सोमवार शाम को एरोड्रम रोड पर ट्रक ने केवल गाडिय़ों और इंसानों को ही नहीं कुचला, बल्कि कुचला है एक पूरे के पूरे शहर को। जो शहर कभी अपनी परंपराओं और अपनी आवाज के लिए जाना जाता था। एक शहर था जो कभी छोटी सी घटना पर भी विचलित हो उठता था। जिसके नेता कभी शोसाबाजी नहीं करते थे, बल्कि जमीन पर ठोस काम करते थे। ट्रक के पहियों में कुचले इस शहर का नाम है इंदौर।
इस शहर को मुर्दा शहर कहने के पीछे सबस बड़ा कारण है जिन हादसों में लोगों की जान जाती है, उससे ये शहर कभी सबक नहीं लेता। यहां के नेता हादसों के बाद अपनी नेतागिरी चमकाने के लिए तुरंत अस्पतालों में पहुंच जाते हैं और जब घायलों को इलाज की जरुरत होती है तब उन्हें देखने के नाम पर फोटो जरुर खिंचवाते हैं। ऐसा एक बार नहीं बल्कि कई घंटों तक चलता है और डॉक्टर मरीज का इलाज बाद में करते हैं, पहले नेताओं की चमचागिरी में लगे रहते हैं।
पूरी दुनिया में कोई हादसा होता है तो पहले जिम्मेदारी तय होती है, ओर हादसा दोबारा न हो इसके लिए प्लानिंग होती है, लेकिन इंदौर में अलग ही सिस्टम है। यहां सबसे पहले सबूत खत्म किए जाते हैं। जनवरी 2018 में डीपीएस बस हादसा हुआ, हादसे के तुरंत बाद ही स्कूल बस को मौके से हटा दिया गया। 31 मार्च 2018 में ही सरवटे पर एमएस होटल भरभराकर गिर गई। 11 लोग दब गए। रात 9.32 पर ये बिल्डिंग गिरी उसमें कई लोग दबे हुए थे, लेकिन इंदौर के अफसरों ने मलबे पर बुलडोजर चलवाकर उसमें जिंदा लोगों को भी खत्म कर दिया, सुबह 4 बजे तक तो पूरी जगह को ही साफ कर दिया।
उसके बाद 30 मार्च 2023 को रामनवमी पर बावड़ी धंसी, 36 जानें चली गई। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तक दुखी हुए। 31 मार्च को सुबह 8 बजे तक रेस्क्यू ऑपरेशन चला। उसके 48 घंटे में ही जिस जगह हादसा हुआ उस बावड़ी को मलबा डालकर बंद कर दिया गया। 15 सितंबर 2025 को शाम के समय एरोड्रम रोड पर हादसा हुआ, 15-16 सितंबर की रात को ही पूरी सडक़ धोकर साफ कर दी गई। कानून की नजर में ये सभी काम सबूतों को मिटाने की श्रेणी में आते हैं। भारतीय न्याय संहिता की धारा 238 के तहत इसके लिए 7 साल की सजा अफसरों को होना चाहिए।
जिस शहर में जिला कोर्ट के साथ ही हाईकोर्ट भी है। शहर में 5 हजार से ज्यादा वकील हैं। लेकिन इंदौर के हादसे पर संज्ञान जबलपुर को लेना पड़ता है। हजारों न्याय की देवी के उपासकों के शहर में खुलेआम ही नहीं दादागिरी से सबूत मिटाए जाते हैं। सबूतों को मिटाने का खेल अपनी लापरवाही को छुपाने के लिए नेता और अफसर खेलते हैं, लेकिन इस शहरवाले मौनी बाबा बने रहते हैं। जबकि ये सबूत हादसे की जांच, उसके दोषियों को ढूंढऩे के साथ ही आगे ऐसा न हो इसमें मदद कर सकते हैं। लेकिन हमारे शेहर में ऐसा नहीं होता है, क्योंकि पूरा शहर ही मुर्दों का शहर जो है।
जिस तरह से लाशों का इस्तेमाल अस्पतालों में डॉक्टरों की पढ़ाई के लिए होता है, उन पर एक्सपेरिमेंट होते हैं, उसी तरह जनता को कैसे दबाया जाए ये कला इंदौर में नेता और अफसर सीखते हैं। इसके लिए वो शहर के मुर्दा हो चुके लोगों पर अलग-अलग एक्सपेरिमेंट भी करते हैं। जानवर भी अपने इलाके में गलत होने या गलत होने के अंदेशे पर ही विचलित हो जाते हैं, लेकिन इंदौरवालों को किसी भी हादसे से कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि लाशों को किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता।
भोजन-भंडारों में नेताओं के पीछे लाइन लगाने वाले बेगैरती इंदौरियों यदि जरा सी भी शर्म बची हो तो इन भोजन भंडारों को करवाने वाले अपने आकाओं से इस बात की ग्यारंटी ले लो कि आगे से ऐसा कोई हादसा शहर में नहीं होगा। ये मत भूलों की दूसरों के घर की आग को देखकर मुंह फेरने वालों के घरों के भी आग में स्वाहा होने पर समय नहीं लगता है।
बाकलम – नितेश पाल