राजेश राठोर
मां जगदम्बे की भक्ति और शक्ति के आगे हम सब नतमस्तक हैं। शक्तिस्वरूपा मां दुर्गा की नवरात्रि ( Navratri ) में नौ दिन तक आराधना करने के साथ अब हाईप्रोफाइल गरबों का जमाना आ गया है। मां जगदम्बे के चरणों में नमन करते हुए मैं यह लिखने का साहस कर रहा हूं कि गरबों के जरिए गुजरात से लेकर मध्यप्रदेश और इंदौर में गरबों के दौरान जो पाश्चात्य संस्कृति का घालमेल बनता जा रहा है वो अत्यधिक चिंताजनक है।
Navratri में पारम्परिक संस्कारों का ख्याल रखना भी जरूरी
आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। जब मां की आराधना का मामला है तो फिर नवरात्रि ( Navratri ) में गरबों के दौरान नारीशक्ति को लेकर सवाल क्यों उठने लगे हैं। कई दूसरे धार्मिक आयोजनों की तरह धर्म की आड़ में जो नई संस्कृति पनपती जा रही है, वो समाज के लिए कितनी घातक है, इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता। जगह-जगह गरबे होना, उसमें सनातनी धर्म और पारम्परिक संस्कारों का ख्याल रखना भी जरूरी है। चंद पैसे वाले और गरबे के जरिए कमाई करने वाले लोगों ने इस नवरात्रि उत्सव को भी धंधा बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चंदेबाज भी सक्रिय हैं और मां नवदुर्गा के संस्कारों का ख्याल न रखते हुए जो कुछ कर रहे हैं वो भी सोचने लायक विषय है। अब सवाल इस बात का उठता है कि गरबों को लेकर इतना सबकुछ लिखने की जरूरत क्यों आन पड़ी। धार्मिक मामला है इसलिए इशारों में ही पाठकों को हम बता रहे हैं कि यदि आपकी बेटी या बेटा कहीं गरबा करने जा रहे हैं या देखने जा रहे हैं तो कोशिश करें कि साथ में जाएं। यदि ऐसा नहीं कर सकते तो फिर इस बात की चिंता पालें कि वो रात को वापस कब लौट रहे हैं। इसके साथ ही गरबे के दौरान जो कुछ होता है वो भी देखने और समझने लायक बात है। पिछले दिनों एक अखबार में यह खबर पढक़र माथा ठनक गया कि ‘गरबे के दौरान दोस्ती और प्यार के बाद शादी हो गई, उनके लिए गरबा करने जाना फायदे का सौदा साबित हो गया’। गरबे के दौरान कुछ ऐसे लोगों के प्रवेश को लेकर भी सवाल उठाए जा रहे हैं जो किसी धर्म विशेष के हैं। गरबा देखने आने वालों के परिचय पत्र चेक करने से लेकर गोमूत्र पिलाने तक की बातें हो रही हैं। आखिर क्यों फिल्मी गानों पर गरबे होते हैं, आखिर क्यों वेशभूषा का ध्यान नहीं रखा जाता। किसी ने तो यह भी कहा कि युवाओं के एक धड़े ने तो यह मान लिया कि गरबा मतलब परिचय सम्मेलन है। यदि कोई किसी को पसंद करता है तो वह उसको अपना जीवन साथी भी बना सकता है। खैर, बाते हैं-बातों का क्या। हां पर नारी शक्ति को मां दुर्गा की आराधना में संस्कार और संस्कृति का ध्यान रखना जरूरी हो गया है। हमने इशारों में बहुत कुछ लिख दिया क्योंकि धर्म का मामला है। अब बाकी सभ्य समाज जाने कि उनकी क्या जवाबदारी है।