MP Tourism: आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मध्यप्रदेश सुंदरता के मामले में जरा भी कम नहीं है। मप्र ये अपने भीतर कई नेचुरल चीजों को समाए हुए हैं। यहां पर दूर-दूर से टूरिस्ट घूमने के और छुट्टियां मनाने के लिए आते हैं। मध्यप्रदेश में बड़े-बड़े झरनों के साथ ही कई चर्चित हिल स्टेशन भी उपस्थित हैं जहां का नजारा एक बार में ही लोगों का मन मोह लेता है यहां पर हमेशा ही पर्यटकों की भीड़ देखने को मिलती है।
ऐसे में अगर आप भी मध्यप्रदेश घूमने का प्लान बना रहे हैं तो आज हम आपको मध्यप्रदेश की उन लोकप्रिय जगहों के विषय में बताने जा रहे हैं। जिनके बिना आपका सफर इनकंप्लीट माना जा सकता हैं। वैसे तो मध्यप्रदेश में देखने के लिए काफी कुछ है। लेकिन आज हम आपको प्रदेश के कुछ ऐसे विश्व प्रसिद्ध हिल स्टेशन के विषय में बताने जा रहे हैं। जो एक ही बार में आपका दिल जीत लेंगे। इन दिनों मध्यप्रदेश पर्यटकों की पहली पसंद बना हुआ है। यहां सबसे ज्यादा पर्यटक घूमने के लिए और एमपी को एक्स्प्लोर करने के लिए आ रहे हैं। आज हम आपको एमपी का ऐसा थाना बताने जा रहे हैं जहां खुद की कुर्सी बचाने के लिए थानेदार को रोज हाजरी लगानी पड़ती है।
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अब आप ये सुन कर हैरान रह गए होंगे लेकिन ये सच बात है। क्योंकि एमपी दमोह जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर स्थित तेजगढ़ थाने में एक ऐसी मजार मौजूद है जहां सबसे पहले थानेदार को आते ही मजार में जाकर सजदा करना पड़ता है। उसके बाद ही वह अपनी कुर्सी पर बैठ सकता है। यहां कि मान्यता काफी ज्यादा है। अगर कोई यहां हजरत बाबा मुरादशाह की मजार में हाजरी नहीं लगता है तो उसकी कुर्सी हाथ से चली जाती है। इतना ही नहीं आजतक इस थाने में कोई झूठी गवाही और शिकायत दर्ज नहीं की गई क्योंकि बाबा साहब का आशीर्वाद बना हुआ है। इसके अलावा थाने में कोई भी चप्पल जूते पहन कर नहीं आ पता है सभी को बाहर उतार कर आना पड़ता है।
थाने में बनी मजार को लेकर देखरेख करने वाले बाबा को सपना आया था जिसमें यह कहा गया कि बाबा थाने में ही रहना चाहते हैं। इसके बाद से ही वह इस थाने में मौजूद है। जब भी कोई नया थानेदार आता है, वह कुर्सी पर बैठने से पहले बाबासाहेब की मजार पर अपनी हाजिरी देता है। उसके बाद ही कुर्सी पर बैठ पाता है।
इसके लिए थाने के बाहर एक बड़ा सा पर्चा लगाया गया है। जिसमें साफ और बड़े अक्षरों में लिखा हुआ है कि अपने जूते चप्पल बाहर उतार कर ही अंदर आए। आपको बता दें, थाने में बनी यह मजार की देखरेख अब तक 6 पीढ़ियों के लोग कर चुके हैं। ऐसे में इसको लेकर सलीम मुल्लाजी द्वारा जानकारी दी गई है कि इस मजार का इतिहास सदियों पुराना है।
पहले यहां तेजगढ़ में राजा तेज सिंह का राज हुआ करता था जिनके कचहरी यही थी। लेकिन बाद में ब्रिटिश सरकार ने इसे थाना बना दिया था। उसके बाद से इस मजार में अब तक जितने भी थानेदार रहे। वह सब अपना सर झुका है बिना अपनी कुर्सी पर नहीं बैठते। इसके अलावा इस मजार से जुड़े कई चमत्कारी किस्से भी मशहूर है। उन्होंने आगे बताया कि 1973 में इस गांव से दूर एक थाना बनाने के लिए जब जमीन का चयन किया गया था, तो मजार हटाने का काम शुरू हो गया था। दीवारें भी खड़ी कर दी गई थी। लेकिन रातों-रात उन दीवारों में दरार आ गई और वह धसने लग गई।