प्रखर – वाणी
दिल्ली का दिल धड़क रहा है…हमेशा वहां के चुनाव का फैसला कड़क रहा है…भाजपा व आप ने सत्ता प्राप्ति की उम्मीदें लगाई है…कांग्रेस ने भी अपनी खोई हुई शक्ति जगाई है…फैसला जनता की खामोशी से बयान हो सकता है…ईवीएम का बटन किसके प्रभाव में कितना दबता है…कुल जमा ये चुनाव अपार रेवड़ियों का चुनाव रहा…लुभावनी बातों और वादों का अबकी बार प्रभाव रहा…
हमारा लोकतंत्र अब किस दिशा में जा रहा है…नेता मतदाताओं को किस हद तक सपने दिखा रहा है…ये बेशक गहरी चिंता व चिंतन का विषय है…आम करदाताओं को उनकी मेहनत की कमाई लूटने का भय है…जिनको मुफ्त में मिलता है उनकी मेहनतकश बनने की प्रवृति अब नहीं रही…घर बैठकर सुलभ जिंदगी का शासकीय सुख हासिल हो उनको लगता यही सही…राजनीति भी अब बंदरबांट के धरातल पर खरी उतर रही है…नए दौर की सत्ता चाहत नई दिशा में बह रही है…
विकास की आस और नेता का विश्वास हाशिये पर खसक रहा है…राजनीति का नया सूरज उगते ही रोशनी का आश्वासक रहा है…जन – जन के मन में अब तन ढंकने की लिप्सा नहीं है…उदर पोषण व परिवार संचालन की फिक्र या अभीप्सा नहीं है…अब तो विलासिता की दिशा जन की दशा बदल रही है…कर्ज लेकर फर्ज पूरा करने की चाहत मचल रही है…ईएमआई चुकाकर अब हर उपकरण व सम्पत्ति हासिल हो जाती है…आम आदमी व मध्यम वर्ग को भी अब यही प्रवृत्ति भाती है…जब देश की राजधानी के पढ़े लिखे मतदाता भी प्रलोभन से मत देते हैं…तो अन्य जगह के अपढ़ व अपरिपक्व मतदाताओं के स्वभाव को हम क्या कहते हैं…दामिनी के साथ दिल्ली में हुई करतूत पर पूरे देश ने मोमबत्ती जलाई…
मगर भावनाओं को सत्ता की कुंजी समझने वालों ने जनता को बत्ती लगाई…जन लोकपाल की सीढ़ी से चढ़कर उसे भूलने वालों की कमी नहीं है…जिन्होंने धरने प्रदर्शन किए भ्रष्ट आचरणों की धार उन्हीं चेहरों की तरफ बही है…देखना ये है कि भारत का प्रजातंत्र अब किस करवट बैठता है…सत्ता प्राप्ति के लिए लोभ दिखाने वाला कैसे सत्ता ऐंठता है…राष्ट्रनीति या कूटनीति में से क्या नए युग की राजनीति होगी…जिन्होंने आज़ादी की लड़ाई लड़कर फांसी चूमी उन्होंने आजादी की खुशियां कहाँ भोगी ।