स्वतंत्र समय, भोपाल
महिला एवं बाल विकास विभाग ने शाला त्यागी बालिकाओं का सर्वे नहीं किया और 5.08 लाख फर्जी हितग्राहियों को पोषण आहार बांट दिया। विभाग ने 110 करोड़ का घोटाला ( scam ) किया। ये खुलासा सीएजी की रिपोर्ट में हुआ है। उधर, पोषण आहार सप्लाई में भी दो पहिया वाहनों के नाम पर चार पहिया वाहनों से प्रदाय किया जाना बताया गया।
इन पांच फर्मों ने किया scam
सीएजी के रिपोर्ट में बताया कि टीम ने घोटाले ( scam ) की जांच के दौरान प्लांट और डीपीओ के दफ्तरों से मिले 40 चालानों का सत्यापन किया। इनमें से पांच फर्म- एमपी एग्रो न्यूट्री फूड्स लिमिटेड, एमपी एग्रोटॉनिक्स लिमिटेड, एमपीएसएआईडीसीएल, कोटा दाल मिल, राजस्थान और एमपी एग्रो फूड इंडस्ट्री लिमिटेड ने ट्रकों के जरिए 2.96 करोड़ के 479.46 मीट्रिक टन राशन की आपूर्ति बताई थी। वाहन पोर्टल पर ट्रकों के नंबर की जांच करने पर पता चला कि ये ट्रक नंबर मोटर साइकिल, कार, ऑटो, ट्रैक्टर और टैंकर के रूप में रजिस्टर्ड थे। इसमें सीएजी ने प्लांट, ट्रांसपोर्टर और परियोजना अधिकारियों के बीच मिलीभगत पाई। साथ ही 2.5 करोड़ रुपए कीमत के 404 मीट्रिक टन राशन का कोई रिकॉर्ड ही नहीं मिला।
हर यूनिट पर 11 हजार का नुकसान
सौभाग्य योजना के तहत दूरदराज के ऐसे गांव, जहां बिजली की पहुंच नहीं है, वहां केंद्र सरकार ने हर परिवार को सोलर एनर्जी से 200 वॉट बिजली देने का फैसला किया था। इसके लिए हर घर में एक यूनिट लगाई जानी थी। प्रति यूनिट 31,348 रुपए हजार खर्च आना था। मप्र सरकार को इस योजना के लिए 1871 करोड़ रुपए मिले थे। राज्य सरकार ने कहा था कि वह योजना पर 10 प्रतिशत राशि व्यय करेगी। कैग की रिपोर्ट कहती है कि पूर्व क्षेत्र कंपनी ने इसके लिए लोन लिया और उसे मार्च 2022 तक ब्याज के तौर पर 24 करोड़ रुपए देने पड़े। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि मप्र में बिजली कंपनियों ने पहले 50 वॉट के पैनल 17,622 रुपए और फिर 150 वॉट के पैनल 24,774 रुपए में लगाए। इस तरह हर यूनिट पर 11 हजार रुपए एक्स्ट्रा खर्च किया।
गलत आंकड़े दिखाकर लिया 201 करोड़ का पुरस्कार
केंद्र सरकार ने 24 अक्टूबर 2018 को एक पुरस्कार शुरू किया था। जिसमें कहा गया था कि सौभाग्य योजना का कंपनी स्तर पर 30 नवंबर 2018 तक 100 फीसदी घरेलू कनेक्शन देने का टारगेट था। मप्र की दो कंपनी- पश्चिम व मध्य विद्युत वितरण कंपनी ने इस टारगेट को पूरा करने का प्रमाण पत्र केंद्र सरकार को भेज दिया था। इसके आधार पर केंद्र ने दोनों कंपनियों को 100-100 करोड़ रुपए का पुरस्कार दिया जबकि कैग की रिपोर्ट के मुताबिक यह टारगेट 2019 में पूरा हुआ था। पुरस्कार की अवधि निकल जाने के बाद मध्य क्षेत्र कंपनी ने 4 हजार 725 घरों में कनेक्शन करने के 24 वर्क ऑर्डर दिसंबर 2018 में जारी किए गए थे। यह काम अक्टूबर 2019 में पूरा किया गया था। इसी तरह पश्चिम क्षेत्र कंपनी ने यह टारगेट जून 2019 में पूरा किया था।
ई-टेंडर किए बिना दे दिया ठेका
कैग के मुताबिक, सौभाग्य योजना के तहत बिजली कनेक्शन का ठेका ई-टेंडर के माध्यम से दिया जाना था, लेकिन पूर्व व पश्चिम विद्युत वितरण कंपनियों ने 1 लाख 38 हजार घरेलू कनेक्शन के लिए टुकड़ों में 4 हजार से ज्यादा वर्क ऑर्डर निकाले। इनके जरिए 50 करोड़ 62 लाख रुपए का भुगतान कर दिया। इसी तरह कनेक्शन के लिए 4 एमएम का तार इस्तेमाल करना था लेकिन कैग ने जांच में पाया कि तीनों कंपनियों ने 3 लाख 36 हजार से ज्यादा घरों में बिजली कनेक्शन के लिए 2.5 एमएम के तार का इस्तेमाल किया।