केंद्र सरकार ने फसल खरीदी की मौजूदा व्यवस्था में सुधार के लिए एक महत्वाकांक्षी पायलट प्रोजेक्ट को मंजूरी दी है। ‘पीएम धन-धान्य योजना’ नामक इस स्कीम पर करीब 24,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इसकी शुरुआत मध्य प्रदेश के 8 प्रमुख गेहूं और धान उत्पादक जिलों से होगी, जहां आगामी रबी सीजन से निजी कंपनियां सीधे किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर फसल खरीदेंगी।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य सरकारी खरीद प्रक्रिया में लगने वाले भारी खर्च और अनाज की बर्बादी को कम करना है। सरकार का मानना है कि इस नई व्यवस्था से सरकारी खजाने पर पड़ने वाला बोझ घटेगा और पूरी प्रक्रिया अधिक कुशल बनेगी।
क्यों पड़ी इस योजना की जरूरत?
वर्तमान में, भारतीय खाद्य निगम (FCI) और अन्य सरकारी एजेंसियां किसानों से MSP पर अनाज खरीदती हैं। इस प्रक्रिया में सरकार को बोरियों (बारदानों) की व्यवस्था, ढुलाई, भंडारण और रखरखाव पर एक बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती है। पिछले साल ही सरकार का खाद्य सब्सिडी बिल 2 लाख करोड़ रुपये से अधिक था।
इसके अलावा, एक बड़ा मुद्दा अनाज की बर्बादी का है। एक रिपोर्ट के अनुसार, भंडारण और परिवहन के दौरान लगभग 10 प्रतिशत अनाज खराब हो जाता है, जिससे देश को हर साल करोड़ों रुपये का नुकसान होता है। सरकार इसी दोहरी मार से बचने के लिए खरीद का नया मॉडल आजमा रही है।
कैसे काम करेगी ‘पीएम धन-धान्य योजना’?
यह योजना एक नए ‘मूल्य समर्थन मॉडल’ पर आधारित है, जिसमें सरकार सीधे खरीद करने के बजाय एक सूत्रधार की भूमिका निभाएगी।
1. पोर्टल पर पंजीकरण: सरकार एक ऑनलाइन पोर्टल विकसित करेगी, जहां किसान और निजी खरीदार (कंपनियां) अपना पंजीकरण कराएंगे।
2. निजी कंपनियों द्वारा खरीद: पंजीकृत निजी कंपनियां सीधे किसानों से उनकी उपज MSP पर खरीदेंगी।
3. नुकसान की भरपाई: यदि बाजार में अनाज का भाव MSP से नीचे चला जाता है, तो निजी कंपनियों को होने वाले नुकसान की भरपाई सरकार करेगी। सरकार MSP और बाजार मूल्य के बीच के अंतर की राशि सीधे कंपनी के बैंक खाते में ट्रांसफर कर देगी।
मध्य प्रदेश के इन 8 जिलों से होगी शुरुआत
पायलट प्रोजेक्ट के पहले चरण के लिए मध्य प्रदेश के उन 8 जिलों को चुना गया है, जहां गेहूं और धान का बंपर उत्पादन होता है। इन जिलों में शामिल हैं:
- भोपाल
- नर्मदापुरम (होशंगाबाद)
- हरदा
- सीहोर
- रायसेन
- विदिशा
- नरसिंहपुर
- जबलपुर
इन जिलों में उत्पादन अधिक होने के कारण सरकार को खरीद, भंडारण और परिवहन पर काफी खर्च करना पड़ता है। इसलिए इस मॉडल के परीक्षण के लिए इन क्षेत्रों को सबसे उपयुक्त माना गया है।
सरकार और किसानों को क्या होगा फायदा?
इस योजना से सरकार को भंडारण, लॉजिस्टिक्स और अनाज के रखरखाव पर होने वाले खर्च में सीधी बचत होगी। अनाज की बर्बादी में कमी आने से राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान भी रुकेगा। वहीं, किसानों को उनकी फसल का MSP मिलना सुनिश्चित रहेगा और उन्हें अपनी उपज बेचने के लिए सरकारी केंद्रों के अलावा निजी खरीदारों का एक और विकल्प मिलेगा।
यदि मध्य प्रदेश में यह पायलट प्रोजेक्ट सफल रहता है, तो सरकार इस मॉडल को देश के अन्य राज्यों और अन्य फसलों के लिए भी लागू करने पर विचार कर सकती है। इसे भारत की कृषि खरीद नीति में एक बड़े सुधार की दिशा में पहला कदम माना जा रहा है।