मध्यप्रदेश भारत के मध्य में स्थित शानदार पर्यटन स्थलों में से एक है। मध्य प्रदेश को भारत के दिल की धड़कन भी कहा जाता है। क्योंकि यहां के पर्यटन स्थल पर्यटकों का दिल चुरा लेते हैं। यहां पर प्रति वर्ष लाखों की संख्या में सैलानी प्रकृति की सुंदरता का दीदार करने आते हैं। भारत का सबसे कम आबादी वाला यह राज्य अपनी खूबसूरती से पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है। ऐसे में यदि आप घूमने की योजना बना रहे हैं तो एक बार मध्य प्रदेश के इन शानदार पर्यटन स्थलों का दीदार अवश्य करें। आज हम आपको मध्य प्रदेश के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। जहां पर घी, तेल नहीं बल्कि पानी से दीपक जलते हैं और यहां आज से नहीं पिछले कई वर्षों से इस तरह ही जलते हुए आ रहे हैं। देखा जाए तो मंदिरों में दर्शन करने जाते हैं तब आपको दीपक जलते हुए जरूर दिखाई देते हैं।
मंदिरों में दीपक को जलाने के लिए घी या फिर तेल का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन ये एक ऐसा रहस्यमयी मंदिर है। जहां पर पानी से भी दीपक जलते हैं। बता दें कि यह मंदिर मध्यप्रदेश के गड़ियाघाट माताजी के मंदिर के नाम से जाना जाता है। जहां के चमत्कारों को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। जहां घी या तेल से नहीं बल्कि पानी से दीपक जलता है।
बता दें कि यह मंदिर काली सिंध नदी के किनारे आगर-मालवा के नलखेड़ा गांव से करीब 15 किलोमीटर गाड़िया गांव में है। जहां पर यह मंदिर बना हुआ है, बताया जाता है कि इस मंदिर में पिछले 5 सालों से घी तेल के बदले पानी से दीपक जलाए जा रहे हैं। इस चमत्कार को लेकर मंदिर के पुजारी बताते हैं कि, पहले तेल का दीपक जला करता था।
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आगे उन्होंने बताया कि 1 दिन उन्हें सपने में माता रानी ने दर्शन दिए और पानी से दीपक जलाने को कहा इसके बाद से ही तकरीबन 5 सालों से यहां पटेल और की नहीं बल्कि पानी से दीपक जलते हैं। पुजारी ने आगे बताया कि माता रानी के दिए गए सपने के बाद उन्होंने जैसे ही हावड़ा सुबह उठकर पास बह रही कालीसिंध नदी से पानी भरा और उसे दीए में डाला।
दीपक को जलाया तो वहां पानी से भी जरूर था जिसके बाद से ही यहां मंदिर में पानी से दीपक जलते हुए नजर आ जाएंगे। बताया जाता है कि दिए में जैसे ही पानी डाला जाता है वह तेल टूटी चिपचिपा हो जाता है और दीपक जल उठता है। हालांकि उन्होंने आगे इस बात की जानकारी साझा की है कि पानी से जलने वाला दीपक बारिश के समय नहीं जलता है। इसके पीछे की भी वजह बताते उन्होंने कहा की।
बारिश के मौसम में कालीसिंध नदी का जलस्तर लेवल बढ़ने की वजह मंदिर पानी में डूब जाता है, जिससे यहां पूजा उस समय नहीं हो पाती. ये दिया फिर सितंबर-अक्टूबर में आने वाली शारदीय नवरात्रि के पहले दिन दोबारा ज्योत जला दी जाती है, फिर ये दिया अगले साल बारीश के मौसम तक जलती रहती है। इस मंदिर का रहस्य जानने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं और माता रानी के दर्शन कर वापस लौट जाते हैं और यह चमत्कार आज भी रहस्य बना हुआ है।