दिनेश सोलंकी
एक बार फिर यह मुगालते साफ हो गए कि महू सांप्रदायिक ( communal ) दंगों से मुक्त हो गया है। कट्टर मानसिकता पाले तथाकथित लोगों में दिमागी फितरत अभी भी कायम है, जो इस बार आईसीसी ट्राफी जीत चुके भारत की खुशी को बर्दाश्त नहीं कर पाए।
जामा मस्जिद क्षेत्र से शुरू हुआ था communal दंगा
भले ही सांप्रदायिक ( communal ) दंगा महू शहर के मध्य के एक हिस्से जामा मस्जिद क्षेत्र से शुरू हुआ, लेकिन अब आगामी होली और ईद को लेकर इस छोटे से कुप्रयास ने हिंदू – मुसलमानों के बीच सामंजस्य वाले विचारों में एक बार फिर जहर घोल दिया है। महू में इत्ते सारे दंगों के बाद आइपीएस और आईएएस की नियुक्ति पर जैसे ही ब्रेक लगा तो महू में अपराध बढऩे लगे और असामाजिक मनचले तत्व फिर सिर उठाने लगे। आईपीएस और आईएएस अफसरों के महू में आवासीय बंगलों की सुविधा है, लेकिन प्रमोटी अफसरों को आवास सुविधा होते हुए भी उन्हें अक्सर इंदौर अपने ठिए पर बार-बार जाने की आदत पड़ जाती है। 9 मार्च 2025 की रात को भी ऐसा ही हुआ जब पथराव होता रहा… गाडिय़ां जलती रही…. दुकान/ मकान में आग लगती रही, तब तक वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के पते ही नहीं थे। यहां तक की पुलिस फोर्स भी नहीं था। शायद ऐसा लग रहा था कि इंडिया की जीत के बाद निकलने वाले जुलूस को प्रशासन ने फ्री हैंड दे दिया गया था। यह भी उल्लेखनीय रहा है कि जब-जब प्रशासन ने महू को ढीला छोड़ा या उससे नजरें फेरी, तब तब महू में बड़े-बड़े कांड हुए हैं।
अब होली और ईद बनी चुनौती
इस अनायास ताजा छोटे दंगे ने जो कर्फ्यू विहीन जरूर रहा, जहां सुबह के वक्त जरूर स्थितियां सामान्य हो गई थी, लेकिन यदि रात को पहले के दंगों की तरह आमने-सामने, हथियारों के साथ हुज्जत हो गई होती तो इसके परिणाम बहुत बुरे होते।अभी भी यह छोटा सा दंगा कई सवाल खड़े कर रहा है। क्षेत्रीय विधायक पूर्व मंत्री उषा ठाकुर और राज्यसभा सदस्य कविता पाटीदार ने भी यहां दौरा किया है और वह इसे एक तरफा सुनियोजित कट्टर मानसिकता वालों की हरकत बता रहे हैं। जबकि कलेक्टर आशीष सिंह कह रहे हैं दोषी व्यक्ति कोई नहीं छोड़ा जाएगा। इस छोटे से देंगे ने आने वाली होली को दांव पर लगा दिया है। अब होली भी अनमने भाव से बनेगी क्योंकि दूध से जला पुलिस प्रशासन का चप्पे चप्पे पर फोर्स तैनात रखा जाएगा। होली पुलिस प्रशासन के साए में बनेगी और इसके बाद नंबर ईद का आएगा वह भी पुलिस के साए में ही मनाई जाएगी। इस तरह एक साथ दो त्यौहार बहरहाल दांव पर लग गए हैं। यदि महू पुलिस रात को जुलूस के दौरान सजगता का परिचय देती तो शायद रात को ही घटना न होती न बढ़ती और ना किसी प्रकार का नुकसान होता। इस मामले में कई सवाल खड़े हो रहे हैं और कई अफसर कटघरे में भी दिखाई दे रहे हैं। इतना जरूर है कि पाकिस्तान मानसिकता वाले षड्यंत्र कार्यों को जो पत्थरों का इस्तेमाल करने में हमेशा आगे रहते हैं जो भीड़ इक_ा करने में हमेशा आगे रहते हैं ऐसे लोगों को कल सबक देने की बहुत जरूरत है ताकि आगे आने वाले त्योहार शांति से मन सके। बता दें कि विजय जुलूस के साथ कुछ ही युवक जामा मस्जिद के सामने पहुंचे जहां से अचानक उनके साथ मारपीट शुरू करी की गई और पथराव बाद में शुरू हो गया।
