स्वतंत्र समय, भोपाल
लोकसभा चुनाव के समय प्रदेश कांग्रेस ( Congress ) में भगदड़ मची रही, उससे कांग्रेस को बहुत अधिक चुनावी नुकसान उठाना पड़ा है। यही वजह है कि अब चुनाव होने के बाद सवाल खड़ा होने लगा है कि इन नेताओं को भाजपा में कितनी तवज्जो मिलेगी। फिलहाल माना जा रहा है कि उन्हें पार्टी संगठन में अपनी नए सिरे से पहचान बनानी होगी।
आया राम गया राम के चक्कर में Congress नेताओं की फजीहत
कांग्रेस ( Congress ) को अलविदा कहकर जिन नेताओं ने भाजपा का दामन थामा है, वे कांग्रेस में रहते इतने प्रभावशील थे कि उन पर कभी न कभी पार्टी की रणनीति बनाने और उम्मीदवार तय करने की जिम्मेदारी थी। आयातित ऐसे नेताओं पर भाजपा भी नजर रख रही है, क्योंकि उन्हें पुराने नेताओं के साथ समन्वय की चुनौती का भी सामना करना होगा। चुनाव प्रचार के वक्त भाजपा को इन नेताओं का साथ मिलने से उसे जहां अपने वोट बढ़ाने में सफलता मिली, वहीं उसने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को भी मनोवैज्ञानिक ढंग से हताश किया। कई जगह तो हालात ऐसे बन गए कि कांग्रेस को पोलिंग बूथ पर काम चलाऊ कार्यकर्ताओं से काम चलाना पड़ रहा था। इस आया राम, गया राम के चक्कर में कई नेताओं की फजीहत भी हुई है। वैसे गिरफ्तारी, नोटिस, जाति प्रमाण पत्र की धमकी के चलते ऐसे कई नेताओं ने भाजपा का दामन ऐन चुनाव के वक्त थामा है। अब उनकी पार्टी में क्या भूमिका होगी, इसे लेकर वे भी परेशान हैं।
इन नेताओं पर खास नजर
पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुरेश पचौरी हों या फिर पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष एवं विधायक रामनिवास रावत जैसे नेताओं द्वारा पार्टी छोडऩे से कांग्रेस को बड़ा झटका लगा। इसके अलावा भोपाल के पूर्व महापौर सुनील सूद, कांग्रेस के वर्षों जिलाध्यक्ष रहे कैलाश मिश्रा, बीना विधायक निर्मला सप्रे, अमरवाड़ा विधायक कमलेश शाह, हरिवल्लभ शुक्ला, पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना तथा मुरैना महापौर सोलंकी ने भी भाजपा की सदस्यता ग्रहण की है। जब ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोडकर कमलनाथ की सरकार गिराने में अहम भूमिका निभाई थी, तब उनके साथ तत्कालीन विधायकों से लेकर कई दिग्गज नेताओं ने भी पार्टी बदली थी। इनमें से अब अधिकांश नेता राजनीति की मूलधारा से दूर हैं। यही वजह है कि सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या भाजपा उन्हें संगठन व सत्ता में महत्व देगी या फिर दूसरे नेताओं जैसा ही उन्हें भी नेपथ्य में भेज दिया जाएगा।