इंदौर की सड़कों पर रोज़ाना एक पिंक बस दौड़ती है, लेकिन उसकी स्टेयरिंग थामे बैठी महिला सिर्फ एक ड्राइवर नहीं, बल्कि हिम्मत, आत्मनिर्भरता और उम्मीद की मिसाल है। हम बात कर रहे है निशा शर्मा कि जो जनजातीय अंचल के छोटे से गाँव देवला (जिला धार) से निकलकर निशा आज इंदौर की पिंक आई बस की कमान संभाल रही हैं। यह वही इंदौर है, जिसे देवी अहिल्या बाई होलकर ने अपने न्याय और सेवा से संवारा था। उन्हीं के पदचिन्हों पर चलते हुए, निशा महिलाओं के सशक्तिकरण की जीवंत प्रेरणा बन चुकी हैं।
जब महिलाए चुल्हा जलाती है तब वह कर देती है बस स्टार्ट
रोज़ सुबह 6 बजे, जब शहर की अधिकांश गलियाँ नींद में डूबी होती हैं, घरेलू महिलाएं अपना चुल्हा जलाती है तब निशा विजय नगर डिपो पहुँच जाती हैं। वहाँ से वह पिंक बस लेकर बीआरटीएस कॉरिडोर पर राजीव गांधी चौराहे तक का सफर तय करती हैं। पूरे आत्मविश्वास और मुस्कान के साथ। दोपहर 2 बजे तक बस चलाने के बाद भी उनके चेहरे पर थकान का नामोनिशान नहीं होता। और अगर ज़रूरत पड़ी, तो वह स्वेच्छा से दूसरी शिफ्ट भी संभालती हैं। लेकिन निशा का सफर बस की स्टीयरिंग तक सीमित नहीं, यह एक संघर्षों से भरी गाथा है।
पिता से सीखा शोर्य
सिर्फ तीन साल की उम्र में ही निशा के पिता की मृत्यु हो गई थी उनके पिता भारतीय सेना में गनर थे। इसके बाद निशा की माँ ने मानपुर में मजदूरी कर के किसी तरह परिवार को संभाला। निशा भी बचपन से खेतों में काम करने लगीं। मनरेगा में मजदूरी की, सिलाई सीखी, हर वो काम किया जिससे घर चल सके। तब किसे पता था कि यह लड़की एक दिन इंदौर की पिंक बस चलाएगी! फिर उनकी मां कि तबीयत खराब होने पर निशा तय कर लिया कि “अब मैं खुद गाड़ी चलाऊंगी!” गाँव वालों ने मज़ाक उड़ाया कि “लड़की होकर गाड़ी चलाएगी? लेकिन निशा डरी नहीं। उनके मुँहबोले मामा ने उनका हौसला समझा और उन्हें गाड़ी चलाना सिखाया। फिर क्या था — निशा ने न सिर्फ कार, बल्कि ट्रैक्टर, आयशर, पिकअप और यहाँ तक कि बस चलाना भी सीख लिया। फिर एक दिन महू के ही एक डॉक्टर ने बताया कि इंदौर में महिला बस चालकों की ज़रूरत है। निशा ने बिना देर किए एआईसीटीएसएल से संपर्क किया, टेस्ट दिया और चुन ली गईं।
हजारों महिलाओ को देती है संदेश
आज वह आत्मविश्वास से भरपूर, पिंक टीशर्ट और ब्लैक पैंट पहनकर सुबह-सुबह जब अपनी बस लेकर निकलती हैं, तो वह सिर्फ गाड़ी नहीं चलातीं बल्कि वह हजारों महिलाओं को सुरक्षित मंज़िल तक पहुंचाने का भरोसा भी देती हैं। इस पिंक बस में सिर्फ महिलाएं सफर करती हैं, और उनके चेहरे पर सुकून की एक झलक होती है। क्योंकि स्टेयरिंग पर बैठी निशा शर्मा साहस, संघर्ष और नारी शक्ति की जीती-जागती मिसाल पेश करती है।