भारतीयों को खुशी कट्टरपंथियों को नहीं…
रविवार 09 मार्च 2025 की रात महू में दंगा फिर भडक़ा, गनीमत थी दंगे की आग ज्यादा नहीं फैली, रात 12 बजे तक वरिष्ठ अफ़सर जमा हो चुके थे। आधे से ज्यादा शहर और आसपास शांति रही। ये ताजा किंतु छोटा दंगा पाकिस्तानी परस्त उन लोगों की मानसिकता की देन रहा, जो भारतीय नहीं थे ना उनमें भारत की जीत के प्रति खुशी समाई हुई थी। जाहिर है वर्ल्ड ट्राफी का मेजबान पाकिस्तान था और पाकिस्तान को पहले ही दौर में भारत सस्ते में निपटा चुका था। इसके बाद से सोशल मीडिया पर पाकिस्तान टीम पर जमकर फिक़रे कसे जा रहे थे। सबसे बड़ा कटाक्ष भारत द्वारा न्यूजीलैंड की जीत के साथ कप जीतने पर किया गया कि पाकिस्तान के लाहौर क्रिकेट स्टेडियम को जमातखाना बना दिया जाना चाहिए। भारत की ओर से पाकिस्तान के खिलाफ ये जहर इसलिए निकलता है क्योंकि पाक हमारा दुश्मन रहा है जो आज तक दोस्त ही नहीं बन सका। इसलिए क्रिकेट हो या हॉकी, भारत जब भी जीत फतह करता है, तब तब हिंदुस्तानी खुलकर खुशी का इजहार करते हैं, हिंदुस्तानी मतलब हिन्दू से नहीं है सभी उन धर्मों के लोग जो भारतवासी हैं। लेकिन जो कट्टर मानसिकता पालने वाले पाकिस्तान परस्त मुस्लिम है उनका पेट हमेशा दुखता आया है और इस बार हद हो गई जब महू में जीत का जुलूस ही कुछ लोगों को हजम नहीं हुआ, जिन्होंने खुशी मना रहे लोगों को पीटना शुरू कर दिया, बस फिर देर क्या थी, वही हुआ कि बेकसूरों की दुकानें, कार, बाइक आदि आग के हवाले किए जाने लगे। अफसोस यह रहा की जीत के जुलूस को लेकर पुलिस प्रशासन को बिल्कुल भी चिंता नहीं थी इसलिए वरिष्ठ अफसर महू में तत्समय थे ही नहीं, ना ही किसी प्रकार का फोर्स बाजार में लगाया गया था। जबकि कई बार पुलिस मार्च निकाला जाता है। आश्चर्य है कि भारत की इतनी बड़ी जीत पर जहां पूरे देश ने जुलूस निकालकर खुशी बनाई वहां पुलिस फोर्स सजग रहा। इंदौर में भी प्रशासन सतर्क रहा, लेकिन महू का पुलिस प्रशासन इतना क्यों बेफिक्र रहा यह किसी को समझ में नहीं आया। वह तो गनीमत थी कि पथराव और आगजनी के बावजूद कोई जनहानि नहीं हुई।
दंगों का इतिहास
उल्लेखनीय है महू में मुख्य रूप से 1969 (इंदौर की घटना पर) में पहला दंगा हुआ था। फिर 1980 (स्वाधीनता दिवस पर मुरादाबाद की घटना पर काला दिवस मनाने को लेकर हिंदू मुस्लिम आमने सामने हुए थे, तब 4 लोगों की मौत हुई थी), 1984 (सिख विरोधी दंगा भडक़ा था, बड़े बड़े पीठे जलाए गए थे), 1987 में (शिव सेना के बढ़ते कदमों से परिस्थितियां गंभीर हुई। जामा मस्जिद के सामने से गुजर रही बारात को लेकर) दंगा भडक़ा। 1988 (लडक़ी छेड़छाड़ को लेकर), 1989 (घासलेट वितरण में विवाद होने पर) और 2002 (यादव मोहल्ले के स्कूली बालक की हत्या को लेकर) में सांप्रदायिक दंगे हुए थे। इस तरह महू अति संवेदनशील क्षेत्र रहा। इस बीच 1991 में धुलेंडी पर सेना के यंग अफसरों विरुद्ध सिविल — पुलिस दंगा भी हुआ, जिसमें गुस्साए लोगों ने सेना की 11 बाइक को आग के हवाले कर दिया था। 1992 में अयोध्या की घटना पर एहतियाती कर्फ्यू लगा जो अकारण कई दिनों तक चला। इसके बाद से छुटपुट घटनाओं को छोडक़र दंगों पर फिर लंबा विराम लगा।