आठ साल से अधर में लटका गैर राप्रसे के अफसरों का IAS का सपना

स्वतंत्र समय, भोपाल

मप्र में पिछले सात साल से गैर राप्रसे के अधिकारियों को आईएएस ( IAS ) अवार्ड देने के मामले में जीएडी कार्मिक ने फिर अडंगा लगा दिया है। जीएडी कार्मिक ने इस साल भी केवल राप्रसे के अफसरों को ही आईएएस के 7 पदों पर प्रमोट करने का प्रस्ताव तैयार किया है, जबकि एक समय गैर राप्रसे से आईएएस बने अफसरों की मप्र सरकार में तूती बजती थी।

गैर राज्य प्रशासनिक सेवा से IAS बने अफसरों की तूती बोलती थी

मप्र में गैर राज्य प्रशासनिक सेवा से आईएएस (IAS) के पदों पर चयनित हुए अफसरों में एसके मिश्रा, अरुण भट्ट, व्हीके बाथम, एसके वशिष्ठ, बसीम अख्तर, मंजू शर्मा, संजय गुप्ता, शमीम उद्दीन आदि अफसरों की सरकार में तूती बजती थी। वैसे इनमें से अधिकांश अफसर रिटायर हो चुके हैं। वर्तमान में गैर राप्रसे से आईएएस बने केवल संजय गुप्ता ही उज्जैन कमिश्नर के पद पर पदस्थ है, जबकि राज्य प्रशासनिक सेवा के प्रमोशन से भरे जाने वाले आईएएस के पदों में से 15 प्रतिशत पद गैर राप्रसे के अधिकारियों को दिए जाने का प्रावधान केंद्र सरकार द्वारा तय किया गया है, लेकिन इसके लिए राज्य सरकार को अधिकार है कि वह चाहे तो रिक्त पदों को राप्रसे के प्रमोशन से भरे अथवा गैर राप्रसे के अधिकारियों के प्रमोशन से। वर्ष 2016 में गैर राप्रसे के अधिकारियों से चार अफसरों को आईएएस बनाया गया था। इसके बाद से जीएडी कार्मिक ने न तो गैर राप्रसे के अधिकारियों के नाम विभागों से बुलाए और न ही उनका चयन आईएएस में करने के लिए कोई प्रस्ताव तैयार किया।

वंचित अफसर भी नहीं कर रहे डिमांड

कमलनाथ के मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में राज्य सरकार में सामान्य प्रशासन मंत्री रहते डॉ. गोविंद सिंह ने इसकी फाइल आगे बढ़ाई थी। तत्कालीन मुख्य सचिव सुधिरंजन मोहंती भी इससे सहमत थे, लेकिन अन्य अधिकारियों की असहमति के कारण गैर राप्रसे के अधिकारी आईएएस बनने से वंचित रह गए। इस मामले में गैर राप्रसे के अधिकारियों द्वारा कुछ साल तक तो सरकार से डिमांड की जाती रही, लेकिन अब उनके लिए आईएएस बनना सपने जैसा बनकर रह गया है, क्योंकि गैर राप्रसे यानि पीएससी से प्रथम श्रेणी अधिकारी बने ये अफसर आईएएस बनने के लिए सरकार से सीधे मांग भी नहीं कर सकते हैं। उधर, सूत्रों का कहना है कि अब तक विभागीय पदोन्नति समिति की बैठक कराने के लिए संघ लोक सेवा आयोग को प्रस्ताव चला जाना चाहिए था, लेकिन लोकसभा चुनाव की आचार संहिता के कारण प्रक्रिया पिछड़ गई। मुख्यमंत्री को प्रस्ताव भेजा है, जिसे अनुमोदन के बाद केंद्र सरकार के माध्यम से आयोग को भेज दिया जाएगा।