स्वतंत्र समय, कुमाऊं
पाताल भुवनेश्वर मंदिर उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध नगर अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है। देवदार के घने जंगलों के बीच यह अनेक भूमिगत गुफाओं का संग्रह है। जिसमें से एक बड़ी गुफा के अंदर शंकर जी का मंदिर स्थापित है। यह संपूर्ण परिसर 2007 से भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा अपने कब्जे में लिया गया है। यह गुफा किसी आश्चर्य से कम नहीं है। गुफा प्रवेश द्वार से 160 मीटर लंबी और 90 फीट गहरी है। मान्यता है कि पाताल भुवनेश्वर गुफा की खोज आदि गुरु शंकराचार्य ने की थी।
Patal Bhuvaneshwar गुफा में 33 कोटी देवी-देवताओं का निवास है
कहा जाता है कि पाताल भुवनेश्वर गुफा ( Patal Bhuvaneshwar ) में श्रद्धालुओं को एक साथ केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के दर्शन होते हैं। यह भी कहा जाता है कि इस गुफा में 33 कोटी देवी-देवताओं का निवास है। पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेता युग में सबसे पहले इस गुफा को राजा ऋतूपूर्ण ने देखा था। यह भी कहा जाता है कि द्वापर युग में इस जगह पर पांडवों ने भगवान शिवजी के साथ चौपाड़ खेला था। कलयुग में आदि जगत गुरु शंकराचार्य ने इस गुफा की खोज की और यहां ताम्बे का एक शिवलिंग स्थापित किया। बाद में चंद राजाओं ने इस गुफा को खोजा। यह गुफा सैलानियों के बीच प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने क्रोध में जब गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया था तो उस मस्तक को पाताल भुवनेश्वर में रखा था। यहां गुफा में भगवान गणेश के कटे ‘शिलारूपी मूर्ति’ के ठीक ऊपर 108 पंखुडिय़ों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल के रूप की एक चट्टान है। ब्रह्मकमल से गणेश के मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती है। ऐसी मान्यता है कि यह ब्रह्मकमल भगवान शिव ने ही यहां स्थापित किया था।