मध्य प्रदेश में प्राइवेट स्कूलों की फीस बढ़ोतरी पर अब सख्ती से नकेल कसने की तैयारी तेज हो गई है। चार महीने पहले मंजूर किए गए विधेयक पर आखिरकार स्कूल शिक्षा विभाग ने अमल करना शुरू कर दिया है। इस निर्णय से प्रदेश के अभिभावकों को बड़ी राहत मिल सकती है।
अब मंजूरी लेनी होगी
प्रदेश सरकार के नए प्रस्ताव के मुताबिक, यदि किसी प्राइवेट स्कूल की सालाना फीस 25,000 रुपये से ज्यादा है, तो स्कूल अब बिना अनुमति के फीस नहीं बढ़ा सकेंगे। फीस बढ़ाने के लिए अब स्कूलों को जिले की फीस रेग्युलेटरी कमेटी से अनुमति प्राप्त करनी होगी। अगर कोई स्कूल इस फैसले से असहमत होता है, तो वह राज्य स्तरीय समिति में अपील कर सकता है। वहीं, 25,000 रुपये से कम फीस वाले स्कूलों को भी हर साल केवल 10% तक ही फीस बढ़ाने की अनुमति होगी।
एफिडेविट अनिवार्य
अब फीस संरचना में पारदर्शिता लाने की दिशा में एक और बड़ा कदम उठाया गया है। जिन स्कूलों की वार्षिक फीस 25,000 रुपये से ज्यादा है, उन्हें अब नोटरी से एफिडेविट बनवाना होगा, जिसे विभागीय पोर्टल पर अपलोड करना होगा। इसके अलावा, यह एफिडेविट जिला समिति के सामने भी प्रस्तुत करना होगा। यदि राज्य समिति को आवश्यकता पड़ी, तो वह जिला समिति द्वारा लगाए गए जुर्माने में परिवर्तन कर सकती है।
स्कूलों द्वारा अपील किए गए मामलों में अब कोई देरी नहीं होगी। नए प्रस्ताव में कहा गया है कि स्कूलों के आवेदन या विवादों पर विभागीय समिति 45 कार्यदिवसों के भीतर फैसला लेगी। हालांकि, 15% से ज्यादा फीस वृद्धि के मामलों में ही राज्य समिति को हस्तक्षेप करने का अधिकार होगा। बाकी मामलों में जिला समिति का निर्णय अंतिम होगा।
अभिभावकों को राहत, स्कूलों में चिंता
अभिभावक संगठनों ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है और इसे प्राइवेट स्कूलों की फीस वसूली में अनुशासन लाने वाला बताया है। वहीं, कई स्कूल प्रबंधक इसे प्रशासनिक दखल मान रहे हैं। अब देखना यह होगा कि इस नए नियम के लागू होने के बाद स्कूलों और सरकार के बीच कैसे समीकरण बनते हैं। फिलहाल, प्रदेश के हजारों अभिभावक इस फैसले को बड़ी राहत के रूप में देख रहे हैं।