ओंकारेश्वर: नर्मदा के ‘मौत वाले घाट’ पर 11 महीने में 24 मौतें! गहराई, बांध और असुरक्षित घाट बन रहे वजह

Khandwa News : तीर्थनगरी ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी में आस्था की डुबकी अब जानलेवा साबित हो रही है। यहां के घाट ‘मौतों के घाट’ में तब्दील होते जा रहे हैं, जहां पिछले 11 महीनों में 24 श्रद्धालु अपनी जान गंवा चुके हैं।

अगर पिछले चार साल का आंकड़ा देखें तो यह संख्या 62 तक पहुंच जाती है। ज्यादातर मृतक इंदौर, महाराष्ट्र और गुजरात के श्रद्धालु थे, जिन्हें नदी की अप्रत्याशित गहराई और तेज बहाव का अंदाजा नहीं था।

सूत्रो के मुताबिक बताया जा रहा है कि इन हादसों के पीछे कोई एक नहीं, बल्कि कई वजहें हैं। घाटों पर सुरक्षा के इंतजाम न के बराबर हैं, ओंकारेश्वर बांध के कारण पानी का स्तर अचानक घटता-बढ़ता रहता है और बचाव के लिए गोताखोरों की टीम भी मौजूद नहीं है।

असुरक्षित घाट और नदारद इंतजाम

ओंकारेश्वर में ज्योतिर्लिंग मंदिर के आसपास ब्रह्मपुरी, नागर, अभय और कोटितीर्थ समेत करीब एक दर्जन घाट हैं, लेकिन इनमें से किसी पर भी सुरक्षा रेलिंग नहीं लगाई गई है। प्रशासन ने कुछ समय पहले पानी में ट्यूब जरूर छोड़े थे, लेकिन वे नाकाफी साबित हुए। नदी में कई जगहों पर गहरी चट्टानें, खाइयां और भंवर हैं, जो बाहरी श्रद्धालुओं के लिए अदृश्य जाल की तरह काम करते हैं। पानी की गहराई इतनी है कि इसका अंदाजा लगाना लगभग नामुमकिन है।

घाटों पर नावों का कब्जा

श्रद्धालुओं की सुरक्षा में एक और बड़ी बाधा घाटों पर नावों का जमावड़ा है। प्रशासन ने नावों के लिए कोई निश्चित स्टैंड तय नहीं किया है, जिसके चलते ज्यादातर घाटों पर नावों का कब्जा रहता है। इससे स्नान के लिए सुरक्षित जगह कम हो जाती है और लोगों को असुरक्षित जगहों पर नहाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

हैरान करने वाली बात यह है कि यहां लाइसेंसी से ज्यादा अवैध नावें चलती हैं। नगर परिषद और मंदिर ट्रस्ट की कुछ सरकारी बचाव नावें हैं, लेकिन हादसों के वक्त वे अक्सर खड़ी रहती हैं और उनके नाविक दूसरे कामों में व्यस्त पाए जाते हैं।

क्या ओंकारेश्वर बांध है हादसों की वजह?

नाविक संघ के सचिव अरुण वर्मा के अनुसार, साल 2007 में ओंकारेश्वर बांध बनने के बाद से डूबने की घटनाओं में तेजी आई है। उनका कहना है कि बांध से छोड़े जाने वाले पानी के कारण नर्मदा का जलस्तर स्थिर नहीं रहता।

“बांध से पानी के स्तर में लगातार उतार-चढ़ाव होता है। इससे घाटों की सीढ़ियों पर काई जम जाती है, जो दिखाई नहीं देती। श्रद्धालु फिसलकर गहरे पानी में चले जाते हैं और हादसे का शिकार हो जाते हैं।” — अरुण वर्मा, सचिव, नाविक संघ

अरुण वर्मा ने बताया कि नाविक संघ ने कई बार प्रशासन से घाटों पर गोताखोर तैनात करने की मांग की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। कई मौकों पर स्थानीय नाविकों ने ही अपनी जान पर खेलकर लोगों को बचाया है। उन्होंने सुझाव दिया कि या तो जलस्तर को नियंत्रित रखने के लिए एक अपर डैम बनाया जाए या ओंकारेश्वर बांध से पानी का स्तर सामान्य रखा जाए, ताकि हादसों को रोका जा सके।