंगल में शिकार करने में सक्षम होंगे।
रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व ही क्यों?
वन विभाग ने इन तेंदुओं के लिए रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व का चयन किया है। यह रिजर्व अपने घने जंगलों और पर्याप्त शिकार आधार (Prey base) के लिए जाना जाता है। दमोह का यह क्षेत्र तेंदुओं के लिए एक आदर्श आवास माना जाता है। अधिकारियों का कहना है कि यहां का वातावरण इन शावकों के लिए अनुकूल होगा और वे यहां आसानी से अपना क्षेत्र बना सकेंगे।
मां से बिछड़ने की पुरानी घटना
गौरतलब है कि कुछ समय पहले सीहोर जिले के बुदनी वन परिक्षेत्र में ये तीन शावक लावारिस हालत में मिले थे। वन विभाग की टीमों ने कई दिनों तक इनकी मां (मादा तेंदुए) को खोजने का प्रयास किया था। इसके लिए क्षेत्र में कैमरा ट्रैप लगाए गए थे और गश्त भी बढ़ाई गई थी। तमाम कोशिशों के बावजूद जब मादा तेंदुआ वापस नहीं लौटी, तो शावकों की सुरक्षा को देखते हुए उन्हें वन विहार भेजने का निर्णय लिया गया था।
वन्यजीव विशेषज्ञों के मुताबिक, मां से बिछड़े शावकों को जंगल में वापस छोड़ना एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया होती है। इसे ‘रिवाइल्डिंग’ (Rewilding) कहा जाता है। वन विहार में चल रही प्रक्रिया इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, ताकि ये वन्यजीव अपना शेष जीवन पिंजरे के बजाय खुले जंगल में बिता सकें।