Oil का खेल, महंगाई की रेलम पेल… राजस्व की गहरी खदान में सरकार फेल


प्रोफेसर (डॉ) श्याम सुन्दर पलोड
लेखक, कवि एवं वक्ता

तेल ( Oil ) का खेल और महंगाई की रेलम पेल…सरकार राजस्व की गहरी खदान के आगे हो जाती है फेल…। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत कितनी ही घट जाए पेट्रोल-डीजल सस्ते नहीं होते। जिनको चरण वन्दन की अपेक्षा ज्यादा होती है उनसे चाहकर भी नमस्ते नहीं होते।

Oil से खजाना भरती है सरकार

कर की महत्वपूर्ण शक्ति तेल ( Oil ) यानी पेट्रोल-डीजल से खजाना भरने वाली होती है…जनता तो बस हर समय महंगाई महंगाई रोती है…सरकारें जनता के सीने में टैक्स की गोली बोती है…दाम सुनकर आम जनता की खुल जाती धोती है…कच्चे तेल के अस्थिर दाम तेल कंपनियों को तो दे जाते हैं मुनाफे का पैगाम…इसी से जुटाए राजस्व से देशभर में हो जाते है ढेरों काम…इसके महाप्रताप से माथा दुखता है तो अवाम मसलती है झंडू बाम…भारत में पेट्रोलियम कम्पनियों की मूल्य निर्धारण में स्वायत्तता भारी पड़ रही है…लाखों करोड़ के मुनाफे के साथ ये कम्पनियां तरक्की की सीढ़ी चढ़ रही है…पेट्रोल – डीजल पर वेट सहित तमाम कर आरोपित हैं…अलग अलग राज्यों में अलग अलग दरें रोपित है…इसी के चलते किसी राज्य में इनके दाम सस्ते तो कहीं महंगे है…हर नेता को विकास के पृष्ठ में लगते दामन पेट्रोलियम पदार्थों के ही भले चंगे हैं…मूल लागत से दुगुने करों की व्यवस्था का जनक कौन है ये तो पता नहीं लेकिन ये अत्याचार है…कुत्ते की दाढ़ में लगे खून की मानिंद लालच का ये भी स्वरूप खूंखार है…सारी महंगाई की जड़ यही है…हर वस्तु के दाम की गंगा इसी से बही है…फल , सब्जी , अनाज से लगाकर हर उपभोक्ता वस्तु पेट्रोल डीजल के मूल्य पर आश्रित है…प्रत्यक्ष – अप्रत्यक्ष रूप से महंगाई इसी से होती निसरित है…कोई मंत्री कहते हैं कि पेट्रोल के दाम 20 रु प्रति लिटर घट जाएंगे…ये स्टेटमेंट पढ़ते ही उस पोर्टल के फॉलोवर्स खूब पट जाएंगे…मगर घटेंगे कब और कैसे…सरकार को तो चाहिए ऐसे भी पैसे वैसे भी पैसे…या तो पेट्रोलियम कम्पनियों पर सरकार का नियंत्रण नहीं या ये कम्पनियां ही सबकुछ नियंत्रित कर रही है…घटाते समय कम और बढ़ाते समय ज्यादा दाम संयोजित कर रही है…एक दिन में एक रुपये लिटर भी दाम बढ़ जाता है…तो मुनाफा करोड़ों में ऊपर चढ़ जाता है…हर दिन कमाई पर कमाई हो रही है…जनता क्या करे उसकी तो बस लुटाई हो रही है…किसी जमाने में पेट्रोल डीजल के मूल्य नियंत्रित करने हेतु आयल पुल के नाम पर 1 रु लिटर जमा किये थे…खरबों रुपये का अन्य योजनाओं में उपयोग हुआ उनसे मूल्य कम नियंत्रित किये थे…अब तो घरेलू गैस की भी वही दशा है…सरकारी योजनाओं की बदल गई दिशा है…सब्सिडी समाप्त और मूल्य अधिक होते जा रहे हैं…आम जनता से रुपये लेकर गरीबी के नाम पर वो खोते जा रहे हैं…ये ही महंगाई की उत्तरोत्तर वृध्दि का मूल कारण है…सरकार के पास इसका नहीं कोई निवारण है…फिर महंगाई दर सर्वोत्कृष्ट स्तर पर आ गई है…महंगाई डायन मध्यमवर्ग को खा गई है ।