स्वतंत्र समय, नई दिल्ली
क्या मुस्लिम ( Muslim ) पर्सनल लॉ के तहत 15 साल की नाबालिग मुस्लिम लडक़ी की शादी की इजाजत दी जा सकती है? यह एक गंभीर सवाल बन गया है क्योंकि देश के कई हाईकोर्ट ने इस बारे में अलग-अलग फैसले दिए हैं। इससे एक तरह से भ्रम की स्थिति बन गई है। इसी भ्रम को दूर करने के लिए नेशनल कमिशन फॉर चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ने याचिका दाखिल की है।
पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने Muslim पर्सनल लॉ का दिया था हवाला
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस वाईडी चंद्रचूड़ की अदालत में इस याचिका पर बहस के लिए सॉलिटर जनरल तुषार मेहता पहुंचे। दरअसल, सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने मंगलवार को सीजेआई की कोर्ट के सामने ये मामला उठाया। उन्होंने कहा कि इस मसले पर विभिन्न हाईकोर्ट के अलग-अलग फैसले आ रहे हैं, जिसके कारण भ्रम की स्थिति बन रही है। इन फैसलों के खिलाफ फिर विभिन्न हाईकोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दाखिल हो रही है। ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट इससे जुड़ी सभी याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर इस पर स्पष्टता दे। सीजेआई ने भी इस पर जल्द विचार करने पर सहमति जताते हुए कहा कि इस पर स्पष्टता की जरूरत है। कुछ समय पहले पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने मुस्लिम ( Muslim ) पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए 15 साल की मुस्लिम लड़की की शादी को वैध करार दिया था। हाईकोर्ट के इस फैसले को राष्ट्रीय महिला आयोग और राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी और सॉलिसीटर जनरल ने इसे लेकर स्पष्टता देने का अनुरोध किया।
बुधवार को सुनवाई की अपील
तुषार मेहता ने इस मसले को बुधवार या गुरुवार को सुनवाई के लिस्ट करने की अपील की। इस चीफ जस्टिस ने कहा कि एक बार मामला सेटल हो जाने दीजिए। हम इस पर जल्दी सुनवाई की तारीख देंगे। देश में अभी वैधानिक तौर पर लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल और लडक़ों की उम्र 21 साल है। हालांकि लॉ कमिशन और अन्य संस्थाएं लड़कियों की शादी की उम्र भी 21 करने की सिफारिश कर चुकी है। दूसरी तरफ पर्सनल लॉ बोर्ड कहता है कि मासिक धर्म शुरू होने के बाद लडक़ी की शादी की उम्र हो जाती है। भले वह 18 साल से कम की हो। इस पर 2022 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट अपना मुहर लगा चुका है।