स्वतंत्र समय, इंदौर
इंदौर में नक्शे के विपरीत अवैध निर्माण कार्य और नर्मदा विभाग ( Narmada department ) की जमीन पर कब्जे का मामला झोन-14, वार्ड-79 में सामने आया है। इस मामले की शिकायत यूं तो सालभर पहले प्रशासन और नगर निगम को की गई है, लेकिन इसे रोकने के लिए अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। दरअसल हरपाल सिंह अरोरा ने निगम प्रशासन को एक पत्र के माध्यम से जानकारी दी कि ग्राम हुक्माखेड़ी के विभिन्न खसरा नंबरों पर अवैध निर्माण कार्य किया जा रहा है, जो स्वीकृत नक्शे और अनुमति से अधिक है। इस दौरान न केवल कमर्शियल बल्कि आवासीय निर्माण कार्य भी नक्शे के विपरीत किए जा रहे हैं, जिससे यह मामला काफी गंभीर बन गया है।
Narmada department की जमीन पर अवैध निर्माण की स्वीकृति ननि से
दरअसल पूरा मामला अवैध निर्माण और नर्मदा विभाग ( Narmada department ) की जमीन पर कब्जे का है, जो गंभीर चिंता का विषय है। अरोरा ने आरोप लगाया कि श्रीमती रतनादेवी, श्रीमती आशाशीदेवी, नितिन और विनिता, जो इंदौर के निवासी हैं, इन सभी ने एक प्रोजेक्ट के तहत अवैध निर्माण को आगे बढ़ाया है। यह निर्माण नगर निगम से स्वीकृत परमिशन दिनांक 27.08.2021 के तहत किया जा रहा है, लेकिन मौके पर स्वीकृति से अधिक निर्माण किया जा रहा है। इस अवैध निर्माण का सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि नर्मदा पाइप लाइन की जमीन पर भी कब्जा किया जा रहा है। खसरा नंबर 104/6/2 के सामने की मुख्य मार्ग पर एक शासकीय खसरा क्रं. 26 है, जो कि नर्मदा पाइपलाइन के लिए चिन्हित है। नर्मदा विभाग से इस जमीन की एनओसी प्राप्त की गई है या नहीं, यह जानकारी ली जाए, क्योंकि नर्मदा पाइप लाइन के करीब अवैध निर्माण करना खतरनाक साबित हो सकता है। अगर समय पर इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो इससे न केवल स्थानीय लोगों की सुरक्षा खतरे में आ सकती है बल्कि सरकारी संपत्ति को भी नुकसान हो सकता है।
जल्द से जल्द कार्रवाई जरूरी
अरोरा ने निगम से मांग की है कि निर्माण स्थल की नपती करवाई जाए और अवैध रूप से निर्मित संरचनाओं को तोड़ा जाए। क्योंकि यह मामला सिर्फ अवैध निर्माण का ही नहीं बल्कि निगम और नर्मदा विभाग की जमीन पर भी कब्जे का है, जो कानूनन अपराध है। इसलिए म.प्र. भूमि विकास नियम 2012 के तहत इस निर्माण की जांच की जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। साथ ही नर्मदा विभाग से भी जवाब मांग जाए कि उनकी पाइपलाइन की सुरक्षा के लिए क्या कदम उठाए गए हैं। निगम प्रशासन से उम्मीद है कि वे इस मामले की गंभीरता को समझते हुए जल्द से जल्द कार्रवाई करेंगे।
ज़मीन की खरीदी और रजिस्ट्री के सवाल
शिकायत में यह यभी बताया गया कि खसरा नंबर 105/4 की जमीन को रतनादेवी आहूजा और प्रहलाद आहूजा ने 1975 में एक विक्रय पत्र के माध्यम से खरीदा था। इसके बाद कुछ और भूमि की रजिस्ट्री भी हुई, जिसमें उनके नाम पर संयुक्त स्वामित्व की बात दर्ज है। इसी तरह खसरा नंबर 104/6/2 की भी खरीदारी की गई थी, जिसकी मालकी और आधिपत्य रतनादेवी आहूजा के नाम पर दर्ज है। इन सभी भूमि सौदों के बावजूद, नगर निगम के नियमों के तहत अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) और भू-राजस्व संहिता के प्रावधानों का पालन किया जाना चाहिए था।
निगम और नर्मदा विभाग की भूमिका पर सवाल
इस मामले में नगर निगम और नर्मदा विभाग की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। अवैध निर्माण कार्य के चलते यह सवाल उठ रहा है कि क्या संबंधित विभागों ने अपनी जिम्मेदारियों को सही ढंग से निभाया है। क्या नगर निगम ने नक्शे के उल्लंघन के बारे में पहले से जानकारी थी, और अगर थी, तो उन्होंने अब तक इस पर कार्रवाई क्यों नहीं की? नर्मदा पाइपलाइन के पास निर्माण करना एक बड़ा मुद्दा है, क्योंकि इससे न केवल पाइपलाइन को नुकसान हो सकता है बल्कि पानी की आपूर्ति पर भी असर पड़ सकता है। पर नर्मदा विभाग भी अब तक आंखें मूंदे बैठा है। वहीं स्थानीय लोगों के बीच इस निर्माण को लेकर काफी असंतोष है। उनका कहना है कि यह अवैध निर्माण न केवल उनकी सुरक्षा को खतरे में डालता है बल्कि इलाके की व्यवस्था और योजना में भी रुकावट डालेगा।