स्वतंत्र समय, इंदौर
जरूरत से ज्यादा प्रॉपर्टी ( Property ) में कमर्शियल बिल्डिंग लोग बनाते गए, जबकि वास्तव में इसकी जरूरत नहीं थी। भेड़चाल में कई नौसिखिए नए बिल्डर भी इस काम में लग गए, इसका हश्र यह हुआ कि जिस तेजी के साथ बिल्डिंगें बनती गईं तो उनमें जगह किराए पर देने के लिए बैंकों से सांठगांठ की। बैंक वालों ने अवैध मल्टीस्टोरियों में बिना पार्किंग वाली जगह पर, जगह किराये पर ले ली। जहां पार्किंग की सुविधा बिलकुल नहीं थी।
Property में घोटाले को लेकर बैंक भी पीछे नहीं
कहने को तो प्रॉपर्टी ( Property ) किराए पर लेने को लेकर बैंक वाले बड़ी -बड़ी बातें करते हैं, जब भी बैंक वाले कोई जगह किराये पर लेते हैं तो सबसे पहले उस बिल्डिंग का नक्शा देखते हैं। नगर निगम से वाकई नक्शा मंजूर हुआ है या नहीं। बैंक के कर्मचारियों और ग्राहकों के लिए पार्किंग की सुविधा उपलब्ध है या नहीं। यह सिलसिला तो कुछ समय इंदौर में चला लेकिन पांच-छह सालों से सरकारी और निजी बैंक के मैनेजरों ने बिल्डिंग किराये को लेकर नया घोटाला करना शुरू किया। जिस बिल्डिंग का नक्शा नगर निगम ने मंजूर नहीं किया है, उस अवैध बिल्डिंग में भी बैंक मैनेजर ने लाखों रूपये की रिश्वत लेकर बिल्डर के साथ किराये का एग्रीमेंट कर लिया। अवैध बिल्डिंग में न तो बैंक के स्टाफ और ना ही ग्राहकों के लिए पार्किंग की व्यवस्था बिल्कुल भी नहीं है। कार तो दूर दोपहिया वाहन लगाने की भी इंदौर की अधिकांश बैंकों में व्यवस्था नहीं है। बैंक कर्मचारी से लेकर ग्राहक तक फुटपाथ और सडक़ पर अपने वाहन खड़े करते हैं। वाहन खड़े करने को लेकर रोजाना बिल्डिंग के दूसरे दुकानदारों और आसपास के दुकानदारों से झगड़ा होता है। बैंक मैनेजर से बात करने के लिए इंदौर के कुछ प्रापर्टी दलाल बड़े पैमाने पर सक्रिय हैं। ये दलाल खुद एक महीने के पूरे किराए की दलाली लेते हैं। इसके अलावा बैंक मैनेजर को 5 से 10 लाख तक की रिश्वत अलग से बिल्डर से दिलवाते हैं। इन बैंक मैनेजरों के खिलाफ तो कड़ी से कड़ी कार्रवाई होना चाहिए। ट्राफिक जाम करने के दोषी बैंक मैनेजर लगातार भ्रष्ट होते जा रहे हैं। यही कारण है कि इंदौर के उन व्यस्त इलाकों में जहां पार्किंग की सबसे ज्यादा दिक्कत है, वहां की बैंकों में ग्राहकों ने आना कम कर दिया है जिस कारण कई बैंक वालों को अब दूसरी बिल्डिंग तलाशना पड़ रही है। ‘दैनिक स्वतंत्र समय’ का हर बैंक के ग्राहकों से अनुरोध है कि उनका जिस बैंक में अकाउंट है, उस बैंक के मैनेजर से जाकर यह पूछे कि वो अपना वाहन कहां पार्क करें। पूर्वी क्षेत्र में तो रोजाना ऐसा होता है कि ट्राफिक पुलिस की क्रेन बैंकों के ग्राहकों के वाहन उठाकर ले जाती है। ग्राहकों को चालान दो से तीन हजार रुपये तक भरना पड़ता है। पुराने इंदौर में तो ट्राफिक सुधारने पुलिस भी तैयार नहीं है, क्योंकि पुराने इंदौर को पिछड़ा इलाका कहा जाता है। प्रापर्टी में आई मंदी का एक बड़ा कारण यह है कि सुविधाएं नहीं होने से बिल्डर की दुकानें, शो-रूम और अफिस अब किराये पर नहीं जा रहे। नगर निगम के भ्रष्ट इंजीनियरों की गरीबी दूर करने के लिए इंदौर में रोज अवैध इमारतें बन रही हंै। लाखों-करोड़ों की रिश्वत लेने वाले इंजीनियर जिंदगी भर भिखारियों की तरह रिश्वत लेते रहते हैं, लेकिन उनका पेट कभी नहीं भरता। इंदौर को बरबाद करने वालों की जय जयकार…