Nimisha Priya: यमन में 2017 के एक हत्या के मामले में दोषी ठहराई गई केरल की नर्स निमिशा प्रिया की मौत की सजा पूरी तरह से रद्द कर दी गई है। यह जानकारी भारत के ग्रैंड मुफ्ती कंथापुरम ए.पी. अबूबकर मुस्लियार के कार्यालय ने सोमवार को दी।
इस निर्णय की घोषणा महीनों की उच्च-स्तरीय राजनयिक बातचीत और यमन की राजधानी सना में अंतिम क्षणों में हुई एक अहम बैठक के बाद सामने आई। बैठक में यह तय किया गया कि पहले से अस्थायी रूप से निलंबित मौत की सजा को पूरी तरह समाप्त किया जाएगा।
ग्रैंड मुफ्ती के कार्यालय द्वारा जारी बयान में कहा गया, “निमिशा प्रिया की मौत की सजा, जिसे पहले निलंबित किया गया था, अब पूरी तरह से रद्द कर दी गई है। यह निर्णय सना में हुई एक उच्च-स्तरीय बैठक में लिया गया।” यह जानकारी समाचार एजेंसी एएनआई द्वारा रिपोर्ट की गई।
हालांकि, ग्रैंड मुफ्ती कार्यालय ने यह स्पष्ट किया कि उन्हें अब तक यमनी सरकार से आधिकारिक लिखित पुष्टि प्राप्त नहीं हुई है। भारत के विदेश मंत्रालय ने भी इस घटनाक्रम की पुष्टि नहीं की है।
Nimisha Priya की फांसी टली, अपील से बदला फैसला
गौरतलब है कि निमिशा की फांसी की तारीख 16 जुलाई 2025 तय की गई थी, लेकिन इससे एक दिन पहले ग्रैंड मुफ्ती अबूबकर मुस्लियार की यमन के अधिकारियों से की गई अपील के बाद सजा पर रोक लगा दी गई थी। इसके बाद मामला एक बार फिर विचाराधीन में चला गया और अब पूरी तरह से सजा रद्द कर दी गई है।
क्यों हुई थी Nimisha Priya को सजा?
केरल के पलक्कड़ जिले की निवासी 38 वर्षीय निमिशा प्रिया वर्ष 2008 में रोजगार के बेहतर अवसरों की तलाश में यमन गई थीं। एक प्रशिक्षित नर्स के रूप में उन्होंने वहां एक यमनी नागरिक तालाल अब्दो महदी के साथ मिलकर सना में एक क्लिनिक शुरू किया।
हालांकि, समय के साथ दोनों के बीच संबंध बिगड़ने लगे। रिपोर्ट्स के अनुसार, महदी ने न केवल निमिशा का उत्पीड़न शुरू कर दिया, बल्कि खुद को उसका पति बताकर उसका पासपोर्ट भी जब्त कर लिया। इस कारण निमिशा भारत लौटने में असमर्थ हो गईं।
2017 में अपने दस्तावेज वापस लेने की कोशिश में निमिशा ने महदी को बेहोश करने की कोशिश की, जिससे कथित तौर पर अधिक मात्रा में नशीली दवा देने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर 2018 में हत्या का दोषी ठहराया गया, और 2020 में यमन की अदालत ने उन्हें मौत की सजा सुनाई।
अंतरराष्ट्रीय दबाव और मानवीय अपील का असर
निमिशा का मामला तब अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आया जब यमन के राष्ट्रपति रशाद अल-अलीमी और हूती नेता महदी अल-मशात ने 2024 के अंत और 2025 की शुरुआत में उनकी फांसी को मंजूरी दे दी। इसके विरोध में भारत सरकार, धार्मिक संगठनों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कई स्तरों पर हस्तक्षेप किया।
कई महीनों तक चली इन कोशिशों और धार्मिक नेताओं की मानवीय अपीलों के चलते आखिरकार यमन सरकार को निर्णय पर पुनर्विचार करना पड़ा।