MP का रहस्यमयी नागचंद्रेश्वर मंदिर, जहां एक दिन के लिए दर्शन देते हैं भगवान शिव, जानें नागचंद्रेश्वर मंदिर की रहस्यगाथा

भारत में हजारों प्राचीन और पौराणिक मंदिर हैं, लेकिन मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर एक ऐसा मंदिर है जिसकी विशेषता इसे अन्यों से अलग बनाती है। यह मंदिर सालभर भक्तों के लिए बंद रहता है और केवल नाग पंचमी के दिन ही इसके पट खोले जाते हैं। इस एक दिन में लाखों श्रद्धालु उज्जैन पहुंचते हैं, ताकि इस दुर्लभ मंदिर के दर्शन कर सकें।

महाकालेश्वर मंदिर की ऊपरी मंजिल पर स्थित है मंदिर

नागचंद्रेश्वर मंदिर उज्जैन के प्रसिद्ध महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। आम दिनों में यह पूरी मंजिल बंद रहती है, और वहां आम दर्शन की अनुमति नहीं होती। लेकिन नाग पंचमी के दिन, रात 12 बजे मंदिर के द्वार खोले जाते हैं और अगले 24 घंटे तक अविरल दर्शन चलते हैं। इसके बाद मंदिर पुनः अगले वर्ष के लिए बंद हो जाता है।

भगवान शिव नाग शैय्या पर: एक दुर्लभ प्रतिमा

इस मंदिर की सबसे खास बात यहां स्थित भगवान शिव की अद्वितीय प्रतिमा है। सामान्य रूप से नाग शैय्या पर भगवान विष्णु को विराजमान दिखाया जाता है, लेकिन यहां भगवान शिव सर्पराज तक्षक की सात फनों वाली शैय्या पर विश्राम मुद्रा में विराजमान हैं। उनके साथ मां पार्वती और बाल गणेश भी विराजमान हैं। यह 11वीं शताब्दी की मूर्ति अत्यंत दुर्लभ और आध्यात्मिक रूप से अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है।

मूर्ति के पीछे की पौराणिक कथा

मान्यता है कि सर्पराज तक्षक ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए वर्षों तक कठिन तपस्या की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया और उन्हें अपने सान्निध्य में स्थान दिया। तक्षक नाग की यह इच्छा थी कि उनकी सेवा के स्थान पर कोई विघ्न न आए, इसलिए मंदिर को सिर्फ नाग पंचमी पर खोला जाता है, ताकि उनकी गोपनीयता बनी रहे और भक्तों को भी विशेष फल की प्राप्ति हो।

इतिहास से जुड़ी प्रमाणिक जानकारी

ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण मालवा सम्राट राजा भोज द्वारा लगभग 1050 ईस्वी में कराया गया था। इसके बाद 1732 ईस्वी में राणोजी सिंधिया द्वारा महाकाल मंदिर का व्यापक जीर्णोद्धार किया गया, जिसमें नागचंद्रेश्वर मंदिर का भी पुनर्निर्माण हुआ। मंदिर में स्थित मूर्ति नेपाल से लाई गई मानी जाती है, जो आज भी अपनी मौलिक स्थिति में विद्यमान है।

कालसर्प दोष से मुक्ति का विशेष केंद्र

नागचंद्रेश्वर मंदिर केवल दर्शनों के लिए ही नहीं, बल्कि ज्योतिषीय दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। कहा जाता है कि जिन भक्तों की कुंडली में कालसर्प दोष होता है, वे अगर इस मंदिर में नाग पंचमी के दिन दर्शन करें तो उन्हें इस दोष से मुक्ति मिलती है। यही कारण है कि इस दिन विशेष रूप से कालसर्प दोष से पीड़ित श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहां आते हैं।

पूजन व्यवस्था और अखाड़े की भूमिका

मंदिर की संपूर्ण देखरेख और पूजन व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़ा के संतों और संन्यासियों द्वारा की जाती है। नाग पंचमी पर पूजन विधिवत रूप से अखाड़े के महंतों और जिला प्रशासन की निगरानी में किया जाता है। मंदिर में किसी भी तरह की अव्यवस्था न हो, इसके लिए पुलिस, स्वास्थ्य सेवाएं और स्वयंसेवकों की टीम भी तैनात रहती है।

धार्मिक महत्ता और नाग पंचमी का महत्व

नाग पंचमी सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आती है और यह दिन नाग देवताओं की पूजा का विशेष पर्व माना जाता है। इस दिन श्रद्धालु मिट्टी या धातु से बनी नाग-नागिन की प्रतिमा का दूध, जल, चंदन, पुष्प आदि से पूजन करते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन नागों की पूजा करने से भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न होते हैं, क्योंकि नाग उनके आभूषण माने जाते हैं।

लाखों श्रद्धालुओं की आस्था और तैयारी

हर वर्ष नाग पंचमी पर लगभग 5 से 7 लाख श्रद्धालु उज्जैन पहुंचते हैं। इन श्रद्धालुओं के दर्शन और सुविधा के लिए मंदिर समिति और जिला प्रशासन विशेष व्यवस्था करता है। भीड़ नियंत्रण, मेडिकल सुविधा, पेयजल, मोबाइल शौचालय, और सुरक्षा के लिए विशेष इंतजाम किए जाते हैं। महंत विनीत गिरी जी महाराज ने भी श्रद्धालुओं से संयम और नियमों का पालन करने का अनुरोध किया है, ताकि हर भक्त को नागचंद्रेश्वर के दर्शन का सौभाग्य शांति और श्रद्धा से प्राप्त हो सके।